बिखर गए तो रेत , ढल गए तो बुत !
कितनी पोस्टमार्टम की जाए अपनी कुंडली और किस्मत की. साली घूम घूम कर अपनी काली शक्ल दिखाने आ जाती है. कभी भी हो, जवानी से अब बुढ़ापे तक इसकी यही कहानी रही है, ज़िन्दगी हराम करते रहो।
हर बार इसी बात का अहसास करने की कोशिश की है इसने कि मेरा वक़्त ख़त्म हो गया है. अब बेकार की कोशिश कर रहा हूँ मैं, मेरे लिए कोई काम किसी जगह नहीं बचा है. डटे रहे तो फिर कुछ मिला पर अब बस झूठ की आस बची है.
पढ़ते रहो, फौजियों की तरह तैयारी करते रहो पर बात नहीं बनती. हज़ारों जगह अप्लाई कर करते रहो , ऐसे कितने ही ब्लॉग पिछले ५ सालों में लिख चुका , साली किस्मत है कि समझती ही नहीं. कब ख़त्म होगी इसकी शरारतें। . कितना कर्मा बचा है अब तक तो ख़त्म हो जाना चाहिए था।
एक ही शब्द है जो बार बार लौटता है, फ़्रस्ट्रेशन, निराशा , इंतज़ार, बेचैनियां जो कब ख़त्म होंगी कह नहीं सकता.
समय ठीक तो लग रहा है पर मौका नहीं मिल रहा. हाथ में आकर मौका निकल गया, डेट आ गया जोइनिंग नहीं हुई, बार बार यही कहानी।
चलो ऐसा होता रहता है, कोई नयी बात नहीं है. जेल जमानत बेल परोल बस यही कहानी है अपनी. और इसके ऊपर ही एक गुमनाम कहानी बनेगी, किताब भी.
शायद यह सब इसलिए हो रहा है ताकि मैं , अपना रास्ता बदल दूँ. और उस रास्ते मैं चल पड़ा हूँ.. आगे इसे मज़बूती से करता जाऊँगा।
इस धरती पर हर पल ये जंग है, हमेशा लड़ते रहना और जीतने के अलावा कोई और रास्ता नहीं है.
शत्रु सिर्फ वह नहीं है यहां जो खंज़र लिए खड़ा है, बल्कि वे सब हैं , जैसे गरीबी, बीमारी, मज़बूरी, लाचारी, बदकिश्मती, पक्षपात, अन्याय, और पता नहीं क्या क्या। ..
तो इसलिए भाई, बंधू, दीदी, माताजी, बच्चे , लड़ाई ख़त्म नहीं होती... लड़ते रहो..
बिखर गए तो रेत , ढल गए तो बुत !
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