Sunday, December 27, 2015

देखना है ऊँट किस करवट बैठता है

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चर्चा में है कि  ६६ साल पुराना संस्थान XLRI एक अभिजात्य वर्ग बन सा गया है. असलियत में काफी gaps हैं, जो alarming हैं. रैंकिंग में नंबर १ इन ह्यूमन रिसोर्सेज self -proclaimed title सा जान पड़ता है. मेरा XLRI के काफी सीनियर और जूनियर कैंडिडेट्स के इंटरव्यू का अनुभव भी यही स्थापित करता है की, यह रंगा सियार ही है. काफी कम ही लोग हैं जो  प्रतिभावान हैं. ६६ साल की विरासत कब तक चल पाती है, देखना होगा. कहते हैं नामी बनिया का झांट भी बिकता है.

XAT एंट्रेंस टेस्ट की फॉर्म भरने ही तारीख extend हुई २०१६ के लिए. यह भी एक सन्देश है की काफी काम लोग अप्लाई कर रहे है अब XLRI  के लिए.
देखना है ऊँट किस करवट बैठता है

मैंने सोचा था, सरकारी अफसर बेईमान, घूसखोर होता है, फिर प्राइवेट कंपनी में काम किया तो मालूम पड़ा यहां तो सबसे बड़े चोर और चरित्रहीन लोग भरे पड़े हैं. यहां तो न विजिलेंस का, नहीं CBI का, नहीं, पॉलिटिशियन का या मीडिया का डर , लूट मचाओ, गिरे हरकत करते रहो. राज्य सरकार के नौकरी में जात-पात था, भाई -भतीजावाद था, प्राइवेट में बंगाली वाद है, मलयाली वाद है, तमिलवाद है , इत्यादि. फिर MBA कॉलेज में देखा, वहाँ भी बंगाली वाद है, मलयाली वाद है, इत्यादि . XLRI जमशेदपुर की वेबसाइट पर आप वाद की कुछ झलक पा सकते हैं. मल्लू चेयरपर्सन है, मल्लू प्रोफेसर हो जाता है, Alumni affairs का हेड हो जाता है. इंस्टीटूशन का चेयरपर्सन भी मल्लू है, क्रिस्चियन है , वैसे तो इंस्टीटूशन ही Jesuit है. Alumni affairs का हेड का प्रोफाइल लिंकेडीन पर और XLRI के वेबसाइट पर देख लीजिये, आप समझ जाएंगे.
youtube पर XLRI के ऑफिसियल videos हैं, पर कमेंट्स डिसेबल्ड हैं. किस बात का fear  है? क्यों इतना intolerance ?
आप ऐसी हरकत तभी करते हैं जब आप को एक्सपोसे होने का fear होता है या आप truth से डरते हैं..
आप तय कर लीजिये.
दोनों वीडियोस देख कर मुझे एक बेहद average Institute की छवि सामने आई. Alumni meet  का video किसी शादी का वीडियो बनाने वाले नें बना दिया है. म्यूजिक वैसा ही है, लग रहा है, शादी का भोज है..
दुसरे वीडियो में, प्रोफेसर सभी झारखण्ड मेड लग रहे हैं. नॉन-इन्स्पिरिंग. सामने लिखे स्क्रिप्ट देख कर पढ़ रहे हैं. Unhygienic कैंटीन, poorly scripted स्टूडेंट टॉक्स,

बस प्लेसमेंट ही बचा रहा है इनको पर ज्यादा दिन चलने वाला नहीं लगता है सब-कुछ तभी तो मूंगफली की तरह XLRI अब certificate course बेच रहा है.




Monday, December 14, 2015

मानद उपाधियाँ आप भी ले सकते हैं.

दिलीप साब को पद्म विभूषण होम डिलीवर किया है राजनाथ सिंह ने. बधाई हो. ९३ वर्ष के हो गए हैं दिलीप साब. मुझे सबसे अच्छे लगे वो मशाल में.



इन उपाधियों से याद आया मानव संसाधन यानि HR वालों के कुछ उपाधियों का. एक संस्था हैं SHRM (इसका हिंदी ऑटो रूपांतर शर्म बता रहा है) यहां से आप कुछ उपाधि खरीद सकते हैं.. ऐसी दूसरी काफी सारी इंटरनेशनल संस्थाएं हैं जो HR की चूरन गोली , यानि सर्टिफिकेट बेचती हैं. ३०० डॉलर से ६०० डॉलर में आप चुटकुले टाइप ३ घंटे का एग्जाम लिख कर , ८ हफ़्तों में मानद उपाधि का टीका अपने बायो डेटा के सर पर लगा सकते हैं.
आजकल HR के उपाधि वाले अपने नाम के आगे लिखते हैं, PHR , SPHR , GPHR , HRMP ,इत्यादि.

कुछ HR के नए मुल्ले, अपने मंद उपाधि के बाद tagline लगाना नहीं भूलते..
कुछ ऐसे होते हैं ये चुटकुले नुमा tagline "Identified as top 20 future HR leaders by Peoplematters 'Are You in the List?'"
स्वनामधन्य एक HR की पत्रिका नें ये सूरमा लिस्ट तैयार किया है. फॉर्म भर दीजिये, लम्बी फेंक मारिये और आप बन गए, Identified as top 20 future HR leaders by Peoplematters 'Are You in the List?'. 

अब आप इनके चाल, चेहरा और चरित्र से परिचित होना चाहते हैं तो इनके एक दो LinkedIn पोस्ट पढ़ लें. आप अपना सर पीट लेंगे. यह फेक लोग अपनी सेल्फ fancied , सेल्फ फुलफिल्लिंग प्रोफेसी की दुनिया में रहते हैं. यह है HR socialite की दुनिया।  

HR के एक नए मुल्ले नें अपने LinkedIn प्रोफाइल में यह भी लिख डाला, "Recognized as an Emerging Future HR Leader in 2014 by DDI & People Matters and as Asia's Best Young HR Professional by World HRD Congress". कोई LinkedIn पोस्ट? कोई आर्टिकल/रिसर्च पेपर? कोई वीडियो? कोई ब्लॉग? जी नहीं, हम हैं HR socialite, हम सिर्फ फेम जानते हैं. फेक का फेम. शर्म करो भाई. 

मेरे MBA कॉलेज के एक सीनियर के LinkedIn प्रोफाइल में उनके नाम के आगे लिखा Ph.D . २०१०-२०१५ के बीच उन्होंने यह डिग्री/डॉक्टरेट की उपाधि अहमदाबाद के HR  डेवलपमेंट अकादमी से प्राप्त ही है, ऐसा उनके LinkedIn प्रोफाइल में लिखा है. . लेकिन यह अकादमी तो यूनिवर्सिटी है ही नहीं, न ही इसे UGC की मान्यता प्राप्त है.फिर इन्हे यहाँ से Ph.D कैसे मिला? 

HR  डेवलपमेंट अकादमी का जब ऑनलाइन brochure पढ़ा तो पता लगा, इन्होंने MOU साइन किया है एक गुजरात की प्राइवेट यूनिवर्सिटी के साथ. इस यूनिवर्सिटी का आपने नाम तक नहीं सुना होगा. इस यूनिवर्सिटी में शायद एक प्रोफेसर हो जो Ph.D हो. 
जब इस यूनिवर्सिटी की वेबसाइट मैंने चेक किया तो पाया की यह यूनिवर्सिटी स्टेट लेजिस्लेशन से यूनिवर्सिटी UGC इसे डिग्री (Ph.D इत्यादि  ) प्रदान करने की permission देता है. UGC के इस approval लेटर को इस यूनिवर्सिटी नें अपने वेबसाइट पर लगा रखा है. जिसमे संलग्न गजट ऑफ़ इंडिया साफ़ तौर पर लिखता है के आप कोर्रेस्पॉण्डन्स या  पार्ट टाइमर को डिग्री/including Ph.D नहीं दे सकते. फिर इस फुल-टाइम कर्मचारी को  जो कभी अहमदाबाद में न काम किया नहीं करता है, आपने इसको Ph.D की डिग्री कैसे दे दी? 

मजेदार बात तो यह है कि अहमदाबाद के HR  डेवलपमेंट अकादमी नें अपने ऑनलाइन brochure में लिखा है, Fellowship का फी है रूपया।  ३५०,०००/- और अगर आप Ph.D भी चाहते हैं तो एक्स्ट्रा रूपया . १६०,०००/- जमा करें और ये उनकी MOU  वाली अहमदाबाद की प्राइवेट यूनिवर्सिटी से Ph.D में मदद करेंगे. यह क्या झोल है? Fellowship के ३५०,०००  और Ph.D १६०,००० में? कमाल है. 

अब Ph.D भी कोर्रेस्पॉन्डस कोर्स की तरह बिकने लगी. और यह फेम वाले इसके बड़े खरीदार हैं? शुक्र है यह MBBS की डिग्री नहीं है वरना कितने मरीज़ शहीद हो जाते. 

जब मैंने इस प्राइवेट Ph.D वाली यूनिवर्सिटी को उनके और  अहमदाबाद के HR  डेवलपमेंट अकादमी के MOU के विषय  लिखा तो उन्होंने कोई जवाब  नहीं दिया. उनके वेबसाइट पर लिखे दोनों लैंडलाइन नंबर निरंतर बिजी रहते हैं या रखे गए हैं. फिर मुझे उनके वेबसाइट से दूसरा लैंडलाइन नंबर मिला. इस पर बात हुई एक महिला से जिसने काफी सशंकित हो कर मेरे बारे में पुछा फिर कहा Ph.D के लिए आप इस मोबाइल नंबर पर कॉल करें. मैंने उस मोबाइल नंबर पर कॉल किया. तुरंत ही Ph.D के बारे में पूछने पर उस व्यक्ति नें काफी रूखे तरीके से कहा, लैंडलाइन पर फ़ोन करो. और उसने वही नंबर दिया जो हमेशा बिजी रहता है. सारा खेल समझ में आ रहा है. 

मैंने अहमदाबाद के HR  डेवलपमेंट अकादमी को भी ईमेल लिखा है यह पूछते हुए की क्या उनका Ph.D के लिए MOU उस यूनिवर्सिटी के साथ है और क्या मैं Ph.D के लिए अप्लाई कर सकता हूँ. मुझे जवाब नहीं मिला अब तक.. उनका फ़ोन नंबर जो वेबसाइट पर हैं सुबह ९. ३० और फिर १० बजे किसी नें नहीं उठाया. 

देखता हूँ कब जवाब देते हैं. 







Saturday, December 12, 2015

सपने बुनते रहिये

सपने बुनते रहिये 
ऊँचे ख़ाब देखते रहिये 
काफी काम लोगों में है यह हौसला,
इस रोशनी को जलाये रखिये 
बस ख्याल इतना रखिये 
पाओं को ज़मीन पर रखिये 

छोटी पटरियों पर फिसलने के हम नहीं कायल 
करें कलरकी और ख़ुशी से फूल जाएँ, ऐसे भी हम नहीं घायल 

डरिये मत कि लोग इसे फलसफा कहेंगे 
शब्द और संवेदना के ऐसे ग़रीब यहां ख़ूब मिलेंगे 
अठंन्नी डालिये, अपनी राह चलते रहिये 
भूल कर  भी इनसे ज्ञान मत लीजिये, 
क़ाबुल से निकाले गए कई गधे यहां भी मिलेंगे. (जनवरी २००३ )

कभी जब शून्यता महसूश करता मैं

कभी जब शून्यता महसूश करता मैं, शायद तुम भी विस्मृत सी हो जाती हो. याद करता फिर तुम्हारा वह चंचल-कोमल सा चेहरा , उस चेहरे की ताज़गी और आँखों की चमक. कुछ कहते से होंठ और उनकी थिरकन. सब देखता हूँ मैं पर सुन नहीं पाता , क्या कहती हैं वे. 
उन जीवंत आँखों और होठों को, और चेहरे से सामंजस्य बैठाने की कोशिश में मैं भी करने लगता प्रयास; आँखों में चमक लाने का, चेहरे से ओज छलकाने का, और प्रतिउत्तर देता सा अपने शिथिल होठों को हिलाने का, पर डरता और लज्जित सा भी महसूस करता अंदर-ही-अंदर कि शायद तुम समझ रही हो यह सारा अभिनय. पर क्यों करता हूँ यह अभिनय? शायद  इस लिए कि तुम्हारी अपेक्षाओं से दूर रह जाता हूँ मैं. पर फिर सोचता क्या हिमालय से निकली धारा उसका साथ कभी छोड़ पाती है? दूर-दूर, और दूर जा कर भी जुड़ी रहती है उसी दृढ़ता से, उसी चाहत से , उसी उत्साह और प्यार से. (जुलाई २०००)


ईश्वर अगर है और हो तुम मेरे साथ

संघर्ष करते हुए उदास हो जाता मैं, आशा छोड़ने लगती जब साथ, नज़र आता सिर्फ एक ही रास्ता, करते जाओ प्रयास, छोड़ो नहीं आश. 
फिर भी धड़कन बढ़ती जाती है, दूरी और परिवेश भी जब करने लगते निराश,
पर हूँ दृढ संकल्प, हार स्वीकार करने को हम तैयार, पर पूरा संघर्ष करने को हम बाध्य, प्रयाश से पूर्ण और निश्चय से दृढ़।  
दौड़ते रहना मेरी नियति है, कुछ सफलताओं से आशान्वित होकर, फिर असफलता, फिर निराश. 
आश-निराश के बीच झूलता मैं, मालूम नहीं, क्या होगी परिणति, पर है एक विश्वास. 
कि ईश्वर अगर है और हो तुम मेरे साथ, पहुंचेंगे जरूर, असफलताओं को लांग सफलता के पास. (मई, २०००. )

Friday, December 11, 2015

इस बदबू में हम जी लेंगे!

Whatsapp पर जोक आया है; "कब्रगाह वो जगह है, जहां वे लोग दबे हैं, जो यह सोचते थे की उनके बगैर यह दुनिया नहीं चल सकती. "

कभी-कभी इस मुगालते में हम सब आ जाते हैं. परिवार, समाज, संस्था, कपंनी, हर जगह आपके ऐसे लोग मिल जाएंगे. 
कंपनी से बेहद खफा और निराश हो कर जब रिजाइन कर देंगे या इन्हे निकाल दिया जाएगा, तब भी ये अपनी अदा से बाज़ नहीं आते. 
समय के साथ , पढ़े लिखे बेकार बढ़ते गए. एमबीए कालेज बंद हो ते गए, आईआईएम वाले भी बेरोज़गार भटकने लगे. नौकरी डाट कॉम पर आईआईटी +आईआईएम को मैंने कोचिंग सेंटर में पढ़ाते देखा है, दिहाड़ी पर. 
अब तो प्रीमियर बी स्कूल वाले भी मिड लाइफ क्राइसिस में जाबलेस हैं. यह अच्छी स्थिति नहीं है. इनको तो हराम की नौकरी एक बार मिल गयी तो यह सरकार इस समाज का काम है की उनकी जमींदारी बानी रहे, चाहे कितने ही निकम्मे और कलंक क्यों न हों. 
मुझे यह हमेशा लगता रहा की अगर मैं ५०% सीनियर लोगों को काम से निकाल दूँ तो उनके कार साफ़ करने का भी काम कोई नहीं देगा. 

समय के साथ ऐसे लकी लोगों की संख्या बढ़ती ही जा रही है तो कंपनी पर बोझ बन गए हैं. दिमाग कुण्ड हो गया है. लोग उन्हें धरती का बोझ  समझने लगे हैं पर उनकी किस्मत का Duracell  है कि चलता ही जा रहा है. 

रेसेप्शनिस्ट बैंगलोर की आईटी कंपनी में हेड ऑफ़ ह्यूमन रिसोर्सेज हो जाती हैं. सब लिपिस्टिक का कमाल है. फिर उसकी टीम में MSW वाले भर जाते हैं.. MNC कम्पनीज में यह अवैध काम कहीं ज्यादा है. 
मुझे इस प्रीमियर बी स्कूल से सख्त नफरत है. इसके नाम पर सिर्फ एलिटिस्म बढ़ा है. सेरेमोनियल सूडो इंटेलेक्चुअल भर गए हैं. HR में बंगालिओं  की पूरी फ़ौज़ सिर्फ अंग्रेजी के कारण जमा हो गयी है.मोटी  सैलरी चाहिए लेकिन , रियल काम से स्ट्रेस हो जाता है मैडम और सर को. 
अभी फ्लिपकार्ट नें भी एक HR  वाले को एम्प्लोयी ब्रांडिंग स्पेशलिस्ट बहाल  कर लिया था पर सच्चाई काफी जल्दी सामने आ गयी और जनाब बाहर समाज सेवा कर रहे हैं. 
मिंत्रा और फ्लिपकार्ट नें HR बोस्सेस को बाहर का रास्ता दिखा दिया क्यों की उन्हें लगा यह तो सारे कोंस्टीटूशनल पेंशनर्स हैं. लोग तो एहि कह रहे हैं, मैं तो बस सुनता हूँ. इनसे कंपनी का कोई भला नहीं हो रहा है. बड़े नाम वाले XLRI के भी पुराने लोग अब हीट झेल रहे हैं. Dynosure कम्पनियाँ इन्हे झेल रही हैं. 
कॉर्पोरेट में रिटायरमेंट आगे ४५ कर देनी चाहिए. उसके बाद अगर डैम हो तो इंटरप्रेन्योर बने, या समाजसेवा करें. क्या मतलब है मरे इंसान को १ करोड़ की सैलरी देने का. काम का आदमी बहाल  कीजिये,  इतने में १५ से ० लोगों को रोजगार मिलेगा. २० परिवार चल जाएगा. 
एक MLA की सैलरी २ लाख हो रही है तो लोगों की जान निकल रही है, यहां तो जो इलीट बना फिर रहे हैं, धरती पर बूझ उनको २ से ५ लाख महीने के आराम से मिल रहे हैं. 

सैलरी पर लगाम लगनी जरूरी है. करप्सन तो सबसे ज्यादा प्राइवेट सेक्टर में है, इसकी तह में जाएंगे तो बदबू आएगी. 

ITC पेपर एंड पल्प कैंपस इंटरव्यू के लिए SIBM ऑफ-कैंपस आई थी २००२  में. हमारा ६ से ७ शॉर्टलिस्टेड लोगों का दो दिन का इंटरफिेव होटल ले मेडिडियन पूना में चला. दो दिन सुबह से साम तक, बुफे लंच एंड डिनर फ्री. हम बड़े इम्प्रेस्सेड थे. ३ लोग शोर्टलिस किये गए और हमें हैदराबाद कॉर्पोरेट ऑफिस बुलाया गया. गेस्ट हाउस में रुके. दुसरे दिन साम के ३ बजे एक बिज़नेस के VP से इंटरव्यू हुआ. सिर्फ १५ मं का सभी तीन कैंडिडेट्स के साथ, हमें Paradise होटल लंच करे भेज दिया गया. फिर ऑफर लेटर रेडी किया जाने लगा. चेइफ मैनेजर-HR ने हमे ऑफर लेटर की झलक ऐनी टेबल के दुसरे ओर से दिखा दिया. फिर हमें मेडिकल टेस्ट के लिए यशोदा हॉस्पिटल भेज दिया गया. ऑफर नहीं मिला और हमें यह कह कर वापस भेज दिया की हम कॉलेज को ऑफर लेटर भेज देंगे. ऑफर लेटर कभी नहीं आया. 

तो फिर यह सब तमासा क्या था? यह तो हमें काफी महीनों बाद पता चला की पूरा हायरिंग प्रोसेस फेक था. दरअसल , VP -HR की बेटी पूना में पढ़ती थी, VP साहब को प्राइवेट टूर करना था पूना का और बेटी और उनके दोस्तों को ले मेरीडियन में फ्री लंच -डिनर कराना था. तब हमें ध्यान आया कि बुफे लंच और डिनर पर हमने उनकी ५ से ६ स्कूली लड़कियों को रोज़ हमारे साथ लंच डिनर करते पाया था. हरामी पने की इससे बड़ी क्या हाथा आपको सुननी  है. ऐसी मेरे पास काम से काम ५ अनुभव हैं. 


इस बदबू में हम जी लेंगे!

Wednesday, December 9, 2015

लीडर को लकी होना चाहिए।


गुरुचरण दास ने कहा , लीडर को लकी होना चाहिए।  मैं   गुरुचरण दास से १००%  सहमत हूँ. साथ ही ,मेरा मानना है सिर्फ किंग ऑफ़ गुड टाइम्स भी अपनी बरसी कुछ ही वर्षगांठों के बाद मना लेता है. लकी हैं तो होश में रहें। हुकूमत आपके होश गुम होने का ही इंतज़ार करती है. 

सफल जीवन तीन आधारों पर टिका होता है; अवसर, सामर्थ्य या पुरुषार्थ और भाग्य।  ले दे कर सारी बात आ कर अटकती है भाग्य पर. आप भारत के प्रधान मंत्री बनें और तेल की कीमत विश्व बाजार में अपने न्यूनतम स्तर पर हो और बना रहे. अमरीकी राष्ट्रपति अपनी अंतिम कार्यकाल के अंतिम चरण में हों. मुख्य विरोधी पार्टी अपने जीवन के न्यूनतम स्तर पर हो. आपकी पार्टी में पुराने लीडर्स बिस्तर पकड़ चुके हों और नए वाले अभी तैयार नहीं हों.  आपकी चांदी है. किस्मत इसको कहते हैं. 

जीवन अवसरों और किस्मत से बनता और चलता है. आपकी लाटरी लगी तो लगी नहीं तो आप उसे रद्दी के टोकरे में डाल दें. फटेहाल स्टार्ट अप कंपनी कोम्मोन्फ़्लूर $२०० मिलियन में क्विकर नें अभी खरीदी है. सही वैल्यू क्या है यह किसको पता. जो कंपनी अपना दो रूपया फायदा नहीं बना सकी, उसको $२०० मिलियन में खरीदना कहाँ की अकल है? सब इन्वेस्टर्स का खेल है. सब मिलकर चार्टर्ड अकाउंटेंट की मदद /गोरखधंधे से सरकार को चूना लगाएंगे. सबसे बड़ी प्रसन्नता है की इसमें सरकारी बैंक का NPA नहीं को रहा है. १० में से ८ स्टार्ट अप बंद हो सकते हैं. फ्री फ़ोकट डिस्काउंट लेने वाली जनता आपको भला कैसे प्रॉफिट बनाने देगी. जब तक डिस्काउंट चालू है, बुकिंग है, जब डिस्काउंट बंद, बुकिंग बंद. फ्लिपकार्ट और स्नैपडील सायद २०२० तक कोई प्रॉफिट बना सकें. इसकी उम्मीद काम ही है. मार्केटप्लेस में न क्वालिटी पर न कस्टमर डिलाइट पर कोई कंट्रोल है. फ्लिपकार्ट में ३०००० कर्मचारी हैं. मार्केटप्लेस कंपनी के लिए यह नंबर लगभग तीन गुना है. देखना है यह देसी डिज्नीलैंड कब तक चलता है. क्वालिटी ऑफ़ प्रोडक्ट्स काफी गिरे हैं. कस्टमर अट्रिशन काफी तेज़ है. सेलर्स ग्राहकों को जमकर चूतिया बना रहे हैं. ऐसा लोग कह रहे हैं. मैं सुनता हूँ , रिकॉर्ड नहीं रखता. 
भारत में जब मुहम्मद बिन तुगलक ने टोकन करेंसी चलायी थी तो वह असफल को गयी. इतिहासकारों ने लिखा, "भारत में तक़रीबन हर घर में अवैध सिक्के छप रहे थे. एव्री हाउसहोल्ड हैड टर्न्ड ईंटो अ मिंट . सबको पता है; सक्सेस लाइज इन एग्जेक्यूसन। वहीँ, अल्लाउद्दीन ख़िलजी का मार्किट रिफॉर्म्स सफल रहा. क्योंकि यहां अधिकारी वर्ग गंभीर और ससक्त था, एजेंसीज थी , नियामक संस्थाएं थी, सीक्रेट इंस्पेक्टर्स और सबसे ऊपर सुलतान का खौफ था. शासन खौफ से चलता है. डर अच्छी चीज़ है. डर से अनुशाशन बना रहता है. ये कंपनियां सरकार नहीं हैं. इनके पास पुलिस है न ही सीक्रेट एजेंसीज. इन्हे शासन नहीं आता. अंग्रेजी शासन नें भारत मैं व्यापार करने के लिए ही सिविल सर्विसेज और सेना की स्थापना की थी. अगर आपके पास ये सब या इनका सपोर्ट नहीं  हैं है तो आप लुट जाएंगे. चीन के पास ये  थे और  सफल रहा. 
ब्रिक एंड मोर्टार वाले बनिए आपकी कब्र खोदने में कसर नहीं छोड़ेंगे. किशोर बियानी ने कहा है, ये सारे ग्रोसरी वाले, बिग बास्केट, ग्रॉफर्स, दो  साल में बंद हो जाएंगे. इनका मॉडल काफी लॉस मेकिंग है. सिर्फ डिलीवरी से आप स्केल नहीं कर सकते, वह भी जब मॉडल हाइपर लोकल हो.. 

Wednesday, December 2, 2015

टाइम पास- बेदाम-मिर्च और लाल वाला तीखा नमक

"सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए क़ातिल में है. 
वक़्त आने दे बता देंगे तुम्हे ऐ आसमा, हम अभी से क्या बताएं, क्या हमारे दिल में है। " -राम प्रसाद बिस्मिल 
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पीयूष मिश्रा जी कमाल के कलाकार हैं. मैंने उनको सबसे पहले गैंग्स ऑफ़ वास्सेयपुर में देखा था. थिएटर एक्टर करिश्मा करता है. उसे नहीं चाहिए ३ करोड़ का सेट, एक्सोटिक लोकेशंस और  si -fi ड्रामा. काफी सारे कमेंट्स हैं एक मर्यादा में रह कर ! लिरिक्स जबरदस्त है. मैं इस वीडियो को बार बार देखता हूँ और एक नयी ऊर्जा महसूस करता हूँ. 

अब तो भैया , चड्डी भी सिलती इंलिशों की मिल में है. 

Jockey नें सब को पीछे छोड़ रखा है. सारे टॉप एक्टर्स बनियान की विज्ञापन कर रहे हैं, सलमान से अक्षय तक पर बिकता भैया इंग्लिश माल ही है. कुछ भारतीय ब्रांड्स माल तो देसी बेच रहे हैं पर लौंडिया अंग्रेज हैं सारी विज्ञापन में. यह दोगलापन है या भारतीयों का मोह अंग्रेजी चीजों से जुड़ा है?

मैगी २१ दिन में ५ करोड़ पैकेट बिक चुका है. मैग्गी को अब एसेंशियल सप्लाइज की लिस्ट में शामिल कर लेना चाहिए सरकारों को. तमिल नाडु की आपदा में मैगी का योगदान होना चाहिए. वैसे मौका रामदेव बाबा के पास भी है उनका मैगी एक सॉफ्ट इमोशनल पिच देकर लांच करने का. देखना है बोल बच्चन ही है या सच में संत हैं!
कबीर नें कहा है, "मन न रंगाये, रंगाये जोगी कपड़ा। 


Saturday, November 28, 2015

जब मानवता शर्मसार हो जाती है, जब खून खौल जाता है

आपने आज का टाइम्स ऑफ़ इंडिया अखबार पढ़ा होगा. जी मैं २८ नवम्बर २०१५ की बात कर रहा हूँ.
 एक माँ, अपने नवजात को ले कर ईट भट्ठे से भागती है, अपने पति के साथ, दशकों की गुलामी से मुक्त होने के लिए. पकड़ी जाती है , ईट भट्ठे के मालिक के गुंडे उसे पकड़ लेते हैं और वह फिर झौंक दी जाती है २१ रुपये दिहाड़ी पर.
पर उसके दृढ़ निश्चय  उसे आशा की किरण देते हैं. CID का मानव तश्करी दस्ता और अंतर्राष्ट्रीय न्याय मिशन उसे बैंगलोर के पास रामनगर से मुक्त करा लेते हैं.
जब मानवता शर्मसार हो जाती है, जब खून खौल जाता है..
देश में हमारे आईएएस, आईपीएस ऑफिसर्स सारे डिस्ट्रिक्ट और ताल्लुके में तैनात हैं. उनकी नाक के नीचे स्वतंत्र भारत में, आईटी सिटी बैंगलोर के समीप मानव तश्करी होती है. इसे नपुंशकता कहेंगे या नौकरी बचाने के लिए अपनी आँखें बंद कर लेना या फिर भ्रस्ट तंत्र में शोषक के साथ हो लेना?
इन विषयों पर पार्लियामेंट में चर्चा क्यों नहीं होती? जीएसटी बिल अगर आवश्यक है तो यह उससे भी ज्यादा आवश्यक है कि स्वतंत्र भारत का पार्लियामेंट, सुप्रीम कोर्ट और सरकार में बैठे लोग यह सुनिश्चित करें कि भारत से गुलामी की प्रथा और उसके छुपे अंश अविलम्ब समाप्त हों! यहां हम असहिष्णु हों, घोर असहिष्णु. यहाँ शोषण समाप्त हो. यहां हर एक भारतीय सम्मान से जीवन जी सके.
इस परिवार ने पीढ़ियों से यह गुलाम की ज़िन्दगी जी है. सुबह ५  से शाम के ७ बजे तक कोल्हू के बैल की तरह जुते हैं।  सिर्फ २१ रुपये पर काम करवाया गया. न्यूनतम डेली वेज २५२ रूपये है. विदेश सेवा के अधिकारी अगर अमेरिका में अपने इंडियन नैनी को न्यूनतम वेज नहीं देते तो मीडिया २४ घंटे रिपीट न्यूज़ दिखलाता है. SC /ST का मुद्दा खड़ा होता है एक आईएफएस अफसर की तरफदारी में. पर एक गरीब गुलाम, जिसकी जिंदगी की रोज़ चिता जलती है, कोई प्रश्न नहीं करता, कोई सेलिब्रिटी, सोशलाइट, पॉलिटिशियन इसे मुद्दा बना कर एक कार्यक्रम को "स्वच्छ भारत अभियान " की तरह क्यों नहीं चलाता? मानव तश्करी से ज्यादा बड़ा कलंक क्या लोगों का खेतों में शौच के लिए जाना है? इसके लिए विद्या बालन अच्छी जागरूकता फैला रही हैं. सराहनीय है.
आवश्यकता है आमिर जैसे लोगों की जो नर्मदा बचाओ आंदोलन को सपोर्ट करते रहे. जान मानस को जागरूक किया, सरकार और तंत्र का ध्यान खींचा।

आमिर की सनक ही उन्हें इतना सशक्त भी बनाती है और लोग उसकी बात का विश्वास भी करते हैं. सुबह का भूला अगर शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते. औरतों का क्या हैं , पतियों को संवेदना में बहा ले जाती हैं, और अगर बच्चे की सुरक्षा का मसाला इस्तेमाल कर दिया उन्होंने तो फिर तो मर्द की बुद्धि कहाँ काम करती है.
मुद्दे पर वापस आते हैं...

क्या कर्नाटक हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस इस बोंडेड लेबर के मुद्दे पर यह आदेश देगा क़ि इस परिवार को सूद समेत सारे मासिक वेतन और हरैसमेंट के कम्पेन्सेशना अविलम्ब मिलें ! सारे ईंट भट्ठों की राज्य भर में जांच हो और राज्य के लेबर कमिश्नर ४५ दिनों में बोंडेड लॅबोर मुक्त ईट भट्ठों की एक रिपोर्ट पेश करें.

NRI PM अभी कुछ समय के लिए देश में हैं. पार्लियामेंट का विंटर सेशन है. अच्छे दिन आ गए हैं. राहुल गांधी बैंगलोर आते हैं, माउंट कार्मेल कॉलेज में छात्राओं को सम्बोधित करते हैं, चले जाते हैं. अगली बार कर्णाटक आएं तो ईट भट्ठों पर मज़दूरों से भी बात करें.
क्या राहुल कर्णाटक के मुख्य मंत्री सिद्धारमैया से यह पूछेंगे कि उन्हें शर्म नहीं आती है, जब उनके राज्य के ऐसे समाचार राष्ट्र  को अपमानित करते हैं?
जिसे आज की जनता कलंक कहेगी मानवता पर और आज के शासकों पर, चाहे वो राजनीतिज्ञ हों , उच्च पदों पर आशीन अधिकारी हों , जिन्हे हमारे टैक्स के पैसो से तनख्वाह और अंग्रेजी हुकूमत के दिनों जैसे लाओ लश्कर मिलते हैं.

दुर्भाग्य है की स्टील फ्रेम भी जंग में सन गया है. सिविल सर्विसेज की ओवरहालिंग होनी चाहिए. सिर्फ एग्जाम का पैटर्न बदलने से करैक्टर वाले लोग सेलेक्ट नहीं हो सकते. आईएएस का एग्जाम पढ़ाकू सेलेक्ट करता है, लड़ाकू नहीं! भारत की स्थिति परिवर्तन और प्रतिज्ञां चाहती है. कितने आईएएस टॉपर्स ने बेस्ट सिविल सर्वेंट का पुरष्कार लिया है? कितनों को रमन मॅगसेसे अवार्ड मिला है आजतक. आज भी कई आईएएस अधिकारी जनता के बीच एलियन लगते हैं. ब्रिटिश गुलामी की लिगेसी है शायद। 


मुद्दे पर वापस आते हैं...  बोंडेड लेबर।

इस पर कोई आमिर खान यह क्यों नहीं कहता, .. देश छोड़ दूंगा अगर ऐसी संवेदना शून्यता देश में रही तो. सिर्फ अपनी सोचने वाले नेता, अफसर और हमारे रहनुमां , देश की कब सोचेंगे.
क्या इन विषयों पर भारत में आंदोलन की जरूरत है? क्या लेफ्ट पार्टीज , का समाजवादी पार्टी, क्या मायावती/बसपा , कम से कम बाबा शाहब भीम राव आंबेडकर के आदर्शों के लिए , आंदोलन चलायेगी?

क्या इन विषयों के लिए कैलाश सत्यार्थी जैसे लोग ही बने हैं?

CSR (कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी) पर KPMG नें अभी एक रिपोर्ट पेश की है. इंडियन कम्पनीज नें २ ०१५ में लगभग ४५०० करोड़ रुपये दिए हैं. क्या इन पैसों को खर्च करने पर सामाजिक संगठनो से चर्चा हुई है?
का इन पैसों को स्वेच्छ भारत के अलावा "कलंक मुक्त" भारत बनाने के लिए प्राथमिकता से खर्च नहीं किया जाना चाहिए?

References -ILO Report on Bonded Labor in India-2005

Forced labour violates the fundamental rights guaranteed to all citizens by the Indian Constitution. Article 23(1) in Part III of the Indian Constitution, relating to Fundamental Rights, states that “Traffic in human beings and begar5 and other forms of forced labour are prohibited and any contravention of the provision shall be an offence, punishable by law.” The law dealing with bonded and forced labour was legislated by the Indian Parliament in 1976. The Bonded Labour System Abolition Act (1976) of India is quite extraordinary in that it recognises (a) the overlap between forced labour and bonded labour in customary relationships, and also (b) the manifestation of these relationships in contract labour and inter-state migration, and (c) considers the nature of restraints suffered by the labourer as a result of the bonded/forced labour relationship, and makes all of these illegal


Monday, November 23, 2015

इंटरनेट पर चमकीली दुकान!

इंटरनेट पर चमकीली दुकान. बेचते सेवा और सामान, पसंद ना आये तो रिटर्न पालिसी भी है. अब कोई न कहेगा, बिका  सामान वापस होगा बदला जाएगा. कॅश ऑन डिलीवरी है. माल देखो फिर पैसे दो

बदला क्या है? फेरी वाला तब भी घर पर आता था, अब भी आता है, सामान देता है, पैसे लेता है. देखा-देखी इंटरनेट पर, सामान ग्रहण घर पर. इंटरनेट ने बड़े द्वार खोले हैं सभी व्यापारियों के लिए, अब ग्राहक दूर-दूर से आता है. लोजिस्टिक्स है तो फिर लास्ट माईल डिलीवरी भी हैइस इंटरनेट ने किसी को भी व्यापारी बना दिया है. अब डिफेंस लैब का साइंटिस्ट इंटरनेट पर चाय पत्ती बेचता है. इन्वेस्टमेंट बैंकर टैक्सी चलाता है या चलाने को मज़बूर है. कबाड़ी वाला अब OLX और Quikr कहलाता है.
नए दुकानदार ! कपडे वाले, चश्मे वाले, भाड़ा गाडी वाले, जाँघिया -चोली वाले (ज़ीवामे) , डॉक्टर वाले, सारे तरह के धंधे ऑनलाइन हैं. इंटरनेट पर दुकान सज गयी है. वेंचर कैपिटलिस्ट, एंजेल फंडिंग वाले , सीड फंडिंग, सीरीज , बी , सी , ....तमाशा ज़ारी है.
कैंटीन टेबल के आइडियाज, वीकेंड के ड्रंक स्टेज आइडियाज, कोई भी आईडिया लाओ, स्टार्ट उप बनाओ, फंडिंग लाओ, जमूरे बहाल करो, धंधे पर लगा दो. फिर किसी ने कहा स्केल करो , नहीं तो सस्टेन नहीं कर पाओगे, कि रात में कोहड़ा रोपो , सुबह तड़के बाजार में बेच दो. वारेन बुफे ने कहा आप नौ महिलाओं को प्रेग्नेंट कर के एक महीने में बच्चा पैदा नहीं कर सकते! कुछ चीजें टाइम लेती हैं. पर लोग मानते कहाँ हैं, डॉलर की होलिका जलाओ, छा जाओ. फिर पता चला सिर्फ स्केल करने से नहीं चलेगा, revenue मॉडल चाहिए।  अरे यह तो फिर भी नहीं चला, फिर स्केल बैक करो, लोगों को बर्खास्त करो. घर भेजो! फिर जरूरत पड़ेगी बहाल कर लेंगे. हाउसिंग डॉट कॉम, ज़ोमतो, टाइनी आउल, हेल्प् चैट अनगिनत नाम हैं लिस्ट लम्बी होती रहेगीअगर फेल हो गए तो इकोसिस्टम तो जिम्मेवार बना दो.
एक दिन में बिज़नेस नहीं बनता, हिंदुस्तान लिवर (HUL) को भी पूरे भारत में पैठ बनाने में ५० साल से ज्यादा लगे
इंटरनेट नें और स्मार्ट फ़ोन ने बिज़नेस का स्वरुप ही बदल दिया है. लेकिन इनके फैलाओ को बाजार समझने की भूल कर बैठे हैं इंटरनेट दुकान वाले बनिए! सिर्फ टेक्नोलॉजी और ज़रूरतें ही व्यापार को स्थापित करने के लिए काफी नहीं है. सोच बदलते बदलते पीढ़ियां लग जाती हैं.
गूगल के फाउंडर लेर्री पेज "टूथब्रश टेस्ट" की बात करते हैं. उनका कहना है की गूगल किसी नयी कंपनी में निवेश करने के पहले यह "टूथब्रश टेस्ट" करती है, जिसका अर्थ है यह सवाल-"क्या इस कंपनी के प्रोडक्ट को लोग दिन में एक से दो बार इस्तेमाल करेंगे?" अगर उत्तर हाँ में है तो गूगल उस कंपनी में निवेश करती है अन्यथा नहीं!
चूहे -बिल्ली की दौड़ चल रही है. एक ही तरह के प्रोडक्ट या सर्विस पर काफी सारे स्टार्ट अप काम कर रही हैं. इस माहौल में जिसने अपना नाम बना लिया, वह जीत गया।  इसी जीत की चाह नें ही इन्हें इस दौड़ में लगा रखा है. मर्सिनरी तरीके से नियुक्तियां को रही हैं. दस गुने पैसे लगा कर नया ग्राहक पकड़ा जा रहा है. एक-दो साल के तजुर्बे वाले आईटी वाले २० से ३० लाख की तनख्वाह पा रहे हैं. समय अच्छा है पर यह कुछ लोगों की ही दुनिया मालूम पड़ती . बाकी के लोग उसी तरह चलते है  जैसे नेचर चलता है. २४ घंटे का दिन, मिहनत की कमाई  और अपनो के साथ सुकून की दो रोटी और कुछ मस्खरी.
इस चूहे बिल्ली की रेस में जिंदगी कुत्ते की हो गयी है . फिर किसी ने कहा , आई एम बिच , आई डू नॉट रन विथ रैट्स ! शायद इसे ही ऑडेसिटी कहते हैं.

चलने दो जैसे चलता है. चलने से ही मंज़िल मिलती है. किसी ने कहा है, "अगर आपके कपड़े गंदे नहीं हैं तो आप युद्ध में थे ही नहीं. फिर न आपकी जीत है न हार! 

मैं बस देख रहा हूँ कि ऊँट किस करवट बैठता है. 

शेर सुनिये।
उर्दू के ताल्लुक़ से यह भेद नहीं खुलतायह जश्न , यह हंगामा , खिदमत है के साजिश है.- शाहिर लुधियानवी


नाथन की "ग्लोबल एचआर कम्युनिटी" , एचआर वालों का नॉस्कॉम?

नाथन सर का मैं बड़ा वाला फैन हूं ! डेलोइट (हिंदी में बोले तो Deloitte) को  अपनी सेवा के १९ स्वर्णिम वर्ष समर्पित करने के उपरांत अभी-अभी निवृ...