Sunday, May 26, 2019

बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा ?

कॉर्पोरेट के ल्युटियन्स लीब्रण्डू आपको बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काफी मिलेंगे. यहां दो तरह के लोग हैं! एक तो वे जो कबीले के वासी हैं. मंगलौर ग्रुप, मलयाली ग्रुप, बंगाली ग्रुप, इत्यादि. ये काफी संगठित तरीके से काम करते हैं. इनके अपने कायदे हैं और टेरीटोरियल भी हैं ये. दुसरे को अपने ग्रुप में शामिल नहीं करते. बंगाली और मलयाली मैनेजमेंट कॉलेजेस के प्लेसमेंट टीम में भी खूब मिलेंगे. इनके शौक और आदर्श भी काफी सामान हैं. दुसरे वे जो प्रीमियर एजुकेशन ले कर आते हैं. यह कोई हेट स्पीच नहीं है, ये आइना दिखने की कोशिश है वहाँ जहां हम ऑस्ट्रिच की तरह सैंड में सर -गर्दन घुसेड़ चुके हैं. जब तक अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता. सभी लोग एक जैसे नहीं होते. सच बोलने की ज़रुरत है. यह रिस्क कौन लेगा? बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा ? एचआर में बैंगलोर में आपको ये काफी मिलेंगे. ओवर कॉन्फिडेंस, अंग्रेजी और लिबरल, साथ साथ गज़ब के फट्टू , बेहद स्वर्थी।  बंगालियों की सारी  हेकड़ी बंगाल तक ही सीमित है, और फिर जेएनयू में. अन्य जगहों में ये अपनी औकात जानते हैं....चिक-चिक नहीं करते. इन ग्रुप्स जिनकी मैंने चर्चा ऊपर की है ने अब यह कबीले वाली बिमारी तमिलों, कन्नड़ ग्रुप में भी फैला दी है. सब से खुल कर अगर कोई जाति वाद करता दिखे गए तो ये हैं  तेलुगु बंधु . इनका तो हैकिंग  लेवल तक का जुगाड़ रहता है. क्वेश्चन पेपर लीक, इंटरव्यू फिक्स्ड, भाई मैं यह इस लिए लिख रहा हूँ क्योंकि मैंने यह एचआर में रह कर देखा है. मैंने लिंकेडीन पर जब कंपनी के अंदर टीम की कैरेक्टरिस्टिक देखी तो पता लगा की कई कम्पनियाँ ऐसे नियुक्ति करती है, जैसे नौकरी डॉट कॉम से नहीं, बल्कि बंगाली, मलयाली, तमिल, तेलुगु मैट्रिमोनियल से बन्दे उठा रही हों. मेरा रिसर्च तो यह बताता है कि आप अगर जॉब ढूंढ़ रहे हैं तो फिर आप चेक करें कौन की कंपनी, उसके अंदर कौन सी टीम में आपको आपके बिरादरी के लोग ज्यादा दीखते हैं, आप उनसे संपर्क करें और भाईचारा के  रास्ते अपनी मजिल पाएं.
सब से ज्यादा गवर्नेंस, एथिक्स की बात यहीं होती है पर सबसे ज्यादा इनकी भद यहीं पिटती है. गन्दा मज़ाक है पर सच है. टीम की रिक्रूटमेंट ऐसे हो रही है जैसे आप इनकी दुल्हन या दूल्हा ढूढ़ रहे हैं... जनम जनम का साथ है,, चुनने दो इनको अपनी मर्ज़ी का.सारी गवर्नेंस चूल्हे में डाल दी है इस व्यवस्था ने. मेरे पिछले कंपनी का एक सीनियर मैनेजर था, उसका मैनेजर कनाडा में , वह भी मलयाली, अब इस इंडिया वाले मैनेजर तो अपने टीम में एक मैनेजर बहाल करना है. बाँदा चार्टर्ड अकाउंटेंट चाहिए, पर इसे मलयाली ही लेना है, दो महीने तक सब को रिजेक्ट करता रहा फिर अपने पुराने मलयाली सहकर्मी को रेफेर करता है,,उसे हायर कर लेता है...बिलकुल एवरेज , नॉन प्रोफेशनल बंदा हायर हो गया.  फिर वेंडर चाहिए, वह भी मलयाली, लीगल एडवाइजर चाहिए, वह भी मलयाली. गवर्नेंस ढकोसला है.
हराम की तनख़्वाह  लेने वाले सोशलाइट रीजनल ऑफिस में सिंगापुर में बैठते हैं. अंग्रेजी नाम है तो आप फ्रांस में कॉर्पोरेट ऑफिस में एचआर में काम करने के लिए भी बुला लिए जाओगे. आप जितने अधर्मी और चाटने में निपुण , आप उतने ऊँचे बढ़ते जाओगे.
मेरे सामने कॉर्पोरेट में ऐसे कई दोगले लोग हैं जो सारी कॉर्पोरेट की मर्यादा की धज्जियाँ उड़ा  चुके हैं, और वे एक लम्बी ज़िन्दगी वहाँ जी रहे हैं.
आपके  अंदर अगर सही खून हैं जो मर्यादित है, उबाल लेता है, आँखों में पानी है, अपने कुल का सम्मान है तो बात मान लीजिए आप इस गटर में नहीं जी सकते.
मैं अभी एक शादी में अपने कुछ बेहद पुराने सहकर्मियों से मिला, वे सभी पिछली १२-१४ वर्षों से उसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में, उसकी लाश नोच रहे हैं, जहां से उन्हें कई बार निकालने की कोशिश हुई पर वे बचते रहे, उनके बॉस उन्हें बचाते रहे,  क्यों?  क्योंकि ये इतने मरे लोग हैं जो इनके आगे सर भी नहीं उठा सकते, नौकरों की तरह सब सुनते हैं, रोज़ ज़लील होते हैं, पर  चूं तक नहीं करते. ऐसे हराम के ग़ुलाम कहाँ मिलेंगे? उन सहकर्मियों ने जब शादी में मुझे देखा तो कलेजा उनके मुँह आ गया. उन्हें मालूम हैं कि मैं उनकी इस गन्दी दशा को और उनके हराम की सैलरी को जानता हूँ. उनके चेहरे मुझे लाश की तरह लग रहे थे. उनके रोम-रोम से शदियों की ग़ुलामी की झलक दिख रही थी. सुसज्जित कुल वधुओं के वेश में ये वेश्याएँ ! क्षमा कीजियेगा, सच इतना ही कड़वा होता है. मैं यह बात हर्ष से नहीं, बल्कि दर्द से बता रहा हूँ, की आज मोटी सैलरी और स्टेबल नौकरी के पीछे घिन आने वाली आत्मा का समर्पण हैं. माले मुफ्त, दिले बेरहम, इन्हे इस नर्क से निकलने भी नहीं देता. खुद पर ये शर्मिदा हैं, पर फिर भी ज़िंदा हैं. ईश्वर इनके मुक्त करो!

Saturday, May 11, 2019

जब कुँए में ही भांग पड़ी हो

हिंदी में  एक कहावत है; जब कुँए में ही भांग पड़ी हो ! भारतेंदु ने कहा था ; आवहु सब मिल रोवहु भाई , हा हा , भारत दुर्दशा देखि नहीं जाई! आज मुझे HR के बारे में यही कहने में कोई संकोच नहीं है.
किसी ने सही कहा है ; ";ज़िन्दगी लम्बी नहीं, बड़ी होनी चाहिए ! ". पद्म श्री चाहे आप चंदा कोच्चर को दें या फिर जे के सिन्हा को, बात तभी बनती है जब आप दूसरों की ज़िन्दगी बदल देते हैं!
आपने यह कहावत सुनी होगी; 'चार आने की मुर्गी, बारह आने का मसाला! ', या फिर यह तो वही हुआ कि ;'खाया पिया कुछ नहीं, गिलास तोड़ा , बारह आना. ' एक्सपायरी डेट पर कर चुकी बुड्ढी HR की महिलायेँ अब Catalyst Inc जैसी संस्थाओं से डाइवर्सिटी और इन्क्लूसन का अवार्ड लेने न्यू यार्क चली जाती हैं. माले मुफ्त दिले बेरहम।
लगभग २० साल पहले डेव उलरिच ने एक क़िताब  लिखी थी;
जब मोदी सरकार तय है तो फिर ७ बिलियन डॉलर का चुनाव कोई मतलब नहीं रखता, पर क्या करें, ४० चोरों को लगता है, अली बाबा से दो दो हाथ कर लें, तो हमने भी कहा, लड़ ले भाई! अगली बार नो चुनाव !

The HR Scorecard: Linking People, Strategy, and Performance! HR वालों ने भावनाओं को न समझते हुए, जुमले अपनी माँग में, चेस्ट नंबर की तरह सीने पर चिपका लिया; HR बिज़नेस पार्टनर , एम्प्लोयी चैंपियन, कैटेलिस्ट , चेंज एजेंट, इत्यादि! स्वनामधन्य मठाधीश कुकुरमुत्तों की तरह उग आये कंपनियों में. नाम बड़े और दर्शन छोटे! एक अमरीकी फार्मा कंपनी है; alcon ! यह novartis की कंपनी है. alcon को HR बिज़नेस पार्टनर चाहिए. लिंकेडीन पर alcon ने 

मिर्ज़ा ग़ालिब  का एक शेर अर्ज़ है: "अगर अपना कहा तुम, आप समझे तो क्या समझे मज़ा कहने का जब है, एक कहे और दूसरा समझे ज़बान ए मीर समझे और कलाम ए मिर्ज़ा समझे मगर इनका कहा यह आप समझें, या खुदा समझे"

यह जान लेना ज़रूरी है की किसी को लोकप्रिय क्यों होना है, उसके लोक्रपिया होने का क्या मतलब है और वो किनके लोकप्रिय होना चाहते हैं? 
दूसरा सवाल हम अपने आप से कर सकते हैं; क्या आप अभी लोकप्रिय नहीं  हैं? अगर आपको काम ही लोग पसंद करते हों, तो यह  जाँच करना अच्छा रहेगा, की किन कारणों से वे आपको पसंद करते हैं. क्या आपके लोकप्रिय होने के पीछे कपि उद्देश्य छिपा है? अगर हाँ तो क्या आप इसे ज़ाहिर करना चाहते हैं या नहीं? 
मेरा मानना है लोकप्रिय बनना आपके विचारों और व्यक्तित्व का लोगों से एका होने से है. बात आपकी संवेदना और लोगों की संवेदनाओं का सामंजस्य होने से है. आपकी वाणी भी  विचार और संवेदनाओं का सही अभिव्यक्ति करती हो तो बात बनती है. ध्यान रहे , आप संवाद करते हों न की सिर्फ प्रवचन. आपका मकसद लोगों को समझना भी हो न की सिर्फ समझाना या फिर उनका नेतृत्व करने मात्र को विवश होना. 
आपको ओरिजिनल होना होगा, न कि किसी की कॉपी ! लोकप्रिय होना कोई सफल कमाऊ फिल्म बनाना नहीं है, यह कमाई इसका आउटकम हो तो ठीक है. 
मेरी समझ में लोकप्रिय होने का कोई सेट फार्मूला नहीं है. यह एक लम्बी यात्रा है, जिसमे कई पड़ाव हैं, कई झटके भी हैं. घोर निराशा और अवसाद भी. अगर आप एक वर्ग के लोकप्रिय हैं, तो एक दूसरा वर्ग आपकी खिलाफत के लिया खड़ा हो जाएगा, आप तीक्ष्ण आरोप-आलोचना, प्रत्यारोप के दौर से भी गुज़रेंगे. अब संतुलन, शब्दों का, विचारों का, संवेदनाओं का  भी आप स्वाद चखेंगे. कुल मिलाकर आप पॉपुलर होंगे पर इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि यह सिर्फ सुहाना सफर है. 
दिल से आप अपने काम को करते रहिये, कोई PR एजेंसी रखने की ज़रूरत नहीं. आपके फैन आपके अपने अनुभवों से फॉलो करते रहेंगे. आप उन्हें निरंतर जोड़े रखें.  

नाथन की "ग्लोबल एचआर कम्युनिटी" , एचआर वालों का नॉस्कॉम?

नाथन सर का मैं बड़ा वाला फैन हूं ! डेलोइट (हिंदी में बोले तो Deloitte) को  अपनी सेवा के १९ स्वर्णिम वर्ष समर्पित करने के उपरांत अभी-अभी निवृ...