डाइवर्सिटी इन्क्लूज़न, इक्वलिटी, बेलॉन्गिंगनेस एक व्यापक चर्चा है. उससे भी गहन आत्म-चिंतन/आत्मावलोकन का विषय है यह. यह भी अमरीकी गुब्बारे की तरह मानस पटल छा रहा है. आज हर कंपनी में इसकी चर्चा है. एचआर में काम करने वाले हर किसी ने अपने नाम के आगे डाइवर्सिटी इन्क्लूज़न एडवोकेट लिख दिया है. ९०% डाइवर्सिटी इन्क्लूज़न, इक्वलिटी, बेलॉन्गिंगनेस पदों पर महिलाओं का कब्ज़ा है. मुझे महिलाओं से कोई परहेज़ नहीं है पर यह कुछ कांग्रेस के वाईस प्रेजिडेंट पद जैसा नहीं है? रहेंगे तो राहुल बाबा ही ! यह पद राजनैतिक नहीं है न ही कोई मुलम्मा। ..इसकी उत्पत्ति न तो रंगभेद या गोरों का कालों पर अत्याचार या एंटी सेमिटिस्म जैसी भयावह घटनाओं से है। .. इसके पुरोधा न महात्मा गाँधी है, न मंडेला, न जॉर्ज फ्लॉएड ! #ब्लैकलाइवमैटर्स ! इसकी चर्चा समलैंगिक होने या सेक्स के लिए अपने पार्टनर के चुनाव से है. पर यहां सब आंदोलन जैसा है. गे परेड, रेनबो झंडे और अन्य प्रतीक। . डाइवर्सिटी और इन्क्लूज़न एक गहरी सोच है जो सामाजिक न्याय का हथियार नहीं है. यह मात्र व्यक्ति के प्रति किसी भी प्रकार के पक्षपात का विरोधी है. भारत में सर
लिंकडिन अब हिंदी में भी। . यह नया है.. वैसे हमने कभी भी हिंदी को दूर नहीं जाने दिया लिंकडिन से। .कई आर्टिकल लिखे हिंदी में। .कुछ पोस्ट भी पर वह अकाउंट लिंकडिन ने बंद कर दिया। ..कम्युनिटी गाइडलाइन्स का उल्लंघन जो हुआ था। .वाज़िब है. वैसे यह मेरा लिंकडिन का चौथा अकाउंट है. दो मैंने मिटाये थे , एक लिंकडिन नें। . मुक़ाबला २-१ से बराबर। . अब ऐसे भी बराबर होता है. आप गणित करते रहिये। जिसकी लाठी उसकी भैंस. ट्विटर वाले कूल डूड बाहर , पराग भाई अंदर. सवाल सरकार और उससे पहले बोर्ड को खुश रहने का है. आप डोर्से हों या ट्राविस कलाकनिक हों , बोर्ड सब पर भारी है. अब पैसा चाहिए विवाद नहीं. वीवर्क वाले आदम न्यूमन तो याद होगा आपको .. मतलब साफ़ है, फाउंडर अलग मिटटी के होते हैं, और उनके बाद वाले सीईओ अलग. याद रखिये, इन सभी भारतीय सीईओ जो अमरीकी टेक और अन्य कंपनियों के सूरमा बने हैं, उनमे से किसी ने कभी कोई कंपनी नहीं खड़ी की. आगे की बहस आप अपने ग्रुप में कर लेना। हिंदी में कई कंटेंट क्रिएटर यूट्यूब वाले हैं. यूट्यूब पैसा देता है. वीडियो देखना आसान है, कौन पढ़े कंटेंट. ७०% कंटेंट वीडियो में खपत होते हैं. म