Monday, March 19, 2018

खरबूजा, खरबूजे को देख कर रंग बदलता है. Leadership lessons learnt in trenches not classrooms!

 फिल्म रेड  एक जांबाज़ अफसर की कहानी है जो  अपना असर सब के मन मस्तिष्क पर छोड़ जाता है. कमाल  की बात तब होती है, जब, इनके साथी कर्मचारी जो वर्षों की गुलामी के बाद अपने अस्तित्वा को, अपनी ईमानदारी और निष्ठा को पा लेती है, अति गर्वित होकर, एक लीडर की वजह से , जिसने अपने और अपनों की जान की परवाह किये बगैर एक ऐतिहासिक  कहानी बना डाली, जिसपर आज ब्लॉक बस्टर  फिल्म बनी है.
रेड में एक लीडरशिप लेशन है जो संक्रामक है. इन्फेक्शस  जिसे अंग्रेजी में कहते हैं !
इस रेड ने  साधारण कर्मचारियों को  जीवन भर के लिए लीडर बना दिया. जबरदस्त परिवर्तन की कथा. 
मेरा मानना है कि : 
Leadership lessons are learnt in trenches not classrooms! What we learn in classrooms or over coffee with a high profile mentor or through talks by management experts, are not leadership things, they are just management tips. 

खरबूजा, खरबूजे को देख कर रंग बदलता है. मतलब क्या है? फिल्म रेड देख ली आपने? अगर  नहीं  तो देख लीजिये! मतलब समझ में तब आया जब, घूसख़ोर, और व्यवस्था से परेशान होकर जब, राजस्व /रेवेन्यू डिपार्टमेंट के मुलाज़िम जब पालतू से हो जाते हैं, तब आता है एक कड़क अफ़सर अजय देवगन , आईआरएस , लखनऊ में, ८१  के साल में! इन साहब का अबतक ५१ मर्तबा तबादला हो चुका है. तबादले का आर्डर आया और टेम्पो में सामान बांध कर नई जगह ज्वाइन करने पहुँच जाते हैं ये साहब . इनका नाम कोई पटनायक है. नाम में चाहे सिंघम वाला टशन न हो पर, ख़ालिश ईमानदारी तो पूरी दिखती है. खूबसूरत पत्नी हैं, बच्चे शायद नहीं है, दिखे भी नहीं. कोई नौकर-चाकरों का नज़ारा नहीं. सिर्फ एड ड्राइवर और महिंद्रा की जीप !
मुद्दे पर आते हैं; पहले दिन लखनऊ ऑफिस में , सभी कर्मचारी मिलते हैं, परिचय होता है, और फ़िर साहब नसीहत दे डालते हैं ईमानदारी का. पुराना टीम लीडर कर्मचारी कहता है, नया सोडा का बोतल है,  खुलेगा  तो, शोर तो करेगा ही. साहब, सुन लेते हैं, कहते हैं, आदत डाल लीजिये.
फिर शुरू होता है, वह रेड (छापामारी) , जिसपर फिल्म बानी है. मुखबिर खबर देता है, सामने नहीं आता.
सबसे बड़ी रेड होती है, दबंग एम् पी के घर पर. बाहुबली नेता हैं. यह रेड , कर्मचारियों पर जान से भी भारी बन आती है. घंटों नहीं, दिनों नहीं, हफ़्तों तक रेड चलती है. काफी ड्रामेबाज़ी के बाद, नोटों के बण्डल की , सोने के बिस्किटों की बाढ़ सी, आसमान और पाताल से निकल आती है. एमपी साहब और उनकी फॅमिली सकते में है. एमपी अपनी हर साम, दाम की कोशिश करता है पर बात सीएम और अंत में तो पीएम तक जाती है पर बनती नहीं. अफसर जीत जाता है. रेड रोकने की हर कोशिश नाक़ामयाब होती है.
अंत में, एमपी अपने लाखों समर्थकों को उकसाकर-भड़काकर , रेड टीम पर हथियार बंद हज़ारों लोगों के हुजूम से हमला होने लगता है. किले पर आ पहुँचती है एमपी की सेना. अब तो रेड टीम, चीटीयों की तरह मसल दी जायेगी. तभी, पटनायक साहब, सूझ बूझ दिखा कर अपनी पूरी टीम को किसी सुरक्षित रास्ते से  बाहर भगाने में कामयाब होते हैं. टीम में  महिलायें भी हैं,  ,दहशत में रेड किया था पर बहादुरी से. उन्हें सुरक्षित बचाना, पटनायक साहब की ज़िम्मेदारी थी, सो उन्होंने  निभाया ! तभी उनके टीम के अधिकारी, जो इनका मन ही मन और कई बार तो सब के सामने विरोध कर चुके थे ने देखा कि पटनायक साहब पूरी टीम तो सुरक्षित कर, खुद बलिदान देना चाहते थे, तो फिर खरबूजे ने खरबूजे को देख कर रंग बदल दिया. लीडरशिप इसे कहते हैं, जो सैक्रिफाइस करता है,  लोगों को लीड करता रहता है, उनका भरोसा और विश्वास जीतता जाता  उनको सुनता है, पर उनकी तरह विरोध नहीं करता, सिर्फ भरोसा दिलाता है. कर्त्तव्य और निष्ठां की सबल बातें संक्षेप  में, अति संक्षेप में कहता है और लीड करता रहता है. लक्ष्य के लिए सबको जाबांज़ बना देता है. पटनायक साहब का विरोध करने वाले कर्मचारी अब उनको छोड़ कर जाने को तैयार थे, वे अब उनके साथ ही मर-मिटने  को तैयार थे. इतना बड़ा परिवर्तन, दिल का ही नहीं, चरित्र का है. लीडर चरित्र बदलने का काम करता है, तिकड़म तो कोई भी सिखा सकता है. 

When you are in trenches with your team in their toughest fight, where stakes are quite high on you and equally high on the team and you take responsibility for all failures as part of that unwritten oath, you can call it accepting challenge too, you win over your team, and every hard-earned success creates leaders out of your team. 

Thursday, March 15, 2018

HR का मुल्लानामा! मुगालते में मत रहिएगा!


भक्ति काल के कवियों के बारे में आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कहा था, यह बैठे ठालों का रोज़गार है. HR में अगर कहीं एक्शन है तो वह रिक्रूटिंग में है. ट्रेनिंग भी कथा वाचन है. नया एमबीए मुल्ला , कुछ थके हारे , उबासियाँ लेते ट्रेनी गण , एक वीरान सा ट्रेनिंग रूम, जिसमे ५० लोगों के बैठने की व्यवस्था है, पर कोईं ५ लोग ही ट्रेनिंग के लिए पकडे जा सके! बाकी लोगों को काम था या फिर अंतिम छन कोई ज़रूरी काम का बहाना बना कर कट लिए! एक्सएलआरआई वाला ट्रेनर (आपका नया मुल्ला ) ट्रेनिंग करता है, ग्रुफी  निकालता है, और फिर  चंद  शब्दों के अपडेट के साथ लिंकडिन पर चिपका देता है. श्री सत्य नारायण की सप्तम अध्याय की समाप्ति अब शंखनाद से नहीं होती, होती है ग्रुफी से ! भाई साब , इस फार्मा कंपनी में, एम्प्लोयी की  मीडियन सैलरी ३ लाख के आस-पास है, और एग्जीक्यूटिव की सैलरी इससे ४०० गुने अधिक, जैसा की २०१३ की कम्पनीज एक्ट नियामित डेक्लरेशन से २०१५ के फाइलिंग से पता चलता है. समस्या ४०० गुने या ४००० होने से नहीं है, है तो इससे कि एम्प्लोयी की मीडियन सैलरी ३ लाख है, यही कि कंपनी की आधी आबादी ३ लाख से कम की सैलरी में पूरे साल घर चलती है, भविस्य की निधि जमा की जाती है, साले-साली, ननद की शादी में लाखों खर्च करती है, बीमारी का घाटा भी भर्ती है और ईएमआई पर वाशिंग मशीन खरीदती है. कंपनी में कम्पेन्सेशन और बेनिफिट वाले बड़े अधिकारी भी मोटा माल कमाते हैं और ३ लाख से कम मज़दूरी पर मज़दूर पालते हैं. एक्सेल फाइल , मेल मर्ज , लेटर तैयार है , बोनस भी है, ३ से ८ परसेंट. आज तो उत्सव होगा. विल्लिस टावर वाटसन की सारी सैलरी सर्वे काम आ गयी, हमने  चुन लिया अपना मीडियन और लेटर तैयार है. मैनेजर कुछ लोगों  के लिए झगडेगा , ७ से ११ परसेंट सैलरी बढ़वाने के लिए ६ मीटिंग करेगा, वीपी साहब लोग 'गट-फील' कॉलम ड्रा करेंगे, कंपनसेशन वाले बड़े साहब लोग फ़ेवरिट लोगों का नया सैलरी नोट कर लेंगे. इसी बहाने, कुछ बड़े साहब, कुछ सीक्रेट सैलरी इज़ाफ़े के लिए कंपनसेशन के बड़े साहब को एक अलग से मीटिंग कल मॉर्निंग में रखने को बोलेंगे. मीटिंग होगी, एक -दो बड़े मुर्ग़ों का सैलरी फिर से बढ़ेगा, एक-दो का प्रमोशन भी हो जाएगा! बड़े साहब कंपनसेशन वाले को कहेंगे; अनाउंसमेंट मैं कर दूंगा, तुम लेटर मुझे दे दो, मैं रिव्यु करता हूँ. यह काम है सरजी कंपनसेशन वालों का, और अगर CHRO हैं कंपनी में  तो, फिर तो एक कॉन्फिडेंटिअल मीटिंग होगी, पर बात वही छपेगी जो साहब ने कहा है. आप लेटर प्रिंट कीजिये, साहब का इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर होगा और फिर साहब लोग अपने सिपहसालार लोगों को 'रियासत-बक्शीश' बांटने की मीटिंग की कवायद होगी. सभी लोग उत्सव मनाएंगे। कल से फिर दुनियां, वैसे ही काम करेगी। 

मैं मिशेल हूँ !

मैं मिशेल हूँ !  आपने मेरी तैयारी तो देख ही ली है, राइडिंग बूट, हेलमेट,इत्यादि.  मैं इन्विंसिबल नहीं हूँ !  यह नील आर्मस्ट्रॉन्ग की मून लैंड...