यह वाक़या मैं आपको इसलिए बता रहा हूँ कि मृत्यु की कोई ग्रह दशा नहीं होती
लोग कुंडली क्यों दिखाते हैं?
अक्सर ऐसा तब होता है जब वो किसी प्रश्न का उत्तर ढूँढ़ रहे होते हैं.
ज्यादातर यूट्यूब वीडियोस गोचर के आधार पर भविष्यफल बताते हैं और वह भी लग्न के अनुसार.
दशा के आधार पर भविष्यफल भी बताते हैं ज्योतिषगण यूट्यूब पर.
किसी भी प्रश्न का उत्तर आप सिर्फ किसी की कुंडली देख कर ही अनुमान से बता सकते हैं. कितना सत्य होगा भविष्य कथन यह नहीं कह सकता कोई भी एस्ट्रोलॉजर। आप दस तरीके से कुंडली के सभी पक्षों का आकलन करके भी कई चूक कर जाएंगे. कई बार उतने गहन आकलन की कोई ज़रूरत भी नहीं होती.
मैंने एक अच्छे एस्ट्रोलॉजर से पूछा था; आप कुंडली कैसे देखते हैं?
उनका जवाब सरल सा था; ग्रहों की स्थिति, शुभ अशुभ योग, दशा, राशि और घरों की स्थिति ,गोचर और डिविशनल चार्ट। बस इतना ही काफी है. गोचर कई बार कोई विशेष प्रभाव नहीं डालते. कई अच्छे एस्ट्रोलॉजर गोचर को बहुत कम महत्व देते हैं. यहाँ तक कि शनि की साढ़े साती का भी वे प्रभाव नहीं मानते. मैं भी नहीं मानता गोचर को. गोचर बाहरी प्रभाव है. आप अगर ५० डिग्री तापमान में एयर कंडिशंड (AC ) कार में जा रहे हैं तो क्या आपको कोई फर्क पड़ेगा? परन्तु अगर कुंडली और दशा कमज़ोर हो तो पड़ेगा, क्यूंकि तब कार होगी तो AC नहीं या फिर दोनो ही नहीं.
मेरा मानना है और ऐसा मैं अपने छोटे अनुभव से कह सकता हूँ कि शुभ-अशुभ योग सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं. उसके बाद ग्रहों की स्थिति (उच्च -नीच, कम्बस्ट ),और नक्षत्रों के आधार पर. केंद्र त्रिकोण में उनका बैठना इत्यादि, परन्तु यदि शनि, सूर्य और मंगल ६, ८, १२ में भी हों तो उनका प्रभाव कम नहीं होगा.
मैंने पाप-कर्तरी का प्रभाव भी देखा है. शनि, मंगल, राहु, केतु क्रूर ग्रह माने गए हैं. इन ग्रहों के बीच यदि कोई घर/भाव फँस जाता है तो उस भाव के प्रभाव में कमी आती है और विपरीत प्रभाव देखने में आते हैं.
मेरा मानना है गुरु सभी कुंडली के लिए शुभ ग्रह हैं. यदि कोई उपाय काम न आ रहा हो तो गुरु को अपना लें. पुखराज या फिर उसका कोई उपरत्न अपना कर देखिये.
क्षमा कीजियेगा; परन्तु मैं लाल किताब के उपाय करने को बिलकुल नहीं कहूँगा। कष्ट में पड़े इंसान, पशु-पक्षी की सेवा आपको केतु और शनि का अच्छा फल देगी. अपने बस में जितना परोपकार करना हो तो करें. अन्ध विश्वास से बचिए.
नीच के ग्रह मज़बूत स्थिति में हो सकते हैं और उच्च के ग्रह कमज़ोर स्थिति में. इनका आकलन ज़रूरी है.
कई एस्ट्रोलॉजर जब यह कहते हैं कि कुंडली कमज़ोर है, सभी शुभ ग्रह दुष्प्रभाव में हैं इत्यादि तो इसका मतलब साफ़ होता है कि प्रेडिक्शन सही नहीं बैठेगी.
परन्तु यदि कुंडली मज़बूत हो तो फिर प्रेडिक्शन सही बैठती है. गुरु, शनि महत्वपूर्ण हैं किसी भी कुंडली में. राहु-केतु भी शनि और गुरु की मज़बूत स्थिति में उत्पात नहीं मचा सकते.
अब रही राहु केतु की दशा की बात: मेरा मानना है कि ये किस स्थान में बैठे हैं और किस ग्रह के साथ बैठे हैं, इसका प्रभाव पड़ेगा. यह दोनों राहु केतु, अकेले अपना प्रभाव बुरा नहीं देंगे. या तो उस ग्रह जिसके साथ युति है इनकी उसको प्रभावित कर और उस घर विशेष की स्थिति अच्छी या खराब करेंगे और इसका साफ़ असर उस घर के मालिक ग्रह की स्थिति पर निर्भर करेगा.
राहु-केतु शुभ ग्रहों की युति को ही खराब करते हैं.
शनि, मंगल, सूर्य साथ हों तो इनकी नहीं चलती. इसी कारण , मैं गुरु चांडाल दोष, श्रापित दोष, विष दोष और सूर्य ग्रहण दोष नहीं मानता.
बाकियों के साथ युति हो तो नाकों चने चबवा देते हैं.
मेरे विचार में लग्न कुंडली ८०% महत्वपूर्ण है.
दशा के लिए कारकांश कुंडली अवश्य देखिये. दशा लार्ड ६, ८, १२ में फंसे हों तो तकलीफ होगी.
मैं षडास्टक इत्यादि, दशा अंतरदशा लॉर्ड्स के कॉम्बिनेशन को इस आधार पर नहीं मानता. जैसे षडास्टक, नवम पंचम, सम - सप्तक इत्यादि.
यदि आप नौकरी करते हैं तो शनि आपके लिए महत्वपूर्ण हैं. व्यापार के लिए गुरु और चण्द्रमा की स्थिति सबसे ज्यादा आपके मानसिक स्थिति को बताता है. पीड़ित चन्द्रमा, पीड़ित लग्न स्वामी आपके लिए पैरों में पड़े जंजीर की तरह हैं और अक्ल पर ताले लगाने वाले जैसे.
मेरा यह भी मानना है कि दूसरे , सातवें , आठवें और १२ वें लार्ड की दशा कष्ट देगी ही देगी.
राहु केतु यदि चन्द्रमा और लग्न के स्वामी को प्रभवित कर रहे हैं युति बनाकर तो फिर आप सबसे ज़्यादा संघर्ष मह्सूस करेंगे.
मैं कारक और अकारक, बाधक ग्रहों के कांसेप्ट को भी नहीं मानता. मेरा मानना है कि ग्रह अपना नैसर्गिक फल देते हैं.
मेरे विचार से मारक ग्रह सिर्फ दूसरे घर का स्वामी ग्रह ही होता है. यदि शुभ ग्रह मारक हों तो लम्बे समय का कष्ट देंगे अपनी दशा में. अशुभ मारक ग्रह मारेंगे मगर लम्बा नहीं घसीटेंगे. 😁.
गोचर का लाभ तभी मिलेगा जब दशा अच्छी चल रही हो. कुंडली में ग्रह, युति अच्छे बने हों.
ढैया और साढ़े साती सभी गोचर के आधार पर बने हैं.
भाग्य प्रबल हो तो आप परेशानियों से आसानी से निकल जाएंगे.
आपका मन शांत तभी होगा जब चंद्र और आपके लग्न के स्वामी दूषित नहीं होंगे. मन शांत नहीं है तो निर्णय गलत होंगे.
उच्च और नीच के ग्रह तभी अच्छा फल देंगे जब आपकी दशा अच्छी चल रही होगी. उच्च ग्रह भाग्य और आत्मबल बढ़ाते हैं. नीच के ग्रह शंका में रखते हैं. अनिश्चित और आक्रांत भी. नीच के ग्रह कड़ी मेहनत के कम फल देते हैं अपनी दशा में. उच्च के ग्रह सफल भी बनाते हैं और सम्मानित भी महसूस कराते हैं. नीच के ग्रह असंतुष्ट ही रखते हैं. नीच के ग्रह मृग मरीचिका जैसे हैं. नाम बड़े , दर्शन छोटे.
मेरे लिए उपाय का अर्थ कर्म के फल का भोग ही है. समय कठिन हो तो अपने जीवन को सरल कर लें, ईश्वर से अपने पाप कर्मों के लिए क्षमा मांग लें.
कर्मकांड और आडम्बर वाले प्रयोजन और टोटके काम नहीं आ सकते. परन्तु ये तब काम आते हैं जब आपके गुरु अच्छे हों. गुरु को सभी को अच्छा करना चाहिए. समय ज्यादा लग सकता है. गुरु का अर्थ है सात्विक हो जाना. अपने लोभ, मोह, स्वार्थ, महत्वाकांक्षा को कम से कम कर देना या त्याग देना. गुरु का सम्मान, सभी का सम्मान, , मर्यादित जीवन, अच्छा व्यवहार, विचार इत्यादि.
मेरे एक मित्र के पति का ३१ दिसम्बर २०२४ को निधन हो गया। हार्ट अटैक उनके ५१ वे जन्मदिन के ६ दिन पहले आ गया जब वे घर में आराम कर रहे थे. अमेजन में आईटी में अच्छे पद पर थे बंगलौर में.
उनकी पत्नी ने बताया कि वे सभी जयपुर से लौटे थे वेकेशन के बाद और भोजन कर कमरे में आराम करने गए. मेरी मित्र दूसरे कमरे में अपनी पुत्री के साथ कुछ काम कर रही थीं. तभी उन्हें कराहने जैसी मंद आवाज़ दूसरे कमरे से सुनाई दी. वे दौड़ कर वहां पहुंची तब देखा उनके पति अपने छाती को ह्रदय के करीब दबा कर पड़े थे. मेरी मित्र जब तक तक कुछ कर पातीं तब तक उनके पति का शरीर स्थिर हो चुका था. एम्बुलेंस १० मिनट में आ जाता है, नज़दीक के हस्पताल में १५ मिनट में पहुँचने के बाद भी उनके बचाया नहीं जा सका. हस्पताल ने ब्रॉट- डेड बता दिया. ईसीजी टेस्ट ने मृत बता दिया.
यह वाक़या मैं आपको इसलिए बता रहा हूँ कि मृत्यु की कोई ग्रह दशा नहीं होती. उनकी शनि की दशा में शुक्र का अंतर प्रत्यंतर और गुरु की सूक्ष्म दशा चल रही थी . वृषभ राशि और कुम्भ लग्न के व्यक्ति के लिए शनि और शुक्र दोनों अच्छे ग्रह हैं. और इन्हें कोई बीमारी भी नहीं थी. धार्मिक, सात्विक जीवन, शांत स्वभाव वाले व्यक्ति .
ऊपर की कुंडली में क्या सुख भाव और चन्द्रमा पाप-कर्त्री में हैं? शनि-केतु और मंगल के बीच फंसे हैं चन्द्रमा और सुख भाव.
कई ज्योतिषी चौथे भाव को ह्रदय मानते हैं शरीर का. तो क्या पाप-कर्त्री ने ह्रदय को पाप प्रभाव में दाल दिया और इसीलिए इनकी मृत्यु ह्रदय अपघात से हुई?
क्या चन्द्रमा ३१ दिसंबर २०२४ को कमज़ोर अवस्था में थे ? नीचे के चार्ट को देखिये. चन्द्रमा ३१ दिसम्बर को अष्टम में थे और आत्मा के कारक सूर्य भी अष्टम में थे. सूर्य इनकी कुंडली में भी सप्तमेश हैं तो वे भी मारक ग्रह हुए इस कुंडली में.
सबसे बड़ी बात यह है की ३१ दिसम्बर २०२४ को चौथा भाव यानि ह्रदय का भाव भी पाप-कर्त्री में है-मंगल और केतु के बीच फंसा हुआ. और चौथे भाव के स्वामी सूर्य अष्टम में हैं.
शनि केतु पंचम में, गुरु शुक्र १२ वे में. गुरु की महादशा २०१७ तक काफी अच्छी चली, तीन देशों में काम किया, करियर, धन सब अच्छा. नवम्बर २०१७ से शनि की दशा में भी करियर और जीवन अच्छी गति से चला.
गुरु १२ वें में नीच के, दूसरे भाव के स्वामी भी हैं . पर क्या सूक्ष्म दशा में गुरु मृत्यु का कारण बन सकते हैं? नहीं. गुरु के सामान आचरण वाले व्यक्ति को गुरु क्या और क्यूँ मुश्किल देंगे? नवमांस में गुरु उच्च के हैं. गुरु ने अपनी महादशा में उच्च का और १२वें भाव का फल दिया. विदेशों में नौकरी, विदेशों में लंबा प्रवास भी. फलतः गुरु इनकी कुंडली में ११वें भाव के स्वामी भी हैं. उन्होंने इच्छा पूर्ति भी की और धन संचय में भी मददगार साबित हुए अपनी दशा में.
शनि के साथ शुक्र और गुरु दोनों का ही षडास्टक बन रहा है. गुरु के साथ १२ वे में बैठे हैं. गोचर में शनि लग्न में हैं, शुक्र के साथ. गुरु वृष में चौथे भाव में. जब दशा में डबल षडास्टक चल रहा हो और षडास्टक वाले ग्रह शुक्र का लग्न में गोचर क्या आघात कर सकता है? आप बताइये. शुक्र तो इनके केंद्र और त्रिकोण भाव के स्वामी हैं. इसमें तो सब अच्छा ही होना चाहिए था?
जयपुर के अपने वेकेशन पर ही इन्होने अपने लिए एक पुखराज की अंगूठी खरीदी थी और अभी बंगलौर में पूजा करा कर इसे पहनने वाले थे. उनका मानना था कि पुखराज उनका जीवन बदल देगा.
इन्होने दो अमेरिकन पेटेंट भी अपने नाम किये थे। आठ साल तक डाटा साइंस में आईआईटी बम्बई में काम किया और पिछले ३ साल से अमेज़न में थे. मैसूर से गणित में मास्टर की डिग्री ली थी इन्होने.
अभी-अभी मेरे परम मित्र से दिल्ली में बात हुई. वे ज्योतिष के अच्छे जानकार हैं. आईटी में अच्छे पद पर काम कर रहे हैं. उनको जब मैं इस केस के बारे में बता रहा था तो तत्काल तो उन्होंने गुरु को इस घटना के लिए जिम्मेवार बताया पर फिर उन्होंने पुछा, क्या इनका मंगल अपनी ही राशि में है? मैंने कहा हाँ और मुझे आश्चर्य भी हुआ कि जय ने मंगल का अपनी राशि में वाली बात कैसे पकड़ी. मंगल मेष में हैं.
फिर उन्होंने बताया कि हार्ट अटैक मंगल के कारण होता है, जैसा कि उन्होंने कुछ अन्य ऐसी घटनाओं में पाया है. है न कमाल की बात?
अब मंगल का इस कुन्डली में हार्ट अटैक से क्या सम्बन्ध है और ३१ दिसम्बर 2024 को ही हार्ट अटैक से मृत्यु का क्या ज्योतिषीय कारण सामने आता हैं? यह जांच का विषय है.
शनि केतु के साथ पंचम में मिथुन में हैं। मंगल केतु के नक्षत्र अश्विनी में हैं. गोचर में शनि लग्न में कुम्भ में हैं। मंगल पांचवे भाव में शनि और केतु के ऊपर से गोचर में हैं।
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