प्रारब्ध अर्थात दुर्भाग्य? ईश्वर बेनक़ाब !
प्रारब्ध, कर्मा, डेस्टिनी, फेट, सभी शब्दों के मायने एक से हैं, मतलब दुर्भाग्य ! कभी सुना है किसी को इन शब्दों के साथ सौभाग्य की चर्चा करते हुए? मैंने नहीं सुना.
दिलचस्प बात है संचित कर्म हैं तो प्रारब्ध भी बनेगा..
आज एक ह्रदय विदारक सूचना मिली. एक जान पहचान की महिला, जो सिंगल मदर हैं, ने अपने एक मात्र 9 वर्षीय पुत्र को कल ही डेंगू के कारण खो दिया.. उसके जीने की वज़ह ईश्वर ने छीन ली.. एक माँ का यह दर्द विष्णु की सैया को हिला पाए न पाए पर उसने हम सब को काठ सा बना दिया है.. स्तब्ध, निस्तेज़, मृत.. अकल्पनीय है यह सोच पाना कि ईश्वर इतना निर्दयी भी हो सकता है..
जब अभिमन्यु का पुत्र जो मृत पैदा हुआ था, इसी ईश्वर कृष्ण ने उसे जीवित कर दिया था.. आज कृष्ण कहाँ हैं?
हम सभी को अपना दर्द मामूली लगने लगा इस भीषण दर्द के आगे.. उस माँ की दशा सोच सिहर जाता हूँ..
शायद इससे बड़ी विभीषिका की कल्पना भी कोई नहीं कर सकता..
एक माँ अब कैसे जीएगी? क्यूँ इतना अन्याय?
कोरोना ने कई बच्चों को अनाथ कर दिया है.. क्या उनका दुःख कोई बाँट सकता है? शायद ऐसी कोई माँ.
मैं आज काफी दर्द में हूँ..
सुना था दुःख माँजता है पर ऐसा दुःख कलेजे में गहरा खंज़र है.. जो न जीने देगा, न मरने..
ईश्वर इतना दुःख आप संचित कर्म के हिसाब से देते हो न, फिर तुम्हारा नर्क कहाँ है? क्यूँ नहीं वहीँ इनको तेज़ाब के समुन्दर में जला देते? क्यूँ छल करते हो नया जीवन देकर, पुरानी स्मृति छीनकर, नए सपने देकर? यह तो धोखा है..
तुम्हारा कोई नर्क नहीं है और स्वर्ग भी वैसा ही सफ़ेद झूठ..
ये फिर बता तो स्वर्ग नर्क सब इसी दुनिया में है..
मुझे तो तुम्हारा संचित कर्म और प्रारब्ध सब प्रपंच और पाखंड लगते हैं..
तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध तो पत्ता नहीं हिलता, फिर कोई पाप कर्म कैसे कर लेगा?
अच्छी कहानी फैला रखी है आपने प्रभु..
आपकी लीला अपरंपार..
मृणाल जी जीवन के प्रत्यक्ष अनुभव से उपजी आपकी बात ना चैन से बैठने देती है और ना ही तिलमिला कर भागने। आप की कलम हमेशा सत्य का साक्षात्कार कराती है।
ReplyDeleteलिखते रहिए
हमें इसकी बहुत ज़रूरत है