Whatsapp पर जोक आया है; "कब्रगाह वो जगह है, जहां वे लोग दबे हैं, जो यह सोचते थे की उनके बगैर यह दुनिया नहीं चल सकती. "
कभी-कभी इस मुगालते में हम सब आ जाते हैं. परिवार, समाज, संस्था, कपंनी, हर जगह आपके ऐसे लोग मिल जाएंगे.
कंपनी से बेहद खफा और निराश हो कर जब रिजाइन कर देंगे या इन्हे निकाल दिया जाएगा, तब भी ये अपनी अदा से बाज़ नहीं आते.
समय के साथ , पढ़े लिखे बेकार बढ़ते गए. एमबीए कालेज बंद हो ते गए, आईआईएम वाले भी बेरोज़गार भटकने लगे. नौकरी डाट कॉम पर आईआईटी +आईआईएम को मैंने कोचिंग सेंटर में पढ़ाते देखा है, दिहाड़ी पर.
अब तो प्रीमियर बी स्कूल वाले भी मिड लाइफ क्राइसिस में जाबलेस हैं. यह अच्छी स्थिति नहीं है. इनको तो हराम की नौकरी एक बार मिल गयी तो यह सरकार इस समाज का काम है की उनकी जमींदारी बानी रहे, चाहे कितने ही निकम्मे और कलंक क्यों न हों.
मुझे यह हमेशा लगता रहा की अगर मैं ५०% सीनियर लोगों को काम से निकाल दूँ तो उनके कार साफ़ करने का भी काम कोई नहीं देगा.
समय के साथ ऐसे लकी लोगों की संख्या बढ़ती ही जा रही है तो कंपनी पर बोझ बन गए हैं. दिमाग कुण्ड हो गया है. लोग उन्हें धरती का बोझ समझने लगे हैं पर उनकी किस्मत का Duracell है कि चलता ही जा रहा है.
रेसेप्शनिस्ट बैंगलोर की आईटी कंपनी में हेड ऑफ़ ह्यूमन रिसोर्सेज हो जाती हैं. सब लिपिस्टिक का कमाल है. फिर उसकी टीम में MSW वाले भर जाते हैं.. MNC कम्पनीज में यह अवैध काम कहीं ज्यादा है.
मुझे इस प्रीमियर बी स्कूल से सख्त नफरत है. इसके नाम पर सिर्फ एलिटिस्म बढ़ा है. सेरेमोनियल सूडो इंटेलेक्चुअल भर गए हैं. HR में बंगालिओं की पूरी फ़ौज़ सिर्फ अंग्रेजी के कारण जमा हो गयी है.मोटी सैलरी चाहिए लेकिन , रियल काम से स्ट्रेस हो जाता है मैडम और सर को.
अभी फ्लिपकार्ट नें भी एक HR वाले को एम्प्लोयी ब्रांडिंग स्पेशलिस्ट बहाल कर लिया था पर सच्चाई काफी जल्दी सामने आ गयी और जनाब बाहर समाज सेवा कर रहे हैं.
मिंत्रा और फ्लिपकार्ट नें HR बोस्सेस को बाहर का रास्ता दिखा दिया क्योंकि उन्हें लगा यह तो सारे कोंस्टीटूशनल पेंशनर्स हैं. लोग तो एहि कह रहे हैं, मैं तो बस सुनता हूँ. इनसे कंपनी का कोई भला नहीं हो रहा है. बड़े नाम वाले XLRI के भी पुराने लोग अब हीट झेल रहे हैं. डायनोसोर कम्पनियाँ इन्हे झेल रही हैं.
कॉर्पोरेट में रिटायरमेंट आगे ४५ कर देनी चाहिए. उसके बाद अगर दम हो तो इंटरप्रेन्योर बने, या समाजसेवा करें. क्या मतलब है मरे इंसान को १ करोड़ की सैलरी देने का. काम का आदमी बहाल कीजिये, इतने में १५ से २० लोगों को रोजगार मिलेगा. २० परिवार चल जाएगा.
एक MLA की सैलरी २ लाख हो रही है तो लोगों की जान निकल रही है, यहां तो जो इलीट बने फिर रहे हैं, धरती पर बोझ उनको २ से ५ लाख महीने के आराम से मिल रहे हैं.
सैलरी पर लगाम लगनी जरूरी है. करप्सन तो सबसे ज्यादा प्राइवेट सेक्टर में है, इसकी तह में जाएंगे तो बदबू आएगी.
ITC पेपर एंड पल्प कैंपस इंटरव्यू के लिए SIBM ऑफ-कैंपस आई थी २००२ में. हमारा ६ से ७ शॉर्टलिस्टेड लोगों का दो दिन का साक्षात्कार होटल ले मेरीडियन पूना में चला. दो दिन सुबह से साम तक, बुफे लंच एंड डिनर फ्री. हम बड़े इम्प्रेस्सेड थे. ३ लोग शॉर्टलिस्ट किये गए और हमें हैदराबाद कॉर्पोरेट ऑफिस बुलाया गया. गेस्ट हाउस में रुके. दूसरे दिन शाम के ३ बजे एक बिज़नेस के VP से इंटरव्यू हुआ. सिर्फ १५ मिनट का सभी तीन कैंडिडेट्स के साथ, हमें Paradise होटल लंच करने भेज दिया गया. फिर ऑफर लेटर रेडी किया जाने लगा. चीफ़ मैनेजर-HR ने हमे ऑफर लेटर की झलक अपनी टेबल के दूसरे ओर से दिखा दिया. फिर हमें मेडिकल टेस्ट के लिए यशोदा हॉस्पिटल भेज दिया गया. ऑफर नहीं मिला और हमें यह कह कर वापस भेज दिया की हम कॉलेज को ऑफर लेटर भेज देंगे. ऑफर लेटर कभी नहीं आया.
तो फिर यह सब तमाशा क्या था? यह तो हमें काफी महीनों बाद पता चला कि पूरा हायरिंग प्रोसेस फेक था. दरअसल , VP -HR की बेटी पूना में पढ़ती थी, VP साहब को प्राइवेट टूर करना था पूना का और बेटी और उनके दोस्तों को ले मेरीडियन में फ्री लंच -डिनर कराना था. तब हमें ध्यान आया कि बुफे लंच और डिनर पर हमने उनकी ५ से ६ स्कूली लड़कियों को रोज़ हमारे साथ लंच डिनर करते पाया था. हरामीपने की इससे बड़ी क्या गाथा आपको सुननी है. ऐसी मेरे पास कम से कम ५ अन्य कहानियाँ हैं.
इस बदबू में हम जी लेंगे!
कभी-कभी इस मुगालते में हम सब आ जाते हैं. परिवार, समाज, संस्था, कपंनी, हर जगह आपके ऐसे लोग मिल जाएंगे.
कंपनी से बेहद खफा और निराश हो कर जब रिजाइन कर देंगे या इन्हे निकाल दिया जाएगा, तब भी ये अपनी अदा से बाज़ नहीं आते.
समय के साथ , पढ़े लिखे बेकार बढ़ते गए. एमबीए कालेज बंद हो ते गए, आईआईएम वाले भी बेरोज़गार भटकने लगे. नौकरी डाट कॉम पर आईआईटी +आईआईएम को मैंने कोचिंग सेंटर में पढ़ाते देखा है, दिहाड़ी पर.
अब तो प्रीमियर बी स्कूल वाले भी मिड लाइफ क्राइसिस में जाबलेस हैं. यह अच्छी स्थिति नहीं है. इनको तो हराम की नौकरी एक बार मिल गयी तो यह सरकार इस समाज का काम है की उनकी जमींदारी बानी रहे, चाहे कितने ही निकम्मे और कलंक क्यों न हों.
मुझे यह हमेशा लगता रहा की अगर मैं ५०% सीनियर लोगों को काम से निकाल दूँ तो उनके कार साफ़ करने का भी काम कोई नहीं देगा.
समय के साथ ऐसे लकी लोगों की संख्या बढ़ती ही जा रही है तो कंपनी पर बोझ बन गए हैं. दिमाग कुण्ड हो गया है. लोग उन्हें धरती का बोझ समझने लगे हैं पर उनकी किस्मत का Duracell है कि चलता ही जा रहा है.
रेसेप्शनिस्ट बैंगलोर की आईटी कंपनी में हेड ऑफ़ ह्यूमन रिसोर्सेज हो जाती हैं. सब लिपिस्टिक का कमाल है. फिर उसकी टीम में MSW वाले भर जाते हैं.. MNC कम्पनीज में यह अवैध काम कहीं ज्यादा है.
मुझे इस प्रीमियर बी स्कूल से सख्त नफरत है. इसके नाम पर सिर्फ एलिटिस्म बढ़ा है. सेरेमोनियल सूडो इंटेलेक्चुअल भर गए हैं. HR में बंगालिओं की पूरी फ़ौज़ सिर्फ अंग्रेजी के कारण जमा हो गयी है.मोटी सैलरी चाहिए लेकिन , रियल काम से स्ट्रेस हो जाता है मैडम और सर को.
अभी फ्लिपकार्ट नें भी एक HR वाले को एम्प्लोयी ब्रांडिंग स्पेशलिस्ट बहाल कर लिया था पर सच्चाई काफी जल्दी सामने आ गयी और जनाब बाहर समाज सेवा कर रहे हैं.
मिंत्रा और फ्लिपकार्ट नें HR बोस्सेस को बाहर का रास्ता दिखा दिया क्योंकि उन्हें लगा यह तो सारे कोंस्टीटूशनल पेंशनर्स हैं. लोग तो एहि कह रहे हैं, मैं तो बस सुनता हूँ. इनसे कंपनी का कोई भला नहीं हो रहा है. बड़े नाम वाले XLRI के भी पुराने लोग अब हीट झेल रहे हैं. डायनोसोर कम्पनियाँ इन्हे झेल रही हैं.
कॉर्पोरेट में रिटायरमेंट आगे ४५ कर देनी चाहिए. उसके बाद अगर दम हो तो इंटरप्रेन्योर बने, या समाजसेवा करें. क्या मतलब है मरे इंसान को १ करोड़ की सैलरी देने का. काम का आदमी बहाल कीजिये, इतने में १५ से २० लोगों को रोजगार मिलेगा. २० परिवार चल जाएगा.
एक MLA की सैलरी २ लाख हो रही है तो लोगों की जान निकल रही है, यहां तो जो इलीट बने फिर रहे हैं, धरती पर बोझ उनको २ से ५ लाख महीने के आराम से मिल रहे हैं.
सैलरी पर लगाम लगनी जरूरी है. करप्सन तो सबसे ज्यादा प्राइवेट सेक्टर में है, इसकी तह में जाएंगे तो बदबू आएगी.
ITC पेपर एंड पल्प कैंपस इंटरव्यू के लिए SIBM ऑफ-कैंपस आई थी २००२ में. हमारा ६ से ७ शॉर्टलिस्टेड लोगों का दो दिन का साक्षात्कार होटल ले मेरीडियन पूना में चला. दो दिन सुबह से साम तक, बुफे लंच एंड डिनर फ्री. हम बड़े इम्प्रेस्सेड थे. ३ लोग शॉर्टलिस्ट किये गए और हमें हैदराबाद कॉर्पोरेट ऑफिस बुलाया गया. गेस्ट हाउस में रुके. दूसरे दिन शाम के ३ बजे एक बिज़नेस के VP से इंटरव्यू हुआ. सिर्फ १५ मिनट का सभी तीन कैंडिडेट्स के साथ, हमें Paradise होटल लंच करने भेज दिया गया. फिर ऑफर लेटर रेडी किया जाने लगा. चीफ़ मैनेजर-HR ने हमे ऑफर लेटर की झलक अपनी टेबल के दूसरे ओर से दिखा दिया. फिर हमें मेडिकल टेस्ट के लिए यशोदा हॉस्पिटल भेज दिया गया. ऑफर नहीं मिला और हमें यह कह कर वापस भेज दिया की हम कॉलेज को ऑफर लेटर भेज देंगे. ऑफर लेटर कभी नहीं आया.
तो फिर यह सब तमाशा क्या था? यह तो हमें काफी महीनों बाद पता चला कि पूरा हायरिंग प्रोसेस फेक था. दरअसल , VP -HR की बेटी पूना में पढ़ती थी, VP साहब को प्राइवेट टूर करना था पूना का और बेटी और उनके दोस्तों को ले मेरीडियन में फ्री लंच -डिनर कराना था. तब हमें ध्यान आया कि बुफे लंच और डिनर पर हमने उनकी ५ से ६ स्कूली लड़कियों को रोज़ हमारे साथ लंच डिनर करते पाया था. हरामीपने की इससे बड़ी क्या गाथा आपको सुननी है. ऐसी मेरे पास कम से कम ५ अन्य कहानियाँ हैं.
इस बदबू में हम जी लेंगे!
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