इंटरनेट पर चमकीली दुकान. बेचते सेवा और सामान, पसंद ना आये तो रिटर्न पालिसी भी है. अब कोई न कहेगा, बिका सामान न वापस होगा न बदला जाएगा. कॅश ऑन डिलीवरी है. माल देखो फिर पैसे दो.
बदला क्या है? फेरी वाला तब भी घर पर आता था, अब भी आता है, सामान देता है, पैसे लेता है. देखा-देखी इंटरनेट पर, सामान ग्रहण घर पर. इंटरनेट ने बड़े द्वार खोले हैं सभी व्यापारियों के लिए, अब ग्राहक दूर-दूर से आता है. लोजिस्टिक्स है तो फिर लास्ट माईल डिलीवरी भी है. इस इंटरनेट ने किसी को भी व्यापारी बना दिया है. अब डिफेंस लैब का साइंटिस्ट इंटरनेट पर चाय पत्ती बेचता है. इन्वेस्टमेंट बैंकर टैक्सी चलाता है या चलाने को मज़बूर है. कबाड़ी वाला अब OLX और Quikr कहलाता है.
नए दुकानदार ! कपडे वाले, चश्मे वाले, भाड़ा गाडी वाले, जाँघिया -चोली वाले (ज़ीवामे) , डॉक्टर वाले, सारे तरह के धंधे ऑनलाइन हैं. इंटरनेट पर दुकान सज गयी है. वेंचर कैपिटलिस्ट, एंजेल फंडिंग वाले , सीड फंडिंग, सीरीज ए , बी , सी , ....तमाशा ज़ारी है.
कैंटीन टेबल के आइडियाज, वीकेंड के ड्रंक स्टेज आइडियाज, कोई भी आईडिया लाओ, स्टार्ट उप बनाओ, फंडिंग लाओ, जमूरे बहाल करो, धंधे पर लगा दो. फिर किसी ने कहा स्केल करो , नहीं तो सस्टेन नहीं कर पाओगे, कि रात में कोहड़ा रोपो , सुबह तड़के बाजार में बेच दो. वारेन बुफे ने कहा आप नौ महिलाओं को प्रेग्नेंट कर के एक महीने में बच्चा पैदा नहीं कर सकते! कुछ चीजें टाइम लेती हैं. पर लोग मानते कहाँ हैं, डॉलर की होलिका जलाओ, छा जाओ. फिर पता चला सिर्फ स्केल करने से नहीं चलेगा, revenue मॉडल चाहिए। अरे यह तो फिर भी नहीं चला, फिर स्केल बैक करो, लोगों को बर्खास्त करो. घर भेजो! फिर जरूरत पड़ेगी बहाल कर लेंगे. हाउसिंग डॉट कॉम, ज़ोमतो, टाइनी आउल, हेल्प् चैट …अनगिनत नाम हैं …लिस्ट लम्बी होती रहेगी. अगर फेल हो गए तो इकोसिस्टम तो जिम्मेवार बना दो.
एक दिन में बिज़नेस नहीं बनता, हिंदुस्तान लिवर (HUL) को भी पूरे भारत में पैठ बनाने में ५० साल से ज्यादा लगे.
इंटरनेट नें और स्मार्ट फ़ोन ने बिज़नेस का स्वरुप ही बदल दिया है. लेकिन इनके फैलाओ को बाजार समझने की भूल कर बैठे हैं इंटरनेट दुकान वाले बनिए! सिर्फ टेक्नोलॉजी और ज़रूरतें ही व्यापार को स्थापित करने के लिए काफी नहीं है. सोच बदलते बदलते पीढ़ियां लग जाती हैं.
गूगल के फाउंडर लेर्री पेज "टूथब्रश टेस्ट" की बात करते हैं. उनका कहना है की गूगल किसी नयी कंपनी में निवेश करने के पहले यह "टूथब्रश टेस्ट" करती है, जिसका अर्थ है यह सवाल-"क्या इस कंपनी के प्रोडक्ट को लोग दिन में एक से दो बार इस्तेमाल करेंगे?" अगर उत्तर हाँ में है तो गूगल उस कंपनी में निवेश करती है अन्यथा नहीं!
चूहे -बिल्ली की दौड़ चल रही है. एक ही तरह के प्रोडक्ट या सर्विस पर काफी सारे स्टार्ट अप काम कर रही हैं. इस माहौल में जिसने अपना नाम बना लिया, वह जीत गया। इसी जीत की चाह नें ही इन्हें इस दौड़ में लगा रखा है. मर्सिनरी तरीके से नियुक्तियां को रही हैं. दस गुने पैसे लगा कर नया ग्राहक पकड़ा जा रहा है. एक-दो साल के तजुर्बे वाले आईटी वाले २० से ३० लाख की तनख्वाह पा रहे हैं. समय अच्छा है पर यह कुछ लोगों की ही दुनिया मालूम पड़ती . बाकी के लोग उसी तरह चलते है जैसे नेचर चलता है. २४ घंटे का दिन, मिहनत की कमाई और अपनो के साथ सुकून की दो रोटी और कुछ मस्खरी.
इस चूहे बिल्ली की रेस में जिंदगी कुत्ते की हो गयी है . फिर किसी ने कहा , आई एम ए बिच , आई डू नॉट रन विथ रैट्स ! शायद इसे ही ऑडेसिटी कहते हैं.
चलने दो जैसे चलता है. चलने से ही मंज़िल मिलती है. किसी ने कहा है, "अगर आपके कपड़े गंदे नहीं हैं तो आप युद्ध में थे ही नहीं. फिर न आपकी जीत है न हार!
मैं बस देख रहा हूँ कि ऊँट किस करवट बैठता है.
शेर सुनिये।
उर्दू के ताल्लुक़ से यह भेद नहीं खुलता, यह जश्न , यह हंगामा , खिदमत है के साजिश है.- शाहिर लुधियानवी
बदला क्या है? फेरी वाला तब भी घर पर आता था, अब भी आता है, सामान देता है, पैसे लेता है. देखा-देखी इंटरनेट पर, सामान ग्रहण घर पर. इंटरनेट ने बड़े द्वार खोले हैं सभी व्यापारियों के लिए, अब ग्राहक दूर-दूर से आता है. लोजिस्टिक्स है तो फिर लास्ट माईल डिलीवरी भी है. इस इंटरनेट ने किसी को भी व्यापारी बना दिया है. अब डिफेंस लैब का साइंटिस्ट इंटरनेट पर चाय पत्ती बेचता है. इन्वेस्टमेंट बैंकर टैक्सी चलाता है या चलाने को मज़बूर है. कबाड़ी वाला अब OLX और Quikr कहलाता है.
नए दुकानदार ! कपडे वाले, चश्मे वाले, भाड़ा गाडी वाले, जाँघिया -चोली वाले (ज़ीवामे) , डॉक्टर वाले, सारे तरह के धंधे ऑनलाइन हैं. इंटरनेट पर दुकान सज गयी है. वेंचर कैपिटलिस्ट, एंजेल फंडिंग वाले , सीड फंडिंग, सीरीज ए , बी , सी , ....तमाशा ज़ारी है.
कैंटीन टेबल के आइडियाज, वीकेंड के ड्रंक स्टेज आइडियाज, कोई भी आईडिया लाओ, स्टार्ट उप बनाओ, फंडिंग लाओ, जमूरे बहाल करो, धंधे पर लगा दो. फिर किसी ने कहा स्केल करो , नहीं तो सस्टेन नहीं कर पाओगे, कि रात में कोहड़ा रोपो , सुबह तड़के बाजार में बेच दो. वारेन बुफे ने कहा आप नौ महिलाओं को प्रेग्नेंट कर के एक महीने में बच्चा पैदा नहीं कर सकते! कुछ चीजें टाइम लेती हैं. पर लोग मानते कहाँ हैं, डॉलर की होलिका जलाओ, छा जाओ. फिर पता चला सिर्फ स्केल करने से नहीं चलेगा, revenue मॉडल चाहिए। अरे यह तो फिर भी नहीं चला, फिर स्केल बैक करो, लोगों को बर्खास्त करो. घर भेजो! फिर जरूरत पड़ेगी बहाल कर लेंगे. हाउसिंग डॉट कॉम, ज़ोमतो, टाइनी आउल, हेल्प् चैट …अनगिनत नाम हैं …लिस्ट लम्बी होती रहेगी. अगर फेल हो गए तो इकोसिस्टम तो जिम्मेवार बना दो.
एक दिन में बिज़नेस नहीं बनता, हिंदुस्तान लिवर (HUL) को भी पूरे भारत में पैठ बनाने में ५० साल से ज्यादा लगे.
इंटरनेट नें और स्मार्ट फ़ोन ने बिज़नेस का स्वरुप ही बदल दिया है. लेकिन इनके फैलाओ को बाजार समझने की भूल कर बैठे हैं इंटरनेट दुकान वाले बनिए! सिर्फ टेक्नोलॉजी और ज़रूरतें ही व्यापार को स्थापित करने के लिए काफी नहीं है. सोच बदलते बदलते पीढ़ियां लग जाती हैं.
गूगल के फाउंडर लेर्री पेज "टूथब्रश टेस्ट" की बात करते हैं. उनका कहना है की गूगल किसी नयी कंपनी में निवेश करने के पहले यह "टूथब्रश टेस्ट" करती है, जिसका अर्थ है यह सवाल-"क्या इस कंपनी के प्रोडक्ट को लोग दिन में एक से दो बार इस्तेमाल करेंगे?" अगर उत्तर हाँ में है तो गूगल उस कंपनी में निवेश करती है अन्यथा नहीं!
चूहे -बिल्ली की दौड़ चल रही है. एक ही तरह के प्रोडक्ट या सर्विस पर काफी सारे स्टार्ट अप काम कर रही हैं. इस माहौल में जिसने अपना नाम बना लिया, वह जीत गया। इसी जीत की चाह नें ही इन्हें इस दौड़ में लगा रखा है. मर्सिनरी तरीके से नियुक्तियां को रही हैं. दस गुने पैसे लगा कर नया ग्राहक पकड़ा जा रहा है. एक-दो साल के तजुर्बे वाले आईटी वाले २० से ३० लाख की तनख्वाह पा रहे हैं. समय अच्छा है पर यह कुछ लोगों की ही दुनिया मालूम पड़ती . बाकी के लोग उसी तरह चलते है जैसे नेचर चलता है. २४ घंटे का दिन, मिहनत की कमाई और अपनो के साथ सुकून की दो रोटी और कुछ मस्खरी.
इस चूहे बिल्ली की रेस में जिंदगी कुत्ते की हो गयी है . फिर किसी ने कहा , आई एम ए बिच , आई डू नॉट रन विथ रैट्स ! शायद इसे ही ऑडेसिटी कहते हैं.
चलने दो जैसे चलता है. चलने से ही मंज़िल मिलती है. किसी ने कहा है, "अगर आपके कपड़े गंदे नहीं हैं तो आप युद्ध में थे ही नहीं. फिर न आपकी जीत है न हार!
मैं बस देख रहा हूँ कि ऊँट किस करवट बैठता है.
शेर सुनिये।
उर्दू के ताल्लुक़ से यह भेद नहीं खुलता, यह जश्न , यह हंगामा , खिदमत है के साजिश है.- शाहिर लुधियानवी
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