Saturday, August 1, 2020

दूसरी ज़मात


यह तश्वीर उन सिगल्स की स्थिति को दर्शाती है जो अपनी हीन भावना से ऊपर नहीं उठ  सके. एच आर में एक लम्बी फौज है जो कुलवधुओं के वेश में वेश्याएं हैं. यह विश्लेषण कई पुरुषों पर भी सामान्य रूप से लागू  होता है. यह एक विचार है, एक मानसिकता जो सभय्ता की लाश नोचते से नज़र आते हैं. सच, हम कलयुग में जी  रहे हैं. 

अब आते हैं मुद्दे पर.. दूसरी जमात क्या हैं? 


नौकरी जा सकती है, बिज़नेस फेल होते हैं. कई लोग कंगाल हो जाते हैं कई बच जाते हैं... उन्हें सहारा मिल जाता है. 
दूसरी ज़मात उन लोगों की है जो पहले से ही फ्रॉड हैं.
जब मैं पी सी एस टेक्नोलॉजी में काम करता था तब एक रिक्रूटर इंटरव्यू देने आया। .उसे हमारे मल्लू जोनल मैनेजर की 'माल' (इस मल्लू माल की चर्चा हम बाद में करेंगे) ने अपने कंसल्टेंसी से भेजा, हमारे यहां के रिक्रूटर पोजीशन के लिए. 
लड़का मध्य प्रदेश के किसी जगह से एम् सी ए की पढाई करके आया था।  कहीं कोई रिक्रूटमेंट कंपनी में काम कर रहा था, पता नहीं वह भी सही इनफार्मेशन था या फेक रिज्यूमे मात्र. . माल का कैंडिडेट था सो बहाल हो गया. ऐसी कंपनी में प्रीमियर बी स्कूल के बाद हम बहाल हुए थे, बहार चिन्दी चोर रिक्रूटमेंट कंपनी में काम करके. खैर, वह अलग कहानी है. जब किस्मत हो गांडू, तो क्या करेगा पाण्डु. . मुश्किल से दो लाइन अंग्रेजी बोल पता था यह लडका , पर आज बड़ी बड़ी अमेरिकन कंपनी में एच आर का बॉस बना बैठा है. काम के बीच में उसने आईआईएम बैंगलोर से एक पार्ट टाइम सर्टिफिकेट खरीद लिया और किस्मत जबरदस्त है बन्दे की. अब हमारे जैसे लोग आन बाण शान के लिए काम करते हैं पर एच आर तो मुँह पर लगाम, गले में पट्टा और दुम हिलाने का नाम है. 

दूसरी तरह की फौज एच आर  में है जो घटिया कॉलेज की डिग्री लेकर और अपने चरित्र का सौदा कर आगे बढ़ते जाते हैं. किसी के साथ भी सो जाना. और ऐसे लोग उन कंपनियों में सेलेक्ट होकर एच आर हेड बने बैठे हैं जहां हमारा रिज्यूमे कभी शॉर्टलिस्ट तक नहीं हुआ. प्रीमियर बी स्कूल की माँ की छूट
सारी नौकरियां जुगाड़ से मिल रही हैं. किस्मत अच्छी है तो फिर तो ठीक है पर मेरी जैसी है तो भाई तैयार हो जाओ आगे बड़ी लड़ाई है. 
एम् एन सी में झंड लोग भी भरे हैं... एक्स एल आर आई/TISS  वाला बॉस भी चूतियों को भर कर मजे में है, उस साले को भी प्रतिस्पर्धा का भय है.  ABB जैसी कंपनियों में. Schneider Electric से एक एच आर की बंदी ABB में आती है फिर सारी उनके चरित्र वाली औरतें ABB में बिना किसी प्रीमियर बी स्कूल के भर दी जाती हैं. सब सेटिंग है. ये वही लड़कियां हैं जो पिछली कंपनी में अपने womanizer boss के हरम की शोभा बढ़ा रही थीं। ..इनका इंटरव्यू बॉस के प्राइवेट अपार्टमेंट में होता था. 

आप लिंकेडीन पर जॉब अप्लाई करते रहिये, घंटा नहीं कुछ उखड़ने वाला. 

अब मैं यह सब कौन सी नई बात लिख रहा हूँ. सबको पता है पर गन्दा है पर धंधा है यह. 
अभी मैं किसी से बात कर रहा तो पता चला कि Accenture से HCL भी ऐसी ही एक हाई प्रोफाइल एच आर टीम मूव हुई थी एक दशक पहले और फिर सबको पता चला कि एच आर के बॉस के साथ जो मैडम मूव हुईं वो तो प्राइवेट माल थीं उनकी. अब इन आधार पर एच आर की टीम सेलेक्ट होती है तो फिर बाकी क्या बचा है? 
किसी भी कंपनी में आज भी देख लीजिये , सिर्फ अपने लोग भर रखे हैं लोगों ने. जात-पात भाषा , के आधार पर. 
जब मैंने APC छोड़ा २००६ में तब मेरा रेप्लेस्मेंट हुई एक महिला, अत्यंत एवरेज और पुणे की किसी घटिया एम् बी ए की दूकान की डिग्री, पर थी माल, मालूम पड़ा उनका इंटरव्यू बॉस ने अपने प्राइवेट फ्लैट पर लिया था. फिर ये रिप्लेसमेंट वाली माल , एम् जी रोड के सेंट्रल मॉल में कपडे चुराते पकड़ी जाती हैं, १० गुणा कीमत अदा करना पड़ता है. मेरा एक दोस्त जो इनके साथ काम कर रहा था , फोन कर बुलाया जाता है , वह अपने बैंक से पैसे निकाल कर सेंट्रल मॉल वालों को देता है और मैडम को छुड़ा लेता है... हैं न फ़िल्मी कहानी. और मैडम ४ साल इसी MNC में काम करते रहती हैं. काम के नाम पर उनको क्या आता था वह मेरे दोस्त ने बता दिया था पर हाँ उसने बॉस को खुश रखा और नौकरी मजे में चलती रही. 
किसी सी ग्रेड फिल्म की स्क्रिप्ट सी लगने वाली यह कहानी है एच आर की , MNC की, बैंगलोर की. 
फिर मैडम अन्य कंपनियों में HR डायरेक्टर बन जाती हैं... 
उनका रिज्यूमे पढ़ेंगे तो शर्म आएगी.. एक जूनियर भी इतना घटिया रिज्यूमे नहीं लिखता. 

आज एच आर में ऐसे ही लोग हैं. ...हमारे जैसे लोग २००० जगह रिज्यूमे भेज दें दो साल में, एक भी इंटरव्यू नहीं मिलेगा. हमें भीख मांग कर जीना पड़ता है. ... महीने में बेगारी करने के बाद भी किराया तक नहीं निकल पाता. क्या फायदा प्रीमियर बी स्कूल का? क्या फायदा , दो सरकारी नौकरी और कुछ अच्छी कंपनियों में काम का अनुभव होने का. कोई वैल्यू नहीं है काबिलियत की 

पर बात आ अटकती है, किस्मत पर। 
पर क्या सुशांत सिंह राजपूत के हत्यारों को छोड़ दिया जाए , किस्मत समझ कर ? क्या चरित्रहीन लोगों, क़ातिलों , लूटेरों, साज़िश के सौदागरों को छोड़ दिया जाए.? क्या सुनंदा पुष्कर की हत्या को भी किस्मत मान लें, क्या ज़िया खान की आत्म हत्या को भी किस्मत मान लें? 

हमें नंगा करना होगा ऐसे लोगों को जो षड़यंत्र को पैदा करते हैं, पलते हैं कारपोरेट में.

हमारी जंग जारी है.. जारी रहेगी.. 







2 comments:

  1. Janaab jab apni biwi to bina kaaran aur bina bataaye chodne waala is desh ka pradhaan mantri ban sakta hai to aap baakiyon se kya insaaniyat ki ummeed lagaaye baithe hain. Republic TV ka satya sabko maaloom hai, bhakt or non-bhakt, SSR ka maamla bhi dhool chaatega, afsosjanak hai, par hamaari asliyat yehi hai. Ab aap is comment par muhje pappu ya musalmaan ya pakistaani bhi keh sakte hain, manzoor hai, lekin jab kisi kaabil insaan ko dabaaya jaae (jaisa ki aapke saath har baar hua hai, aaj bhi ho raha hai) tab maamla gambheer hota hai. Thanks to the current RULERS of this country, revolution will now surely come to create a better world.

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  2. Namaskar bandhu. Comment achha laga. aapka dhanyawad.
    PM ne biwi chod diya, doosri shaadi nahi ki...Mehar Tarar se ishq nahi kiya, Sunanda Pushkar ke saath bhi waisa nahi kiya, par sab devta hain..kya karen..
    Desh ki satta jiske haath hai, jiske paas power aur position hai, sena, mantri, CM, Judge wahairah, unko karne do kaam, ham wo sab nahin hain to apna kaam hai, aapraam karna, social media par shor macha ke apni khoon kyun jalaaayen..Jis janam me power milega, tab dekhenge..

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