Sunday, January 31, 2016

आवश्यकता स्कॉलर्स की है, रिसर्च एसोसिएट्स की है

सुनील सर, आपके विचार अच्छे हैं पर इनको पूरा करने के लिए मानव संसाधन विभाग की आवशयकता नहीं हैं. आवश्यकता स्कॉलर्स की है, रिसर्च एसोसिएट्स की है. कोई मानव संसाधन का संस्थान ये दोनों नहीं बनाते. सिलेबस देख लीजिये, पचरंगा आचार लगेगा. एक ऐसा पेपर दिखला दीजिये XLRI या टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस से जो आपकी मानव संसाधन रिसर्च या स्कॉलर्स की श्रेणी में आता हो!

जैसा की राम चरण ने कहा : मानव संसाधन को दो भागों में बाँट देने की जरूरत है; मानव संसाधन एडमिन और मानव संसाधन -लीडरशिप आर्गेनाईजेशन. पहला चीफ फाइनेंसियल अफसर को रिपोर्ट करे और दूसरा चीफ एग्जीक्यूटिव अफसर को. जब तक ऐसा नहीं करेंगे, मानव संसाधन विभाग सामाजिक सरोकार ही निभाता रहेगा. पेरसोंनेल मैनेजमेंट वर्कर्स के लिए कमाल का काम करता था, हेल्थ एंड सेफ्टी, क्रेच, कैंटीन, ट्रांसपोर्ट, मैनेजमेंट-वर्कर नेगोसिऎसन बाई कलेक्टिव बार्गेनिंग, अप्रेंटिसशिप मैनेजमेंट, ट्रेनिंग , इत्यादि. ये सभी १००% ROI बेस्ड थे. किसी पर्सनेल मैनेजर को कभी २ और ४ करोड़ की सैलरी नहीं मिली. आज सेलिब्रिटी HR मैनेज करते हैं, जैसा आपने कहा डी (डेवलपमेंट) मिसिंग है. फिर हुआ क्या, सिर्फ धोखा, सिर्फ HR कंसल्टिंग आर्गेनाईजेशन के फंडों का कॉपी पेस्ट।  कंपनसेशन एंड बेनिफिट्स जो करता है, उसे देख कर आप सर पीट लेंगे, जॉब कोड मैचिंग, लेटर प्रिंटिंग, एक्सेल फाइल में बोनस कॉलम एडजस्टमेंट, रोउंडिंग ऑफ ऑफ़ डेसीमल फिगर्स. शर्मनाक. HCL का सैलरी स्लिप देखा अभी, HRA और बेसिक दोनों बराबर हैं. शर्मनाक। साल के दस दिन के काम के लिए कंपनसेशन एंड बेनिफिट्स वालों को पूरे साल की सैलरी मिलती है. वैल्यू ऐड-जीरो.

लर्निंग एंड डेवलपमेंट स्लाइड्स पढता है या फिर असेसमेंट फॉर्म्स भरवाते है. किसी भी महान लर्निंग एंड डेवलपमेंट वाले के बारे में ट्रैनीस की फीडबैक ले लीजिये, सच सामने आ जायेगा. आपने सच कहा, मिल्लेनिएल को आप डेलेवोप करना चाहते हैं, वो आपसे बेहतर डिग्री और एजुकेशन रखते हैं. मैंने पढ़े लिखे समार्ट एम्प्लाइज को HR के ऊपर बस जोक करते सुना है. ले देकर, ज्यादातर HR वाले, रिक्रूटमेंट कोऑर्डिनेशन करके नौकरी बचा रहे हैं. जंग लग चुका है, इस डिपार्टमेंट में, "स्पॉन्सर्ड कैंडिडेट" भर गए हैं, कोटरी (coterie ) बन चुके है. कोई प्रीमियर बी स्कूल नहीं, कोई रीसर्च नहीं, कोई Ph.D नहीं, कोई पेपर पब्लिश्ड नहीं, कोई केलेब्रटेड अचीवमेंट नहीं, पर बन गए ग्लोबल टैलेंट मैनेजमेंट एंड डेवलपमेंट हेड.

रेसेअर्चेर्स और स्कॉलर्स भरिये वरना बेडा तो ग़र्क़ हो ही चुका  है. CHRO , २ से १.५ साल में कंपनी बदल रहे हैं या फिर निकाल दिए जाते हैं. फिर वे अपने दोस्तों को नयी कंपनी में भर लेते हैं. शर्मनाक।

Reference- HR sitting on a time-bomb-HBR reviews.

यह भी पढ़ लें - https://www.linkedin.com/pulse/hr-dead-alive-mark-edgar
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Saturday, January 30, 2016

आंबेडकर के बाद कांशी राम और बाकी सब राम-राम.

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रोहित वेमुला की जाति ज्यादा महत्वपूर्ण है या सरकारी संस्थाओं की हिटलरी?
भारत में एक्सट्रीम नहीं चलता. न ही सॉफ्ट एक्सट्रीम न ही हार्ड! एक्सट्रीम सॉफ्ट एक्सटिंक्ट हो जाते हैं, और एक्सट्रीम हार्ड एक्सटिंक्ट कर दिए जाते हैं. मॉडरेट बेस्ट हैं..  भावनाएं,संवेदनाएं, उबाल, सभी हाइपरटेंशन का कारण हैं. अतिरेक बिमारी का नाम है. बैलेंस बना कर चलना होगा. आंबेडकर साहब ने नारा दिया "जाति तोड़ो, समाज जोड़ो" ६८ वर्षों के बाद भी अभी भी दलित एक्सिस्ट करते हैं, और कितने साल लगेंगे जाति तोड़ने में? जब तक रिजर्वेशन है, तब तक, जाति है, तब तक दलित जैसा शब्द है, तब तक दलित राजनितिक पार्टी है, तब तक, १५ % नंबर में आईआईटी की सीट है, तब तक, धनाढ्य दलित आईएएस के बच्चे टॉप इंस्टीटूटेस में आसानी से हैं, तब तक सरकारी नौकरी उनकी आसानी से है, तब तक प्रमोशन फटाफट है. दलित से दलित-इलीट हटाओ। सारा माल तो ये इलीट दलित मार जाते हैं.. रोहित तो मेरिट कोटा से फेलोशिप कर रहा था. क्या सिर्फ राजनीती वाले ही दलित की बात करेंगे, चाहे राजनीतिक कारण से हो? कहाँ गए वे लाखों दलित आईएएस और अन्य सरकारी बाबू? उनमें से कोई रोहित के लिए क्यों संवेदना दिखलाने के लिए हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के बाहर कैंडल मार्च ही निकालता? रिजर्वेशन ने स्वार्थी बनाये हैं, इलीट जो सिर्फ अपना हित साधना जानते हैं. जब आज भी १५%  नंबर पर आईआईटी की सीट मिलता है तो क्यों नहीं उन दलित आईएएस सेक्रेटरी से सरकार यह पूछती, कब देश का , कब अपने दलित  बंधुओ का सोचोगे, कुछ करोगे? आंबेडकर के बाद कांशी राम और बाकी सब राम-राम. 

Monday, January 25, 2016

क्या कोई षड्यंत्र है? क्या जाति विशेष की कोई निश्चित प्रवृत्ति होती है?

क्या कोई षड्यंत्र है? क्या जाति विशेष की कोई निश्चित प्रवृत्ति होती है?
सामजिक-आर्थिक रूप से सफल लोगों को ही देख लेते हैं. क्या इनमें कोई विशेष गुण है जो इन्हे सफल बनाता है?
क्यों बंगाली और मलयाली नौकरियों में ज्यादा सफल हो जाते हैं? क्यों बनिये व्यापार में सफल होते से लगते हैं?
क्या उन्हें व्यापार करने के गूढ़ रहस्य मालूम हैं? या फिर सिर्फ व्यवहार-सरोकार के ये पुजारी हैं?
कैसे जानें इनमें ये गुण कैसे आते हैं? कैसे ये इन गुणों की बदौलत अपनी मंज़िल पाते हैं.
प्राइवेट नौकरियों को अगर देखें तो, इसकी शुरूआत टाटा और बिरला या बजाज ग्रुप से निकल कर आता है. इन कंपनियों में मजदूर वर्ग बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र से आया, तकनिकी काम के लिए, दक्षिण भारत और महाराष्ट्र का वर्ग जुड़ा. बंगाली ऑफिस के काम के लिए रखे गए. उन्हें कुछ अंग्रेजी आती थी और ये बड़े अफसरों के सामने बिलकुल मेमनों जैसा हाव-भाव रखते थे. ये उनके सहमति और असहमति दोनों से बराबर ही सहमति प्रकट करते थे. ये अपने विचार फुटबॉल, मुरी घोंटो , नक्सलबाड़ी, सिगरेट , कार्ल मार्क्स, इत्यादि तक सीमित रखते हैं.
इन्होंने सबसे पहले याद कर लिए था.. नौकरी मतलब, मुह पर ताला, विचार, विमर्श  घर पर. बॉस का पाद भी गीता का ज्ञान, ऑफिस में शांत, लगभग अदृश्य, अच्छी अंग्रेजी ड्राफ्टिंग, एकाउंट्स साफ़ और साधा. कानून के पुजारी। लेकिन जैसा की हर कुत्ते का दिन आता है, बंगाली बंधू भी पदोन्नति पा कर, एक दिन अफ़सर बनते हैं. सिगरेट का डब्बा अब इनकी आइडेंटिटी बनता है, फ़िएट कार आती है, नमस्कार दादा, दीदी, ऑफिसियल सम्बन्ध बोधक बन जाते हैं. धीरे -धीरे बंगाली भाषा लिंग्वा-फ़्रन्का बन जाती है. सारे क्लासिफाइड संवाद इसी भाषा में कुछ अन्य बंगाली अधिकारी, सहयोगियों के साथ होने लगते हैं. बंगाली बंधु कौम के बड़े पक्के होते हैं. द्रुत गति से आप इनके विभाग में बंगालियों की नियुक्ति होते देखेंगे. मधुमक्खी के छत्ते की तरह इनका विकास होता है. उदाहरण मैंने बंगालियों का लिया, इनके ही दक्षिण भारत के बंधू हैं..मलयाली. अद्भुत समानता है दोनों में; दोनों शौकीन कौम है. इनका कुत्ता, दारु, कार प्रेम एक सामान है. दोनों समाज उन्मुक्त है, साइड डिश दोनों को चाहिए, खाने और सोने में भी . दोनों कोस्टल एरियाज से हैं, दोनों मच्छी भक्त हैं.. दोनों समाज एडुकेटेड एंड क्वालिफाइड हैं, दोनों समाज में महिला मुक्त है, आर्थिक रूप से आत्म निर्भर है. संगीत -गायन और वादन दोनों के मीठे हैं. करैक्टर दोनों के ढीले हैं, परन्तु उनका समाज इसकी इजाजत देता है. यहां सब सहमति से होता है, कोई शोषण नहीं है. दोनों अपने लोगों को ही अपने साथ जोड़ते हैं, अगर यह क़ौम है तो यह फिर कम्युनल हैं.

जैसे लोमड़ी को चालाकी सीखनी नहीं पड़ती, वैसे ही इन्हे व्यावहारिक ज्ञान जन्मजात मिलता है. मलयाली बच्चे और बंगाली बच्चे एक साथ खेलते मिलेंगे. यही रिश्ता कॉलेज, फिर नौकरी तक चलता जाता है पर दोनों अपने कौम को ही सहयोग करेंगे. कॉलेज का प्लेसमेंट सेल का कम्पोजीशन किसी भी बिज़नेस स्कूल में देख लीजिये, आप वहाँ बंगाली और मलयाली बहुतायत में पायेंगे. इनका रिश्ता बंदरों और हिरणोँ जैसा है. बन्दर हिरणों के लिए पेड़ हिला कर फल गिराते हैं, दोनों एक दुसरे को शिकारी पशु या व्यक्ति से सतर्क करते हैं। परन्तु वंश वृद्धि तो यह अपनी ही करते हैं. जायज़ है.

आपके अगर कोई विचार हों तो अवश्य लिखे.
शुभ रात्रि!


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नाथन सर का मैं बड़ा वाला फैन हूं ! डेलोइट (हिंदी में बोले तो Deloitte) को  अपनी सेवा के १९ स्वर्णिम वर्ष समर्पित करने के उपरांत अभी-अभी निवृ...