Wednesday, July 20, 2016

HR की ज़िन्दगी जन्नत है. हनीमून की जगह

शिद्दत वाला HR ! मुझे याद है, २००१; जब मैं सिम्बायोसिस इंस्टिट्यूट ऑफ़ बिज़नेस मैनेजमेंट पुणे की MPM/MBA entrance test की इंटरव्यू के लिए गया था. GD स्टार्ट हुआ, मैं और एक सरदारजी, अंग्रेजी LOUDLY बक रहे थे. हम अग्रेसिव थे, आप बत्तमीज़ कह लीजिये। गलती हमारी नहीं हैं, हमें बताया गया था, ज्यादा बोलने को, औरों से मौका छीनने को, और ऐसे ही कुछ असंवैधानिक, असामाजिक प्रलाप. ग्रुप में काफी सज्जन और सलीकेदार , पढ़े-लिखे प्रतियोगी थे. हम दोनो ने उन्हें लगभग बोलने नहीं दिया. सीधे शब्दों में; हम ने उन्हें सुनने की बिलकुल कोशिश नहीं की, समझने की तो बात ही दूर की है. नतीजा? सरदार जी और मैं GD में सेलेक्ट हो गए, सभ्यजन बाहर. सरदारजी आज CHRO हैं, एक नामी बीपीओ में फिलिपींन्स में. ठीक हैं, बीपीओ और वह भी फिलीपींस में, आप कहेंगे , अंधों में कांना राजा. ढेले पर का भात! दूसरी कहावत कुछ रूढ़ देशी है. आप रहने दीजिये! 
गार्टनर वाले कहते हैं, फार्च्यून २५० के CEOs  मानते हैं की उनके ५५% CHROs को बिज़नेस रणनीति नहीं समझ आती. उनके CFOs तो सिर्फ ३०% CHROs को इस काम के क़ाबिल समझते हैं. ९०% महिलाओं की चॉइस HR है.at - होम सा लगता है. बाकी जो मर्द HR में आये, उन्हें लगा, उन्हें सीधे कोई द्रोणाचार्य मान ले, सरकार द्रोणाचार्य पुरस्कार दे-दे ! भाई, पहले खेल तो समझ लो, ASIAD  में ब्रोंज तो लेलो, खेल रत्न पुरष्कार की कामना करो, निष्ठां से प्रयास करो. तुम तो यार अपने को मुगलों के वंशज समझ रहे हो. एक दिन में, बिना बिज़नेस को समझे, तुम चाणक्य बन जाना चाहते हो. 
गार्टनर रिपॉर्ट कहती है; सिर्फ २०% CHROs के पास एचआर के अलावा किसी और बिज़नेस फंक्शन का अनुभव है. 
HR वालों को अगर कौटिल्य बनना है, सम्मान पाना है तो सीईओ और सीएफओ की सर्टिफिकेट नहीं चाहिए , उन्हें राज धर्म का पंडित होना पड़ेगा. सीईओ का ग़ुलाम बनना छोड़ो. उसके राजगुरु, सेनापति बनो. 
HR में आज का HR "राजधर्म" नहीं, राजाधर्म निभा रहा है. उसकी सारी निष्ठा, सिर्फ राजा के प्रति है! राज्य धर्म निभाना नौकरी नहीं है. सच्चा राज्य धर्म पालन करने का अर्थ है, राज्य के हित के लिए राजा के भी विरुद्ध खड़ा होना हो तो संकोच न हो. HR इसी काम के लिए बना था, न कि राजा की नौकरी (ग़ुलामी) के लिए. मोटी सैलरी, कमज़ोर कलेजा लेकर HR का झंडा क्या उठाएंगे वे लोग जो EMI , अपने बंगले और फॉरेन वेकेशन का सोच कर नौकर बन गए, सारे समझौते कर लिए. इनका DNA आगे के HR वंसज को न जाए, यही ईश्वर से कामना है.

"बूरे वंश कबीर का उपजे पूत कमाल ! आधा तो कबीरा हुआ, आधा हुआ कमाल !!" HR के बंधुगण , या तो आप कबीर हो जाइए , या फॉर कमाल, जो उनका पुत्र था. आज HR में, तृष्णा है, त्याग नहीं, मोह है, लोभ है, भय है, असुरक्षा है, फिर तो बेटा "तुमसे न हो पायेगा. "


HR के सम्मान में कुछ पध लिखे गया हैं. इन्हे समझने की कोशिश करते हैं. 

HR की ज़िन्दगी जन्नत है. हनीमून की जगह. निरर्थक काम में लगे हैं HR वाले. 


HR वाले जब अति मूर्ख कहे  जाने लगें, आप  समझ लीजिए कुँए में भांग पड़ी है. 


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