HR को चाहिए आज़ादी.
वक़्त है आज़ादी का. मैं कन्हैया का फैन हूँ. उनके नारों का फैन हूँ. मैं भी JNU का छात्र रहा हूँ.
HR डिस्ट्रेस/यंत्रणा से गुज़र रहा है. अनन्त पीड़ा से गुज़र रहा है. कृष्ण की भूमिका से अब दास की , याचक की स्तिथि में आ गया है. पोस्टर बॉय /गर्ल अब पोस्टर के पीछे छुप गया है. इसे चाहिए आज़ादी। HR क्या अब सिर्फ "हारे को हरी नाम"! रह गया है? क्या सबसे ज्यादा insecure एंड politicking फंक्शन है यह? क्या यह यह इन्फेक्शन का श्रोत है? vulnerable भी और हेल्पलेस एंड उपेक्षित भी? इसे चाहिए आज़ादी! इसे चाहिए एक कृष्णा!
भूमिका-
HR का सो कॉल्ड लीडरशिप? अपनी पहचान नहीं बन सका.
LinkedIn और twitter पर अपनी पहचान ढूंढ रहा है. कुछ तो बस facebook तक ही अपनी इंटेलेक्चुअल काबिलियत सीमित कर लेते हैं. वेलफेयर स्टेट का सबसे बड़ा जीता -जागता उदहारण है HR . एक छद्म कोशिश, बिज़नेस enabler , catalyst , चेंज ऐजेंट , पता नहीं, कहाँ कहाँ से ये शब्द इन सेल्फ-proclaimed लोग ले कर आये.
Distress जीन्स के बाद अब समय चल रहा है डिस्ट्रेस हायरिंग का. यहां आपके रिज्यूमे का in-human, non nonsensical टार्चर किया जाता है. आपके एक्सपीरियंस एंड कैपेबिलिटी जो आप प्रूव कर चुके होते हो उसकी खिल्ली उड़ाई जाती है और, कोई नक्कारखाने की टूटी की तरह का फटा हुआ HR वाला आपकी बोली लगाता है.
अब ज़माना आ गया है, कौओं का. यह हंस को चलना सिखा रहे हैं.
२०० से ज्यादा लोग जाबलेस मिड एंड सीनियर मैनेजमेंट के बैंगलोर में जॉब ढूंढ रहे है क्योंकि ये अभी कुछ ६ से ८ महीनों पहले काम से निकाले गए हैं. ये ज्यादातर लोग प्रीमियर एजुकेशन बैकग्राउंड से हैं. HEADHUNTER कंसल्टिंग के कृष् ने अभी एक आर्टिकल में उनके १०० से ज्यादा बेरोज़गार और "लुकिंग फॉर नई ओप्पोर्तुनिटी" वाले लोगों का डेटा बेस बता रहे थे. यह सिर्फ बैंगलोर का डेटा है और सायद सिर्फ HEADHUNTER का. सभी मेजर रिक्रूटिंग फर्म्स को जोड़ लें तो शायद दृश्य और भयावह लगे.
अगर यह सत्य है तो ऐसा क्यों हुआ और क्या इसमें कोई नेचुरल जस्टिस सम्मिलित है?
सिर्फ HR जिम्मेदार है अपनी स्तिथि के लिए. गुलाम बन गया. अड्डा बन गया नकारों का, फेल्ड लोगों का, वर्किंग हाउस वाइफ मं-सेट के लोगों का.. लोगों ने गवर्नर्स के जैसे अपने एजेंट बैठा दिए HR में. षड़यंत्र का ऐड बन गया यह जो कभी एम्प्लोयी वेलफेयर एंड वेल बीइंग का झंडाबरदार था. एक मर्यादा थी इसमें. एक मज़बूत इरादे और व्यक्तित्व के लोग आते थे. अब समय के साथ इसमें कम्फर्ट गर्ल्स के जैसे लोग भरते गए. घिन आती अब इससे.
वजह जो मुझे लगती है वह यह है कि समय के साथ, टेक्नोलॉजी एंड अवेयरनेस ने कई जॉब्स की अहमियत कम कर दी है. कई जॉब अब उतने महत्वपूर्ण नहीं लगते क्योंकि जनता उन जॉब स्किल्स और एक्सपीरियंस को अब जरूरी नहीं समझती. HR में यह काफी हुआ है, क्योंकि HR समय के साथ स्किल्स बेस्ड रिक्रूटिंग फंक्शन बन कर रह गया जहां बिसिनेस कोई २ पैसे का वैल्यू देखता है. coordination ही सही, HR के पास कोई काम तो है,
ट्रेनिंग भी कुछ बचा है वह भी सिर्फ कंप्लायंस की वजह से. पर्सोनेल मैनेजमेंट और वेलफेयर की अब कोई बात करता नहीं. सभी लो एन्ड ऑउट्सोर्सेड हो गए, पेरोल आउटसोर्स हो गया, ट्रेवल एडमिन/एकाउंट्स टेक अप्प्रोअवल और सब आसान है.
ज्ञान HR वालों से ज्यादा अब नए बच्चों के पास है। वह HR वालों से ज्यादा अच्छी डिग्री और इंटेलिजेंस ले कर आते हैं. उनके मैनेजर्स उन्हें HR से हाइ -हेलो तक ही सम्बद्ध रखने की सलाह देते हैं. लोगों को भी मालूम है, बाप तो मैनेजर है और मुझे HR सर्विस डिलीवर कर देगा जब मैं या मेरा मैनेजर उन्हें आदेश दे देगा. ऑफिस एडमिन भी वह सब कर सकता है, कहीं काम error के साथ एंड timely भी. HR का संघर्ष अब बढ़ गया है. राम चरण आगाह कर चुके हैं. टाइम टू split HR
संता -बंता जोक्स के बाद कॉर्पोरेट में सबसे जियादा जोक्स HR पर ही बने हैं.
HR तो outdated एंड useless साबित करने में राम चरण और कुछ अन्य ने कोई कमी नहीं छोड़ी है. HR रंगे सियार की तरह नया रंग लपेटकर आता है, कभी "Diversity एंड Inclusiveness " कभी टोटल रिवार्ड्स तो कभी टैलेंट मैनेजमेंट. ये सारे सीनियर और आउटडेटिड HR dinosaur के नौकरी बचाउ जुगाड़ हैं! इनके नाम पर फ़ोकट के कांफ्रेंस में लंच डिनर और दारु मिलता है. ऑफिस से फ्री।
कंपनी में कोई नहीं सुनता है तो twitter पर इनके बचकाने स्टेटमेंट पढ़ लीजिए. कुछ तो है कि हमें भरोसा दिलाता है की हम बिलकुल कलियुग में हैं.
मैंने कुछ समय पहले लिंकेडीन में एक आर्टिकल लिखा था कि अब हम स्किल्स के युग में हैं. आर्टिकल यहां पढ़े.
जब मैं अनुभवी लोगों से बात करता हूँ तो पाता हूँ कि "समय आ गया है जब सिर्फ "SKILLs बेस्ड हायरिंग होगी. यह चल रही है. एक्सपीरिंयस की हायरिंग अब महँगी लग रही है. अब २५ लाख की सैलरी वाले बेरोज़गार लोगों को ८ लाख के ऑफर्स मिलते हैं. वह भी कभी कभी शार्ट टर्म कांट्रैक्ट पर. स्थिति शर्मनाक है.
हम सभी एक अदृश्य बेरोज़गार दुनिया की तरफ बढ़ रहे हैं. HR की कोर्सेज में एडमिशन काफी गिर गए हैं.MBA HR अब सबसे थके और कुछ इलीट के लिए एक फैंसी कोर्स रह गया है. बेहतर भी है. न रहेगी अपेक्षा न निराशा होगी. वर्किंग हाउसवाइफ जैसा एक टर्म शायद मैंने ही इज़ाद किया है. यह उस तरह की मानसिकता वाले मर्दों पर भी लागू होता है. यहाँ मेरा तात्पर्य जेंडर बायस करना नहीं है बल्कि एक मानसिकता की तरफ इशारा करना भर है.
यह कहानी चलती रहेगी... बाकी अगले अंक में.
वक़्त है आज़ादी का. मैं कन्हैया का फैन हूँ. उनके नारों का फैन हूँ. मैं भी JNU का छात्र रहा हूँ.
HR डिस्ट्रेस/यंत्रणा से गुज़र रहा है. अनन्त पीड़ा से गुज़र रहा है. कृष्ण की भूमिका से अब दास की , याचक की स्तिथि में आ गया है. पोस्टर बॉय /गर्ल अब पोस्टर के पीछे छुप गया है. इसे चाहिए आज़ादी। HR क्या अब सिर्फ "हारे को हरी नाम"! रह गया है? क्या सबसे ज्यादा insecure एंड politicking फंक्शन है यह? क्या यह यह इन्फेक्शन का श्रोत है? vulnerable भी और हेल्पलेस एंड उपेक्षित भी? इसे चाहिए आज़ादी! इसे चाहिए एक कृष्णा!
भूमिका-
HR का सो कॉल्ड लीडरशिप? अपनी पहचान नहीं बन सका.
LinkedIn और twitter पर अपनी पहचान ढूंढ रहा है. कुछ तो बस facebook तक ही अपनी इंटेलेक्चुअल काबिलियत सीमित कर लेते हैं. वेलफेयर स्टेट का सबसे बड़ा जीता -जागता उदहारण है HR . एक छद्म कोशिश, बिज़नेस enabler , catalyst , चेंज ऐजेंट , पता नहीं, कहाँ कहाँ से ये शब्द इन सेल्फ-proclaimed लोग ले कर आये.
Distress जीन्स के बाद अब समय चल रहा है डिस्ट्रेस हायरिंग का. यहां आपके रिज्यूमे का in-human, non nonsensical टार्चर किया जाता है. आपके एक्सपीरियंस एंड कैपेबिलिटी जो आप प्रूव कर चुके होते हो उसकी खिल्ली उड़ाई जाती है और, कोई नक्कारखाने की टूटी की तरह का फटा हुआ HR वाला आपकी बोली लगाता है.
अब ज़माना आ गया है, कौओं का. यह हंस को चलना सिखा रहे हैं.
२०० से ज्यादा लोग जाबलेस मिड एंड सीनियर मैनेजमेंट के बैंगलोर में जॉब ढूंढ रहे है क्योंकि ये अभी कुछ ६ से ८ महीनों पहले काम से निकाले गए हैं. ये ज्यादातर लोग प्रीमियर एजुकेशन बैकग्राउंड से हैं. HEADHUNTER कंसल्टिंग के कृष् ने अभी एक आर्टिकल में उनके १०० से ज्यादा बेरोज़गार और "लुकिंग फॉर नई ओप्पोर्तुनिटी" वाले लोगों का डेटा बेस बता रहे थे. यह सिर्फ बैंगलोर का डेटा है और सायद सिर्फ HEADHUNTER का. सभी मेजर रिक्रूटिंग फर्म्स को जोड़ लें तो शायद दृश्य और भयावह लगे.
अगर यह सत्य है तो ऐसा क्यों हुआ और क्या इसमें कोई नेचुरल जस्टिस सम्मिलित है?
सिर्फ HR जिम्मेदार है अपनी स्तिथि के लिए. गुलाम बन गया. अड्डा बन गया नकारों का, फेल्ड लोगों का, वर्किंग हाउस वाइफ मं-सेट के लोगों का.. लोगों ने गवर्नर्स के जैसे अपने एजेंट बैठा दिए HR में. षड़यंत्र का ऐड बन गया यह जो कभी एम्प्लोयी वेलफेयर एंड वेल बीइंग का झंडाबरदार था. एक मर्यादा थी इसमें. एक मज़बूत इरादे और व्यक्तित्व के लोग आते थे. अब समय के साथ इसमें कम्फर्ट गर्ल्स के जैसे लोग भरते गए. घिन आती अब इससे.
वजह जो मुझे लगती है वह यह है कि समय के साथ, टेक्नोलॉजी एंड अवेयरनेस ने कई जॉब्स की अहमियत कम कर दी है. कई जॉब अब उतने महत्वपूर्ण नहीं लगते क्योंकि जनता उन जॉब स्किल्स और एक्सपीरियंस को अब जरूरी नहीं समझती. HR में यह काफी हुआ है, क्योंकि HR समय के साथ स्किल्स बेस्ड रिक्रूटिंग फंक्शन बन कर रह गया जहां बिसिनेस कोई २ पैसे का वैल्यू देखता है. coordination ही सही, HR के पास कोई काम तो है,
ट्रेनिंग भी कुछ बचा है वह भी सिर्फ कंप्लायंस की वजह से. पर्सोनेल मैनेजमेंट और वेलफेयर की अब कोई बात करता नहीं. सभी लो एन्ड ऑउट्सोर्सेड हो गए, पेरोल आउटसोर्स हो गया, ट्रेवल एडमिन/एकाउंट्स टेक अप्प्रोअवल और सब आसान है.
ज्ञान HR वालों से ज्यादा अब नए बच्चों के पास है। वह HR वालों से ज्यादा अच्छी डिग्री और इंटेलिजेंस ले कर आते हैं. उनके मैनेजर्स उन्हें HR से हाइ -हेलो तक ही सम्बद्ध रखने की सलाह देते हैं. लोगों को भी मालूम है, बाप तो मैनेजर है और मुझे HR सर्विस डिलीवर कर देगा जब मैं या मेरा मैनेजर उन्हें आदेश दे देगा. ऑफिस एडमिन भी वह सब कर सकता है, कहीं काम error के साथ एंड timely भी. HR का संघर्ष अब बढ़ गया है. राम चरण आगाह कर चुके हैं. टाइम टू split HR
संता -बंता जोक्स के बाद कॉर्पोरेट में सबसे जियादा जोक्स HR पर ही बने हैं.
HR तो outdated एंड useless साबित करने में राम चरण और कुछ अन्य ने कोई कमी नहीं छोड़ी है. HR रंगे सियार की तरह नया रंग लपेटकर आता है, कभी "Diversity एंड Inclusiveness " कभी टोटल रिवार्ड्स तो कभी टैलेंट मैनेजमेंट. ये सारे सीनियर और आउटडेटिड HR dinosaur के नौकरी बचाउ जुगाड़ हैं! इनके नाम पर फ़ोकट के कांफ्रेंस में लंच डिनर और दारु मिलता है. ऑफिस से फ्री।
कंपनी में कोई नहीं सुनता है तो twitter पर इनके बचकाने स्टेटमेंट पढ़ लीजिए. कुछ तो है कि हमें भरोसा दिलाता है की हम बिलकुल कलियुग में हैं.
कल्पना कीजिये एक दिन के लिए "HR मुक्त विश्व का". इस मुक्त वाले स्टेटमेंट का अभी ट्रेंड चल रहा है. अगर कल से HR पर बैन लग जाए तो क्या फर्क पड़ेगा? हायरिंग लोग अपने दोस्तों का ही करते हैं. कर लेंगे. कंपनसेशन मैनेजर डील कर लेते हैं, कर लेंगे. . HR की जगह ये लोग ऑफर लेटर प्रिंट कर लेंगे. पेरोल कंपनी को लेटर भेज देंगे, २ मिनट में आनबोर्डिंग . एडमिन वेंडर आईडी कार्ड बना देगा. डन ! प्रमोशन, ट्रेवल, सैलरी अप्रैज़ल मैनेजर ही तय करते हैं. जो पसंद नहीं आया फायर कर दिया. HR का काम एडमिन कर लगा. ESIC कवर्ड कुछ थर्ड पार्टी कांट्रेक्टर काफी कुछ मैनेज करते हैं. कर लेंगे.
मैंने कुछ समय पहले लिंकेडीन में एक आर्टिकल लिखा था कि अब हम स्किल्स के युग में हैं. आर्टिकल यहां पढ़े.
जब मैं अनुभवी लोगों से बात करता हूँ तो पाता हूँ कि "समय आ गया है जब सिर्फ "SKILLs बेस्ड हायरिंग होगी. यह चल रही है. एक्सपीरिंयस की हायरिंग अब महँगी लग रही है. अब २५ लाख की सैलरी वाले बेरोज़गार लोगों को ८ लाख के ऑफर्स मिलते हैं. वह भी कभी कभी शार्ट टर्म कांट्रैक्ट पर. स्थिति शर्मनाक है.
हम सभी एक अदृश्य बेरोज़गार दुनिया की तरफ बढ़ रहे हैं. HR की कोर्सेज में एडमिशन काफी गिर गए हैं.MBA HR अब सबसे थके और कुछ इलीट के लिए एक फैंसी कोर्स रह गया है. बेहतर भी है. न रहेगी अपेक्षा न निराशा होगी. वर्किंग हाउसवाइफ जैसा एक टर्म शायद मैंने ही इज़ाद किया है. यह उस तरह की मानसिकता वाले मर्दों पर भी लागू होता है. यहाँ मेरा तात्पर्य जेंडर बायस करना नहीं है बल्कि एक मानसिकता की तरफ इशारा करना भर है.
यह कहानी चलती रहेगी... बाकी अगले अंक में.
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