Saturday, January 30, 2016

आंबेडकर के बाद कांशी राम और बाकी सब राम-राम.

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रोहित वेमुला की जाति ज्यादा महत्वपूर्ण है या सरकारी संस्थाओं की हिटलरी?
भारत में एक्सट्रीम नहीं चलता. न ही सॉफ्ट एक्सट्रीम न ही हार्ड! एक्सट्रीम सॉफ्ट एक्सटिंक्ट हो जाते हैं, और एक्सट्रीम हार्ड एक्सटिंक्ट कर दिए जाते हैं. मॉडरेट बेस्ट हैं..  भावनाएं,संवेदनाएं, उबाल, सभी हाइपरटेंशन का कारण हैं. अतिरेक बिमारी का नाम है. बैलेंस बना कर चलना होगा. आंबेडकर साहब ने नारा दिया "जाति तोड़ो, समाज जोड़ो" ६८ वर्षों के बाद भी अभी भी दलित एक्सिस्ट करते हैं, और कितने साल लगेंगे जाति तोड़ने में? जब तक रिजर्वेशन है, तब तक, जाति है, तब तक दलित जैसा शब्द है, तब तक दलित राजनितिक पार्टी है, तब तक, १५ % नंबर में आईआईटी की सीट है, तब तक, धनाढ्य दलित आईएएस के बच्चे टॉप इंस्टीटूटेस में आसानी से हैं, तब तक सरकारी नौकरी उनकी आसानी से है, तब तक प्रमोशन फटाफट है. दलित से दलित-इलीट हटाओ। सारा माल तो ये इलीट दलित मार जाते हैं.. रोहित तो मेरिट कोटा से फेलोशिप कर रहा था. क्या सिर्फ राजनीती वाले ही दलित की बात करेंगे, चाहे राजनीतिक कारण से हो? कहाँ गए वे लाखों दलित आईएएस और अन्य सरकारी बाबू? उनमें से कोई रोहित के लिए क्यों संवेदना दिखलाने के लिए हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के बाहर कैंडल मार्च ही निकालता? रिजर्वेशन ने स्वार्थी बनाये हैं, इलीट जो सिर्फ अपना हित साधना जानते हैं. जब आज भी १५%  नंबर पर आईआईटी की सीट मिलता है तो क्यों नहीं उन दलित आईएएस सेक्रेटरी से सरकार यह पूछती, कब देश का , कब अपने दलित  बंधुओ का सोचोगे, कुछ करोगे? आंबेडकर के बाद कांशी राम और बाकी सब राम-राम. 

1 comment:

  1. It worked..see Dalit IAS and IPS officers supporting the cause and strengthening the voice..Times of India article, 5th Feb 2016.

    http://epaperbeta.timesofindia.com/Article.aspx?eid=31806&articlexml=Rohith-effect-A-Dalit-uprising-on-WhatsApp-05022016015013

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