Monday, May 30, 2016

एम्प्लोयी वेलफेयर का सुलतान, flipkart महान.

यह HR वाले करते क्या हैं?
सवाल जायज है. 

यह सवाल उतना ही पुराना ही जितनी की हमारी सभ्यता है. लेकिन आपके मैं यकीन दिलाना चाहता हूँ कि आईआईएम के बच्चों को शूली पर चढाने वाले HR वाले नहीं हैं. यह उनके आका IIT वाले व्यापारी हैं.
अभी flipkart का IIM ऑफर फ्लिप चर्चा में है. शायद १८ ऑफर्स पर  गाज गिर रही है. मुआवज़ा है डेढ़ लाख ६ महीने बाद जब जोइनिंग होगी. इसमें भी चालाकी. आप यह तो मानेंगे , HR वाले इतने चालाक नहीं हैं. यह भी बिज़नेस आका का ही फरमान है. HR सिर्फ अंग्रेजी बोलेगा और बाकी उन्हें IIT वाले बॉसेस बताते रहेंगे कि क्या और कितना बोलना है.
अब आपके पास मिलियन डॉलर वाले HR वाले हैं. HR में एक लम्बी फौज है. क्या आपको लगता है HR ने यहां कोई निर्णय लिया होगा? नहीं. उन्हें यह बता दिया गया होगा , "जोइनिंग डिले करना है, IIM को ईमेल लिख दो. बिज़नेस रीज़न बता दो. यह आदेश तो एडमिन असिस्टेंट को भी दिया जा सकता था. पर HR वाले होते किस लिए हैं. HR वालों को यह सब हैंडल करना बड़ा की सनसनी ख़ेज़ लगता है. ऐसे समय में, स्वनाम धन्य HR वाले अपने आप को बड़े काम की चीज़ समझने लगते हैं. पर जैसे की उन्हें मालूम पड़ता है, आका लोग डायरेक्ट आईआईएम, इत्यादि से बात करने लगे हैं तो HR फ़ौरन ही स्टैंडबाई मोड में आ जाता है..सस्ते टीवी प्रोग्राम के एंकर की तरह यह ऐसे समय में शाहंशाह की तरह महसूस करने लगते हैं पर क्षण भर में फिर भीगी बिल्ली! क्या आपको लगता है कि  डेढ़ लाख का मुआवज़ा वह भी डैफर्ड, HR ने तय किया है. यह सभी  ऑइ - 
वाश (eyewash) हैं. कुछ महीने पहले ही फ्लिपकार्ट के HR आका , जब आप मेटरनिटी, पैटरनिटी पालिसी की बड़ी-बड़ी डींग हांक गए. अभी तो यह फुल्ली पेड ६ महीने की मैटरनिटी लीव दे रहे थे, डेडिकेटेड पार्किंग, एडॉप्शन पालिसी, etc . फिर पता नहीं के-क्या. इतनी जल्दी हवा कैसे निकल जाती है? एम्प्लोयी वेलफेयर का सुलतान, flipkart महान. HR वाले भी अपनी महानता की रोटी सेक गए. आज सबसे इलीट समझे जाने वाले आईआईएम-अहमदाबाद को भी "टक्के-सेेर " ट्रीट कर दिया . यह कैसी मज़बूरी आ गयी सुलतान को ? 

अब इसमें HR कहाँ से आता है? उसको क्या पता कब बिज़नेस क्या करता है, क्या सोचता है? 

फिर मत पूछिएगा, HR करता क्या है? HR तो नेताजी की पत्नी की तरह है, बनारसी साडी पहन लेंगे जब आपकी चांदी रहेगी. पांचों ऊँगली घी में होंगे और आप सरकार होंगे. खद्दर भी चलेगा जब सरकार दिवालिया हो जायेगी. HR अगर कहीं आपको बिकिनी  में या निम्न वस्त्र में दीखता है तो यह भी सरकार की ही मनमानी है. 

भाई, HR कुछ नहीं करता ! मिल गया जवाब आपको? किसी कंपनी का हेल्थ चेक या कल्चर टेस्ट करना हो तो बेशक़ आपको सबसे अच्छी रिजल्ट HR को टेस्ट कर के मिल जायेगी. 
अब आप पूछेंगे, ऐसा कैसे है? क्या HR आर्गेनाईजेशन का आइना है? क्या HR आर्गेनाईजेशन को बनाता है या फिर HR आर्गेनाईजेशन की एक तश्वीर है जो उस परिवेश में उपजती है, पलती है, अपनी एक स्वरुप और प्रकृति को बना पाती है.? मैनिफेस्टेशन, DNA , पता नहीं क्या-क्या. बड़ा प्रश्न है. 
जो डोमिनेट कर गया, वह जीत गया. आप निर्णय कर लें.  शुभ रात्रि!

Wednesday, May 25, 2016

सावधान: आगे स्टार्ट अप है, कहीं आप फंस न जाएँ .

सावधान इंडिया !
फ्लिपकार्ट ने अब IIM  और IIT वालों के जोइनिंग डेट्स निरस्त कर दिए हैं. ६ महीने के लिए. अनिश्चितता का दौर स्टार्ट उप में चल रहा है. हम तो डूबेंगे सनम, तुमको भी ले डूबेंगे !
तश्वीर साफ़ हो जाएगी अगर आप निचे की ग्राफ देखेंगे.
आप पूछेंगे "कहाँ गए ये लोग?" यह तो कहानी है स्टार्ट अप की रंगीन और साहसी दुनिया की. व्यवसायी बनने  की. (Disrupt ) करने की. यूनिवर्स में डेंट लगाने की. इनके पास मौका है और इनमे काबिलियत भी है. IIM  और IIT और स्मार्ट लोग कर सकते हैं सब जो वो करना चाहते हैं पर जगह है सिलिकॉन वैली , गुरुग्राम, और बैंगलोर नहीं.
स्टार्ट अप डिसरप्टिव छोड़ कर अब वैल्यूएशन के गेम में फंस गया है. ये इंजीनियर स्टार्ट अप में भी नौकरी ही कर रहे हैं. बिज़नेस की कमान तो फाउंडर्स के हाथ में है और वे ग्रेट प्रोडक्ट की जिम्मेवारी टीम के ऊपर डाल कर CEO बन जाते हैं. सेलिब्रिटी स्टेटस मिल जाता है और बिज़नेस  पीछे छूट जाता है. एम्प्लोयी disillusioned हो जाता है. वह एम्प्लोयी की तरह फिर दूसरी नौकरी ढूंढ़ता है. पुराने स्ट्रक्चर्ड MNC की याद आ जाती है.  

Saturday, May 21, 2016

HR डिस्ट्रेस से गुज़र रहा है. अनन्त पीड़ा से गुज़र रहा है

HR को चाहिए आज़ादी.
वक़्त है आज़ादी का. मैं कन्हैया का फैन हूँ. उनके नारों का फैन हूँ. मैं भी JNU का छात्र रहा हूँ.
HR डिस्ट्रेस/यंत्रणा से गुज़र रहा है. अनन्त पीड़ा से गुज़र रहा है. कृष्ण की भूमिका से अब दास की , याचक की स्तिथि में आ गया है. पोस्टर बॉय /गर्ल अब पोस्टर के पीछे छुप गया  है. इसे चाहिए आज़ादी।  HR क्या अब सिर्फ "हारे को हरी नाम"! रह गया है? क्या सबसे ज्यादा insecure  एंड politicking  फंक्शन है यह? क्या यह यह इन्फेक्शन का श्रोत है? vulnerable भी और हेल्पलेस एंड उपेक्षित भी? इसे चाहिए आज़ादी! इसे चाहिए एक कृष्णा!

भूमिका-
HR का सो कॉल्ड लीडरशिप? अपनी पहचान नहीं बन सका.
LinkedIn और twitter पर अपनी पहचान ढूंढ रहा है. कुछ तो बस facebook तक ही अपनी इंटेलेक्चुअल काबिलियत सीमित कर लेते हैं. वेलफेयर स्टेट का सबसे बड़ा जीता -जागता उदहारण है HR . एक छद्म कोशिश, बिज़नेस enabler , catalyst , चेंज ऐजेंट , पता नहीं, कहाँ कहाँ से ये शब्द इन सेल्फ-proclaimed लोग ले कर आये.
Distress जीन्स के बाद अब समय चल रहा है डिस्ट्रेस हायरिंग का. यहां आपके रिज्यूमे का in-human, non nonsensical टार्चर किया जाता है. आपके एक्सपीरियंस एंड कैपेबिलिटी जो आप प्रूव कर चुके होते हो उसकी खिल्ली उड़ाई जाती है और, कोई नक्कारखाने की टूटी की तरह का फटा हुआ HR वाला आपकी बोली लगाता है.
अब ज़माना आ गया है, कौओं का. यह हंस को चलना सिखा रहे हैं.
२०० से ज्यादा लोग जाबलेस मिड एंड सीनियर मैनेजमेंट के बैंगलोर में जॉब ढूंढ रहे है क्योंकि ये अभी कुछ ६ से ८ महीनों पहले काम से निकाले गए हैं. ये ज्यादातर लोग प्रीमियर एजुकेशन बैकग्राउंड से हैं. HEADHUNTER  कंसल्टिंग के कृष् ने अभी एक आर्टिकल में उनके  १०० से ज्यादा बेरोज़गार और "लुकिंग फॉर नई ओप्पोर्तुनिटी" वाले  लोगों का डेटा बेस बता रहे थे. यह सिर्फ बैंगलोर का डेटा है और सायद सिर्फ HEADHUNTER का. सभी मेजर रिक्रूटिंग फर्म्स को जोड़ लें तो शायद दृश्य और भयावह लगे.

अगर यह सत्य है तो ऐसा क्यों हुआ और क्या इसमें कोई नेचुरल जस्टिस सम्मिलित है?

सिर्फ HR जिम्मेदार है अपनी स्तिथि के लिए. गुलाम बन गया. अड्डा बन गया नकारों का, फेल्ड लोगों का, वर्किंग हाउस वाइफ मं-सेट के लोगों का.. लोगों ने गवर्नर्स के जैसे अपने एजेंट बैठा दिए HR में. षड़यंत्र का ऐड बन गया यह जो कभी एम्प्लोयी वेलफेयर एंड वेल बीइंग का झंडाबरदार था. एक मर्यादा थी इसमें. एक मज़बूत इरादे और व्यक्तित्व के लोग आते थे. अब समय के साथ इसमें कम्फर्ट गर्ल्स के जैसे लोग भरते गए. घिन आती अब इससे.

वजह जो मुझे लगती है वह यह है कि समय के साथ, टेक्नोलॉजी एंड अवेयरनेस ने कई जॉब्स की अहमियत कम कर दी है. कई जॉब अब उतने महत्वपूर्ण नहीं लगते क्योंकि जनता उन जॉब स्किल्स और एक्सपीरियंस को अब जरूरी नहीं समझती. HR में यह काफी हुआ है, क्योंकि HR समय के साथ स्किल्स बेस्ड रिक्रूटिंग फंक्शन बन कर रह गया जहां बिसिनेस कोई २ पैसे का वैल्यू देखता है. coordination ही सही, HR के पास कोई काम तो है,
ट्रेनिंग भी कुछ बचा है वह भी सिर्फ कंप्लायंस की वजह से. पर्सोनेल मैनेजमेंट और वेलफेयर की अब कोई बात करता नहीं. सभी लो एन्ड ऑउट्सोर्सेड हो गए, पेरोल आउटसोर्स हो गया, ट्रेवल एडमिन/एकाउंट्स टेक अप्प्रोअवल और सब आसान है.
ज्ञान HR वालों से ज्यादा अब नए बच्चों के पास है।  वह HR वालों से ज्यादा अच्छी डिग्री और इंटेलिजेंस ले कर आते हैं. उनके मैनेजर्स उन्हें HR से हाइ  -हेलो तक ही सम्बद्ध रखने की सलाह देते हैं. लोगों को भी मालूम है, बाप तो मैनेजर है और मुझे HR सर्विस डिलीवर कर देगा जब मैं या मेरा मैनेजर उन्हें आदेश दे देगा. ऑफिस एडमिन भी वह सब कर सकता है, कहीं काम error  के साथ एंड timely भी. HR का संघर्ष अब बढ़ गया है. राम चरण  आगाह कर चुके हैं. टाइम टू split HR 

संता -बंता जोक्स के बाद कॉर्पोरेट में सबसे जियादा जोक्स HR पर ही बने हैं.
HR तो outdated  एंड useless साबित करने में राम चरण और कुछ अन्य ने कोई कमी नहीं छोड़ी है. HR रंगे सियार की तरह नया रंग लपेटकर आता है, कभी "Diversity एंड Inclusiveness " कभी टोटल रिवार्ड्स तो कभी टैलेंट मैनेजमेंट. ये सारे सीनियर और आउटडेटिड HR dinosaur  के नौकरी बचाउ जुगाड़ हैं! इनके नाम पर फ़ोकट के कांफ्रेंस में लंच डिनर और दारु मिलता है. ऑफिस से फ्री।
कंपनी में कोई नहीं सुनता है तो twitter पर इनके बचकाने स्टेटमेंट पढ़ लीजिए. कुछ तो है कि हमें भरोसा दिलाता है की हम बिलकुल कलियुग में हैं.

कल्पना कीजिये एक दिन के लिए "HR मुक्त विश्व का". इस मुक्त वाले स्टेटमेंट का अभी ट्रेंड चल रहा है. अगर कल से HR पर बैन  लग जाए तो क्या फर्क पड़ेगा? हायरिंग लोग अपने दोस्तों का ही करते हैं. कर लेंगे. कंपनसेशन मैनेजर डील कर लेते हैं, कर लेंगे. . HR की जगह ये लोग ऑफर लेटर प्रिंट कर लेंगे. पेरोल कंपनी को लेटर भेज देंगे, २ मिनट में आनबोर्डिंग . एडमिन वेंडर आईडी कार्ड बना देगा. डन ! प्रमोशन, ट्रेवल, सैलरी अप्रैज़ल मैनेजर ही तय करते हैं. जो पसंद नहीं आया फायर कर दिया. HR का काम एडमिन कर लगा. ESIC कवर्ड कुछ थर्ड पार्टी कांट्रेक्टर काफी कुछ मैनेज करते हैं. कर लेंगे.


मैंने कुछ समय पहले लिंकेडीन में एक आर्टिकल लिखा था कि अब हम स्किल्स के युग में हैं. आर्टिकल यहां पढ़े.
जब मैं अनुभवी लोगों से बात करता हूँ तो पाता हूँ कि "समय आ गया है जब सिर्फ "SKILLs बेस्ड हायरिंग होगी. यह चल रही है. एक्सपीरिंयस की हायरिंग अब महँगी लग रही है. अब २५ लाख की सैलरी वाले बेरोज़गार लोगों को ८ लाख के ऑफर्स मिलते हैं. वह भी कभी कभी शार्ट टर्म कांट्रैक्ट पर. स्थिति शर्मनाक है.
हम सभी एक अदृश्य बेरोज़गार दुनिया की तरफ बढ़ रहे हैं. HR की कोर्सेज में एडमिशन काफी गिर गए हैं.MBA  HR अब सबसे थके और कुछ इलीट के लिए एक फैंसी कोर्स रह गया है. बेहतर भी है. न रहेगी अपेक्षा न निराशा होगी. वर्किंग हाउसवाइफ जैसा एक टर्म शायद मैंने ही इज़ाद किया है. यह उस तरह की मानसिकता वाले मर्दों पर भी लागू होता है. यहाँ मेरा तात्पर्य जेंडर बायस करना नहीं है बल्कि एक मानसिकता की तरफ इशारा करना भर है.

यह कहानी चलती रहेगी... बाकी अगले अंक में. 

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