Sunday, October 23, 2016

कहते हैं आईटी में सारे पाप धुल जाते हैं.

सन २००९, स्थान बंगलुरु , मैं, SIBM बंगलुरु में MBA के एडमिशन की GD&PI conduct कर रहा था.  मैंने पाया  के लिए लोग मुख्यतः TCS , Infosys जैसे  आईटी सर्विसेज कंपनी के Engineers, टीम-लीडर्स थे. सब ने MBA करने के पीछे एक सी ही बात कही; करियर ग्रो नहीं कर रहा, सैलरी नहीं बढ़ रही, टीम लीडर/manager बायस्ड हैं, आन -साइट, opportunity काफी कम हैं, और अगर है तो फिर,  suckers इस जात वाले के लिए रिजर्व्ड हैं. , . ...... तो साहब, MBA  एक "संकट मोचक" है जो सांसारिक दुष्चक्रों से छुटकारा दिलाने वाला राम बाण है, ऐसा समझ लीजिये. . आईटी वाले किसी ने भी कोई दिलचस्प बात नहीं की.  ,प्रोजेक्ट मेनेजर, onsite ट्रेवल, per diem, late night, की बात की, Business किसी ने नहीं. 

(कहते हैं आईटी में सारे पाप धुल जाते हैं. आईटी में कोई भी गधा पहलवान हो सकता है. अंधे, लंगड़े, हकले, सब चलेंगे, J node, JavaScript, AngularJS, jQuery, Node.js या  Ruby on Rails आता हैं,  बन गए साहब UI /UX स्पेशलिस्ट! एप्लीकेशन ससोफ्ट्वरे कोई भी सीख लेता है, फिर कोई 'लाला' कंपनी में गधा-खच्चर मजूरी के कुछ साल और फिर डेस्पेरेट MNC में सस्ते में बहाली, अब तो जी आपको वीज़ा मिल गया, अब सारे MNC , स्टार्ट -अप  आपकी आरती उतारने को तैयार हैं.  तभी तो कहते हैं, आईटी में सारे पाप धुल जाते हैं)

आगे  ,बढ़ते हैं,
अगला कैंडिडेट ,एक इंजीनियर आया, संकुचित सा , मैंने पूछा , क्या आप भी IT इंजीनियर हैं? बोला, सर, मैं IT में नहीं हूँ. पुणे में, ट्रेक्टर/एग्रीकल्चर/फार्म इक्विपमेंट कंपनी  में काम करता हूँ, सेल्स सपोर्ट देखता हूँ, अफ़्रीकी देशों के लिए.
मैंने अफ्रीका में बिज़नेस करने के कुछ challenges के बारे में पूछा  और जवाब ऐसे की मैं दंग रह गया. जैसे कोई सीनियर बिज़नेस VP बोल  हो. चीनी कंपनियों से pricing मुकाबला,  सर्विस network की समस्या, लोकल qualified engineers की कमी और bank और लोकल गवर्नमेंट बॉडीज की सुस्ती. न सिर्फ समस्या, बल्कि उसने बड़े तार्किक सन्दर्भ देते हुए बताया कि कंपनी की अब क्या नीति है अफ़्रीकी मार्किट के लिए और उसके हिसाब से  कितना वक़्त लग सकता है, इस चीनी ताक़त को रोकने में या फिर खेल बदलने या पलटने में, अन्य समस्याओं को हल करने में, इत्यादि।     मैंने  इस लड़के को सेलेक्ट कर लिया.

मैं इस कहानी के ज़रिये आपके यह बतलाना चाहता हूँ कि IT सर्विसेज में काम किये /करते हुए ज्यादातर engineers कूप-मंडुक होते हैं. फिर XAT ,CAT , GMAT और पहुँच गए ISB और IIM या XLRI . संस्थान में, १ या २ साल का किताबी ज्ञान, ज्यादातर टाइम असाइनमेंट्स और प्रोजेक्ट्स की कॉपी&पेस्ट में व्यतीत. बचे कुछ टाइम, प्लेसमेंट्स की सर्कस, ...बन गए जनाब सुपरमैन! 










चर्चा में है कि  ६६ साल पुराना संस्थान XLRI एक अभिजात्य वर्ग बन सा गया है. असलियत में काफी gaps हैं, जो alarming हैं. रैंकिंग में नंबर १ इन ह्यूमन रिसोर्सेज self -proclaimed title सा जान पड़ता है. मेरा XLRI के काफी सीनियर और जूनियर कैंडिडेट्स के इंटरव्यू का अनुभव भी यही स्थापित करता है की, यह रंगा सियार ही है. काफी कम ही लोग हैं जो  प्रतिभावान हैं. ६६ साल की विरासत कब तक चल पाती है, देखना होगा.

 कहावत है; 'नामी बनिया का झांट भी बिकता है.'


XAT एंट्रेंस टेस्ट की फॉर्म भरने ही तारीख extend हुई २०१६ के लिए. यह भी एक सन्देश है की काफी काम लोग अप्लाई कर रहे है अब XLRI  के लिए.

मैंने सोचा था, सरकारी अफसर बेईमान, घूसखोर होता है, फिर प्राइवेट कंपनी में काम किया तो मालूम पड़ा यहां तो सबसे बड़े चोर और चरित्रहीन लोग भरे पड़े हैं. यहां तो न विजिलेंस का, नहीं CBI का, नहीं, पॉलिटिशियन का या मीडिया का डर , लूट मचाओ, गिरे हरकत करते रहो. राज्य सरकार के नौकरी में जात-पात था, भाई -भतीजावाद था, प्राइवेट में बंगाली वाद है, मलयाली वाद है, तमिलवाद है , इत्यादि. फिर MBA कॉलेज में देखा, वहाँ भी बंगाली वाद है, मलयाली वाद है, इत्यादि . XLRI जमशेदपुर की वेबसाइट पर आप वाद की कुछ झलक पा सकते हैं. मल्लू चेयरपर्सन है, मल्लू प्रोफेसर हो जाता है, Alumni affairs का हेड हो जाता है. इंस्टीटूशन का चेयरपर्सन भी मल्लू है, क्रिस्चियन है , वैसे तो इंस्टीटूशन ही Jesuit है. Alumni affairs का हेड का प्रोफाइल लिंकेडीन पर और XLRI के वेबसाइट पर देख लीजिये, आप समझ जाएंगे.
youtube पर XLRI के ऑफिसियल videos हैं, पर कमेंट्स डिसेबल्ड हैं. किस बात का fear  है? क्यों इतना intolerance ?
आप ऐसी हरकत तभी करते हैं जब आप को एक्सपोसे होने का fear होता है या आप truth से डरते हैं..
आप तय कर लीजिये.
दोनों वीडियोस देख कर मुझे एक बेहद average Institute की छवि सामने आई. Alumni meet  का video किसी शादी का वीडियो बनाने वाले नें बना दिया है. म्यूजिक वैसा ही है, लग रहा है, शादी का भोज है..
दुसरे वीडियो में, प्रोफेसर सभी झारखण्ड मेड लग रहे हैं. नॉन-इन्स्पिरिंग. सामने लिखे स्क्रिप्ट देख कर पढ़ रहे हैं. Unhygienic कैंटीन, poorly scripted स्टूडेंट टॉक्स,

बस प्लेसमेंट ही बचा रहा है इनको पर ज्यादा दिन चलने वाला नहीं लगता है सब-कुछ तभी तो मूंगफली की तरह XLRI अब certificate course बेच रहा है.

Sunday, October 2, 2016

राम की शक्ति पूजा!-LEADERSHIP LESSONS


सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ आधुनिक हिन्दी काव्य के प्रमुख स्तम्भ हैं। राम की शक्ति पूजा उनकी प्रमुख काव्य कृति है। निराला ने राम की शक्ति पूजा में पौराणिक कथानक लिखा है, परन्तु उसके माध्यम से अपने समकालीन समाज की संघर्ष की कहानी कही है। राम की शक्ति पूजा में एक ऐसे प्रसंग को अंकित किया गया है, जिसमें राम को अवतार न मानकर एक वीर पुरुष के रूप में देखा गया है,

राम  विजय पाने में तब तक समर्थ नहीं होते जब तक वे शक्ति की आराधना नहीं करते हैं।
"धिक् जीवन को जो पाता ही आया है विरोध,
धिक् साधन जिसके लिए सदा ही किया शोध!"
तप के अंतिम चरण में विघ्न, असमर्थ कर देने वाले विघ्न. मन को उद्विग्न कर देने वाले विघ्न. षड़यंत्र , महा षड़यंत्र. परंतु राम को इसकी आदत थी, विरोध पाने की और उसके परे जाने की. शायद इसी कारण उन्हें "अवतार " कहते हैं. अवतार, अर्थात, वह, जिसने मानव जीवन के स्तर को cross कर लिया है. राम सोल्यूसन आर्किटेक्ट थे. पर सिर्फ सोल्यूसन आर्किटेक्ट साधन के बगैर कुछ भी नहीं कर सकता. साधन शक्ति के पास है. विजय उसकी है जिसके साथ शक्ति है. 


जानकी! हाय उद्धार प्रिया का हो न सका,
वह एक और मन रहा राम का जो न थका।
जो नहीं जानता दैन्य, नहीं जानता विनय,


राम एक कमिटेड लीडर भी थे, जो नहीं जानता दैन्य, नहीं जानता विनय! वह अपने सामर्थ्य से विजय पाना चाहता है. विजय उसका कर्मा है. वही नियति है, वही उद्देश्य है, ऐस अ लीडर. लीडर विथ अ पर्पस


कर गया भेद वह मायावरण प्राप्त कर जय।

राम समर्थ थे, दृढ प्रतिज्ञ थे, युक्तिपरक थे परंतु, युद्ध सिर्फ सामर्थ्य से नहीं विजय हो सकती. विजय के लिए चाहिए भेद , भेद को भेदने की युक्ति. काया वह तंत्र है? शिव की साधना तंत्र है. तंत्र अदृश्य, अकल्पित शक्तियों को भेदती है. उन्हें नत मस्तक कराती है. उनपर विजय पाती है. 

बुद्धि के दुर्ग पहुँचा विद्युतगति हतचेतन
राम में जगी स्मृति हुए सजग पा भाव प्रमन।
"यह है उपाय", 

उपाय , सबसे बड़ा यन्त्र, सबसे बड़ा तंत्र. द हाइएस्ट स्टेक ! यह वही बलि है, जिसकी वेदी वैदिक काल से निर्मित है. हर स्तिथि का उपाय है. देवी की शक्ति तंत्र है. 

"साधु, साधु, साधक धीर, धर्म-धन धन्य राम!"
कह, लिया भगवती ने राघव का हस्त थाम।
देखा राम ने, सामने श्री दुर्गा, भास्वर
वामपद असुर स्कन्ध पर, रहा दक्षिण हरि पर।
ज्योतिर्मय रूप, हस्त दश विविध अस्त्र सज्जित,
मन्द स्मित मुख, लख हुई विश्व की श्री लज्जित।
हैं दक्षिण में लक्ष्मी, सरस्वती वाम भाग,
दक्षिण गणेश, कार्तिक बायें रणरंग राग,
मस्तक पर शंकर! पदपद्मों पर श्रद्धाभर
श्री राघव हुए प्रणत मन्द स्वरवन्दन कर।

शक्ति का हस्तान्तरण! डी डिवाइन इंटरवेंशन! 

"होगी जय, होगी जय, हे पुरूषोत्तम नवीन।"
कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन।

शक्ति अंदर स्थापित होती है, विजय सुनिश्चित है. 

- सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'
की  कृति!

Saturday, September 17, 2016

क्या कॉर्पोरेट हायरिंग में भी कास्टिंग काउच है? (Is there a Casting Couch in corporate hiring too?)

आप इसे पहचानते हैं, सही कहा आपने,  हार्वे विंस्टिन, मशहूर हॉलीवुड फ़िल्म निर्माता...कास्टिंग काउच से विख्यात हुए.. किस्से हज़ारों.. कारनामें बड़े बड़े.. 
इस विषय पर कोई नहीं बोलता....गन्दा है पर धंधा... 
 मेरा ह्यूमन रिसोर्सेज (एच आर) फंक्शन में काम करने का अनुभव है, जब मैं मैनेजमेंट की पढ़ाई सिम्बी में कर रहा था, मेरी क्लास में कुछ ६० लोग थे. दो-चार विदेशी (थर्ड वर्ल्ड कंट्री के लोग, जिनके लिए इंडिया का सिम्बी जैसा एवरेज मैनेजमेंट का शॉप भी कैंब्रिज है). लगभग ४० लड़कियां, बाकी लड़के. कुछ ५ या ६ बैक डोर एंट्री वाले भी थे. एक पटना से भी था, जो बाद में जूनियर बैच में भेज दिया गया, क्योंकि पुणे यूनिवर्सिटी ने मैनेजमेंट कोटा में उसे जगह नहीं दिया. आज साहब KPMG में ह्यूमन रिसोर्सेज के डायरेक्टर हैं. बैक डोर एंट्री वाले, TCS America में रिसोर्स मैनेजमेंट यानि पोल्ट्री फार्मिंग कर रहे हैं. एक बैक डोर वाला, कई देश में चेंज मैनेजमेंट कर आया. कॉर्पोरेट वर्ल्ड का नंगा सच आपको मैनेजमेंट संस्थानों में ही दिख जाएगा। मतलबी, षड्यंत्रकारी , चौकड़ी बाज़. वहाँ  मिलेंगे. गंदे-घिनौने चेहरे, प्लेसमेंट का जुगाड़. पढ़ाई कौन करता है. सबसे बड़ा करप्शन का अड्डा है स्टूडेंट रन प्लेसमेंट ऑफिस. बंगाली वाद , मल्लू वाद, जहाँपनाह वाद , सब चलता है. इंतज़ाम हो जाएगा. दारु, $डीबाज़ी, ड्रग्स , सब मिलता है, स्पॉन्सर्ड हनीमून होती है गोवा में. पता नहीं और क्या-क्या.


अब आते हैं काम की दुनिया में. पहली HR रोल वाली कंपनी. एक आईटी सर्विसेज एंड हार्डवेयर और एंटरप्राइज सोल्यूसन कंपनी. स्थान बैंगलोर, इंडिया का सिलिकॉन वैली. कैंडिडेट इंटरव्यू के लिए आता है; बायोडाटा पर कंसलटेंट कंपनी का लोगो...कुछ लोबो कंसल्टिंग लिखा है. दूसरा कैंडिडेट, फिर लोबो, तीसरा भी लोबो. लोबो का कैंडिडेट सेलेक्ट होता है. कुछ दिनों बाद, एक हॉट सी मिडिल एज्ड महिला कंसलटेंट GM को मिलने आती है. काना-फूसि हो रही है स्टाफ में, कुटिल मुस्कान...
पता चलता है, यह मैडम GM साहब की प्राइवेट माल हैं. लोबो इनकी कंसल्टिंग का नाम है. GM साहब इनका इनवॉइस  फ़टाफ़ट क्लियर करा देते हैं....

कुछ-कुछ समझ में आ रहा है. कुछ दिनों बाद एकाउंट्स मेनेजर से बनायी दोस्ती से और भी सच सामने आता है.
इस बार मालूम पड़ता है, कि लोबो की हॉट आंटी GM साहब के साथ, ऑफिस के बुकिंग पर कोचीन ऑफिसियल टूर पर जाती हैं. दर असल यह एक हनीमून ट्रिप है.

फिर मैं एक अमेरिकन MNC कंपनी ज्वाइन करता हूँ. कंपनी का HR हेड ज्वाइन करता है. साथ में उसकी पिछली कंपनी की HR बिज़नस पार्टनर ज्वाइन करती है. लड़की चेन्नई से बैंगलोर रिलोकेट हो कर आती है. बॉस उसे फ्लैट दिलाता है. ऑफिस की कैब में उसे पिक उप और ड्राप देता है. ड्राइवर्स बताते हैं , HR हेड कैब में भी रोमांस करते हैं, फ्लैट पर भी देर तक मैडम के साथ रुकते हैं. सारी कंपनी इन  रंरेलियों का मजा लेती है. छम्मक छल्लो बदनामी कराते-कराते एक साल में वापस चेन्नई भाग लेती हैं. HR हेड अपनी गोपी गाथा चालू रखता है. अब वह HR की इंटरव्यू अपने सीक्रेट फ्लैट पर करता है. कौन कहता है HR में कास्टिंग काउच नहीं है. अब तो वह शादी-शुदा औरतों को भी नहीं छोड़ता . १० साल रंगरेलिया मना लेने के बाद यह एवरेज एडुकेटेड HR हेड फाइनली कंपनी से निकाला जाता है. जय हो MNC , जय हो लिस्टेड कंपनी. जब कुँए में ही भांग पड़ी हो तो रंगरेलियां हर तरफ चालू रहती हैं. ट्रेनिंग के नाम पर होटल वेन्यू बुक होता है, साथ में एक रूम भी बुक होता है कॉम्प्लिमेंटरी. रंगरेलियां चालू हैं.

कहानी चालू रहेगी..बाकी अगले अंक में... 

Friday, August 26, 2016

कहते हैं, स्वर्ग भी मरने के बाद ही मिलता है!

२६ अगस्त के टाइम्स ऑफ़ इंडिया में न्यूज़ है, "३१ कंपनियों को IITs ने बैन कर दिया है. उन्होंने प्लेसमेंट की मर्यादा की माँ चो* दी है. ऑफर दे कर जोइनिंग नहीं दिया. फ्लिपकार्ट, ग्रोफर्स, जोमाटो, और ऐसे अनेकों नाम हैं. स्टार्ट उप फ़ैल हो रहे हैं. स्टार्ट उप फ़ैल होते हैं. लेकिन स्टार्ट उप तब तक फ़ैल नहीं होते जब तक वो, फिर से नयी जंग के लिए तैयार हैं हो जाते. रेलिअनेक ज्वेल फ़ैल होगया, टाटा, बिरला, के कई वेंचर फ़ैल हो गए. मर्ज हो गए, बिक गए, कबाड़ में गया. एयरलाइन कम्पनीज बंद हो गयी, बंद होना फेलियर नहीं है, हार जाना , हार मान लेना फेलियर है. सहादत मांगती है स्टार्ट-अप .

किसी नें सच ही कहा है, स्टार्ट उप में, काफी समय, बिज़नस प्लान ही मिसिंग होता है. फंडिंग है, आईडिया है, मार्केटिंग है, स्ट्रेटेजी है. बिज़नस प्लान बना नहीं है. 
सारी बात नीयत की है. अगर आप की नीयत अच्छी  है तो, बरक्कत होगी. इंशाअल्लाह! बात अर्रोगंस से शुरू होती है, अर्रोगंस से ख़त्म हो जाती है. कॉपी-पेस्ट को कोई स्टार्ट उप नहीं ,कहता! कॉपी -पेस्ट बुरा नहीं है, पर मॉडल तो चेक कर लो, जब क़यामत निश्चित है उस मॉडल में, तो फिर सुसाइड क्यों करते हो.

सिर्फ VC फंडिंग कोई गारंटी नहीं है , बिज़नेस मॉडल की सक्सेस का. सफलता मिलती है, हौसले से. यह "साँप -सीढ़ी का खेल है. यहाँ, हज़ारों साँप  आपके डस लेने को तैयार हैं. स्टील्थ-मोड , चकमा देने की क़ाबिलियत , फ़ायदे के रिश्ते , भाड़े के रिश्ते, काफी कुछ करना पड़ता है, स्टार्ट उप की सफलता के लिए. मछली की ऑंख पर नज़र रखनी है हमेशा. आँखें खोलकर सोईये , कान खड़े हों , कुत्ते की तरह, हर आहट सुनिये. "

ग़ालिबन , मोहतरमा रानी मुख़र्जी  ने  "Coffee with Karan" के एपिसोड में , कहा था.."आई ऍम  ए bitch !, आई डू नॉट रन विथ rats ! (I am a bitch, I do not run with rats). सवाल था, "क्या आप बॉलीवुड की नंबर  १ , हीरोइन हैं? ..........सलाम है मैडम को ! तो फिर  निश्चय कर लीजिये, आप चूहा बनेगे या फिर bitch !

यह इश्क़ नहीं आसां , बस इतना समझ लीजे, एक आग का दरिया है और डूब के जाना है! स्टार्ट अप में घर फूंक मस्ती मस्ती चाहिए! कबीर ने कहा है, "कबीरा खड़ा बज़ार में, लिए लुकाठी हाथ, जो घर फूंके आपन, चले हमारे साथ!
पर दुर्भाग्य यह है, बच्चों को CEO बनना है, बहुत जल्दी में. निम्बू-शरबत की दूकान नहीं है स्टार्ट उप. आपको सिर्फ फंडिंग लाना है. कॅश फूंक देना है, वैल्यूएशन बढ़ा लेना है. गेम ओवर. disruption की माँ की, डेंट इन यूनिवर्स की माँ की.... आँख !

अगर आप ऐसा कर रहे हैं, तो फिर सफलता नहीं मिलेगी.

कहते हैं, स्वर्ग भी मरने के बाद ही मिलता है! 

Thursday, July 28, 2016

अब कोई HR वाला न पूछेगा, ६-६ महीने में जॉब क्यों छोड़ते हो?

दोस्त -दोस्त ना रहा! सबको CHRO बनना है! जय  Cipla , जय  Piramal !
 तू जहाँ जहां चलेगा, मेरा साया साथ होगा! कभी कभी ऊँगली पकड़ कर चलने वाला भी ठेंगा दिखा कर आगे निकल जाता है. जब आपका सगा ही दगा दे जाए तो समझ लीजिये, आपके करियर की शाम आ चुकी है.

अब कोई HR वाला न पूछेगा, ६-६ महीने में जॉब क्यों छोड़ते हो? CHRO बनने की चूहा दौड़!

चीफ टैलेंट ऑफिसर एंड हेड कॉर्पोरेट HR-देश की तीसरी बड़ी फार्मा कंपनी, जॉब स्टे ८ महीने. उसके पहले, चीफ टैलेंट अफसर, देश की सबसे बड़ी प्राइवेट diversified कॉर्पोरेट  - ,जॉब स्टे- १८ महीने. इतने उतावले क्यों हो भाई, टैलेंट मैनेज कर रहे हो या धनिया उगा रहे हो? इतने काम समय में तो आप अपना, स्वयं  का टैलेंट भी नहीं चेक कर पाते नयी कंपनी में.

ये कॉर्पोरेट की हायरिंग माफिया के हाथ में चली गयी है लगता है. कुछ लोग इसका सूत्र ढूंढ चुके हैं. हैडहंटर अपना गेम खेल रहा है. हायरिंग ही जब हथकंडा हो तो टैलेंट तो तिल्हनड्डे में जाएगा ही. तनु वेड्स मनु का यह विडियो देख लीजिये! तिल्हनड्डे का मतलब साफ़ हो जायेगा.

क्या वजह है कि CHRO लोग अपने बावर्ची, नौकर, ड्राइवर की तरह चीफ टैलेंट अफसर भी साथ साथ लिए फिरते हैं, एक कंपनी से दूसरी कंपनी. Coteri से आप सबसे बड़ी दीवार खींच देते है existing टैलेंट और आपके ससुराली टैलेंट के बीच में. बड़े साहब का बावर्चीखाना! मुफ्ते-माल-दिले बेरहम!








Wednesday, July 20, 2016

HR की ज़िन्दगी जन्नत है. हनीमून की जगह

शिद्दत वाला HR ! मुझे याद है, २००१; जब मैं सिम्बायोसिस इंस्टिट्यूट ऑफ़ बिज़नेस मैनेजमेंट पुणे की MPM/MBA entrance test की इंटरव्यू के लिए गया था. GD स्टार्ट हुआ, मैं और एक सरदारजी, अंग्रेजी LOUDLY बक रहे थे. हम अग्रेसिव थे, आप बत्तमीज़ कह लीजिये। गलती हमारी नहीं हैं, हमें बताया गया था, ज्यादा बोलने को, औरों से मौका छीनने को, और ऐसे ही कुछ असंवैधानिक, असामाजिक प्रलाप. ग्रुप में काफी सज्जन और सलीकेदार , पढ़े-लिखे प्रतियोगी थे. हम दोनो ने उन्हें लगभग बोलने नहीं दिया. सीधे शब्दों में; हम ने उन्हें सुनने की बिलकुल कोशिश नहीं की, समझने की तो बात ही दूर की है. नतीजा? सरदार जी और मैं GD में सेलेक्ट हो गए, सभ्यजन बाहर. सरदारजी आज CHRO हैं, एक नामी बीपीओ में फिलिपींन्स में. ठीक हैं, बीपीओ और वह भी फिलीपींस में, आप कहेंगे , अंधों में कांना राजा. ढेले पर का भात! दूसरी कहावत कुछ रूढ़ देशी है. आप रहने दीजिये! 
गार्टनर वाले कहते हैं, फार्च्यून २५० के CEOs  मानते हैं की उनके ५५% CHROs को बिज़नेस रणनीति नहीं समझ आती. उनके CFOs तो सिर्फ ३०% CHROs को इस काम के क़ाबिल समझते हैं. ९०% महिलाओं की चॉइस HR है.at - होम सा लगता है. बाकी जो मर्द HR में आये, उन्हें लगा, उन्हें सीधे कोई द्रोणाचार्य मान ले, सरकार द्रोणाचार्य पुरस्कार दे-दे ! भाई, पहले खेल तो समझ लो, ASIAD  में ब्रोंज तो लेलो, खेल रत्न पुरष्कार की कामना करो, निष्ठां से प्रयास करो. तुम तो यार अपने को मुगलों के वंशज समझ रहे हो. एक दिन में, बिना बिज़नेस को समझे, तुम चाणक्य बन जाना चाहते हो. 
गार्टनर रिपॉर्ट कहती है; सिर्फ २०% CHROs के पास एचआर के अलावा किसी और बिज़नेस फंक्शन का अनुभव है. 
HR वालों को अगर कौटिल्य बनना है, सम्मान पाना है तो सीईओ और सीएफओ की सर्टिफिकेट नहीं चाहिए , उन्हें राज धर्म का पंडित होना पड़ेगा. सीईओ का ग़ुलाम बनना छोड़ो. उसके राजगुरु, सेनापति बनो. 
HR में आज का HR "राजधर्म" नहीं, राजाधर्म निभा रहा है. उसकी सारी निष्ठा, सिर्फ राजा के प्रति है! राज्य धर्म निभाना नौकरी नहीं है. सच्चा राज्य धर्म पालन करने का अर्थ है, राज्य के हित के लिए राजा के भी विरुद्ध खड़ा होना हो तो संकोच न हो. HR इसी काम के लिए बना था, न कि राजा की नौकरी (ग़ुलामी) के लिए. मोटी सैलरी, कमज़ोर कलेजा लेकर HR का झंडा क्या उठाएंगे वे लोग जो EMI , अपने बंगले और फॉरेन वेकेशन का सोच कर नौकर बन गए, सारे समझौते कर लिए. इनका DNA आगे के HR वंसज को न जाए, यही ईश्वर से कामना है.

"बूरे वंश कबीर का उपजे पूत कमाल ! आधा तो कबीरा हुआ, आधा हुआ कमाल !!" HR के बंधुगण , या तो आप कबीर हो जाइए , या फॉर कमाल, जो उनका पुत्र था. आज HR में, तृष्णा है, त्याग नहीं, मोह है, लोभ है, भय है, असुरक्षा है, फिर तो बेटा "तुमसे न हो पायेगा. "


HR के सम्मान में कुछ पध लिखे गया हैं. इन्हे समझने की कोशिश करते हैं. 

HR की ज़िन्दगी जन्नत है. हनीमून की जगह. निरर्थक काम में लगे हैं HR वाले. 


HR वाले जब अति मूर्ख कहे  जाने लगें, आप  समझ लीजिए कुँए में भांग पड़ी है. 


Monday, July 4, 2016

बदनाम बादशाह के हरम की हूरें!


बदनाम बादशाह के हरम की हूरें!
एक फ्रेंच मल्टी नेशनल कंपनी के सीनियर मानव संसाधन मैनेजर ने अपने बायो डेटा में लिखा है-
पहले आपको बता दूँ की मैं क्या करना चाह रहा हूँ. मैं एक षड़यंत्र का शिकार हूँ. षड़यंत्र है- पिछले २ साल से  मानव संसाधन में नौकरी ढूंढ  रहा हूँ, ५०० कंपनियों में अप्लाई कर चूका हूँ पर कोई इंटरव्यू नहीं. मैं SIBM पुणे से MBA  हूँ और पिछले १३ साल में कुछ अच्छी MNC कम्पनीज़ में काम कर चूका हूँ. मुझे लगता है, कोई बड़ी बीमारी लग गयी है जॉब मार्किट को. IIT और IIM वाले भी, कई बार,  मजबूरी में start up कम्पनीज का रुख कर रहे  हैं. नतीजा साफ़ है. MNC companies इंडिया में अपने डिक्लाइन की ओर अग्रसर है. क्या कोई षड़यंत्र है? आइए जाँच शुरू करते हैं-

कई लोगों का मानना है. MNC एवरेज लोगों का अड्डा सा बन गया है. एवरेज और insecure managers  एंड सीनियर managers कमज़ोर और नपुंसक, लोगों को hire कर रहे हैं. इतना ही नहीं, ये इनको संरक्षण भी दे रहे हैं. "बस एक ही उल्लू काफी था, बर्बाद गुलिश्तां करने को! हर शाख पर उल्लू बैठा है ,अंजामें गुलिश्तां क्या होगा!"
सन २००७ ने मेरा सबसे बड़ा भ्रम अमरीकी लोगों के बारे में दूर कर दिया, जब मैं वहाँ HR वालों से मिला! वहाँ भी HR वालों का वही हाल है. Intellectually सबसे कमज़ोर लोग HR में हैं. कोई भ्रम नहीं की उनकी हैसियत एडमिन वालों जैसी रह गयी है.

एक MNC जिसमे मैंने बैंगलोर में  काम किया था, वहाँ के एक पूर्व HR साथी ने अपने बाई डेटा में लिखा है. साहब पहले सर्विस इंजीनियर थे, फिर   HR में आ गए. पिछले १० साल से उसी कंपनी में हैं. सैलरी २.५ लाख से २१ लाख पहुँच गयी है. आज भी शॉप फ्लोर के लिए आईटीआई अपरेंटिस ही hire करते हैं, पर जनाब क्लेम क्या करते हैं देखिये:
 Expertise in handling multifarious HR activities, viz. liaison with the business to transform into a highly profitable organization, Reducing overhead costs, rebuilding the business, institutionalized solid HR framework.

बड़े बड़े शब्दों का पुलिंदा देखिये- "ट्रांसफॉर्म", बिल्डिंग बिज़नेस, हाइली प्रॉफिटेबल आर्गेनाईजेशन, और इंस्टीट्ूशनलिसेद सॉलिड HR फ्रेमवर्क! 
सत्य यह है- इनकी बॉसेस, जो लगभग १ करोड़ की सैलरी लेते हैं, HR में, MSW वाले हैं. Public meeting में बोलने के नाम पर पैंट  गीली हो जाती है, company  में मज़ाक का पर्याय बन गए है. और ये, इनकी औलाद ट्रांसफॉर्म", बिल्डिंग बिज़नेस, हाइली प्रॉफिटेबल आर्गेनाईजेशन, सॉलिड HR फ्रेमवर्क! जैसे काम करने का दावा करती है. 
यह company पिछले साल इंडिया में ९७% loss डिक्लेअर कर चुकी है. इंडिया में लिस्टेड है. 

हाइली करप्ट लोगों का अड्डा है यह कंपनी. ऐसे में ये Business  वाले इम्पोटेंट और incompetent लोग ही hire करेंगे. यह षड़यंत्र है!
करप्ट लोग अपने आस-पास सपोर्ट फंक्शन में, कमज़ोर या characterless और जीरो integrity लोगों को ही भर्ती  करते हैं. बैंगलोर, ऐसी MNCs का सबसे बड़ा अड्डा है. यहां, कहीं, तमिलवाद , कहीं, मल्लू वाद, कहीं, अन्य वाद है. 
हायरिंग प्रोसेस की इंटीग्रिटी समाप्त हो चुकी है. MNC इस स्तर पर पहुँच जाएगा, इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते आप. 
HR में २५ लाख से ऊपर ही सैलरी पाने वालों का डेटा मैंने देखा तो उसमे ९०% लोग जो अच्छी कंपनियों में काम करते हैं, कोई भी मानद MBA  कॉलेज से नहीं आते. सिर्फ ग्रेजुएट भी ३५ से ५० लाख की सैलरी  पर हैं. 

कुछ HR के नाम पर फेक लोगों की सैलरी भी ३५ लाख से ऊपर है. मेरी आवाज़ शायद इस नक्कारखाने में टूटी की आवाज़ की तरह ही हो, पर कहते हैं न, कि "अकेला चना भांड नहीं फोड़ता, पर अगर हसरत से उड़ जाए तो भड़भूजे की आँख जरूर फोड़ देता है!
एक रिसेप्शनिस्ट जो १२ साल पहले HR  में आई इस MNC  में, १२ साल पहले भी HR बिज़नेस पार्टनर थी , आज भी HR बिज़नेस पार्टनर है. नो ,प्रमोशन  नो रोल चेंज, सैलरी ५ लाख से बढ़ कर ३५ लाख हो गयी. 
पढ़िए यह रिसेप्शनिस्ट अपने रोल के बारे में क्या कहती है उनके रिज्यूमे में-
"Influencing and Coaching Business Leaders, Executing and Enabling Organizational Changes, Leadership Development, Mergers and Acquisitions". 

दूसरी HR बिज़नेस पार्टनर, उसी कंपनी की एक HR बिज़नेस पार्टनर थी , उनके incompetency की कथा जग जाहिर है, पर वह HR Director की फेवरेट थीं , कई कारणों से, ४ साल हनीमून ही चला, कोई काम नहीं. फिर मैटरनिटी लीव पर गयी, और दूसरी कंपनी. पिछले ५ सालों में, ५ कम्पनीज में काम कर चुकी है. ४ लाख की सैलरी आज ७ साल में, २७ लाख है, US MNC में हेड HR हैं. 
उनके रिज्यूमे की एक झलक देखिये- 
KEY ACHIEVEMENTS/ ACCOMPLISHMENTS
·         Received accreditation and won “Lunch with CEO” contest for hiring project.
·         Career Progression & Job Rotation:

Employee Engagement SPOC for a unit of R&D and IT base with ----
·         Accredited by management for handling 25 separations of junior and middle level management in --- as part of acquisition process.
·         Work on Group HR project of position profiles of 100 benchmark positions within ---group. Trained on position profiling by Mercer Consulting 
·         Designed and rolled out a 360-degree feedback processes for Leadership team
·         HR Branding: Featured as Top employer in Naukri, participated in Attrition survey, participated in Job Fair, Endorsed Meritrac & Nasscom, etc.
·         Identified as key talent & nominated for Leadership Excellence Acceleration Program.

आप आश्चर्य करेंगे की इनके इंटरव्यू कौन लेता है? शायद इनके बॉसेस इनमें कुछ और ही देखते हैं. हायरिंग प्राइवेट अफेयर बन गयी है. कॉर्पोरेट इंटीग्रिटी समाप्त. 

जब २००६ में मैं इस MNC में R&D डिवीज़न के लिए, एडमिन अस्सिटैंट hire कर रहा था तो एक बिज़नेस VP (US manager ) कॉर्पोरेट ऑफिस से पूछे " what is the value for his services against the money we will paying him"? उसे मैं २ लाख के CTC पर hire कर रहा था. 
विडम्बना देखिये, उस कंपनी में, ऐसे कितने दामाद थे जिनको उनकी औकात से ३ से ४ गुना ज्यादा सैलरी मिल रही थी. इस C-tiye, VP से अब क्या पूछें, कि "दामादों के बारे में भी पूछो ! 
जब कंपनी को  डूबना  होता है तो वहाँ, गिद्ध जमा  हो जाते हैं. 

बदनाम बादशाह के हरम की हूरें! शायद आप इसकी एक झलक तो पा ही चुके होंगे अबतक. यह कहानी आप सब को मालूम है! बैठे ठालों का क्या रोज़गार? लिख दिया बस! 



Thursday, June 9, 2016

Workplace Abuse को कहो, "इसकी माँ की!

कुछ स्टार्ट  उप के फाउंडर्स , managers "fuck" , "fucked "इत्यादि शब्द का इस्तेमाल ऐसे करते  है जैसे इसके बगैर उनकी  उत्पत्ति  पर प्रश्न चिन्ह लग जाएगा.
मैं इनसे पूछना चाहता हूँ कि बगैर वियाग्रा (वीमेन वियाग्रा भी अब उपलब्ध है) के आप ३ मिनट नहीं चल पाते, ८ और ९ इंच आपके लिए सपना है और दिन में ३० बार अपनी टीम, क्लाइंट्स के सामने, ऑफिस बॉय और महिलाओं , बच्चिओं के सामने, अपने से उम्र और अनुभव में काफी ज्यादा लोगिन के सामने आप "fuck " चालीसा के माध्यम से क्या बताना चाहते हैं?
 कि आपकी उत्पत्ति किसी विशेष प्रक्रिया से हुई है या फिर जो कुमार विश्वास कहते हैं प्रेम के बारे में, जब उनके मित्र और कवि सम्पत शरण जी प्रेम करने वालों का उपहास करते हैं. "जिनसे कुछ नहीं हो पाया होता है, वे ही ज्यादा "पुराण" बांचते हैं.

मैंने दोस्तों से सुना है जो स्टार्टअप में काम करते हैं या कर चुके हैं, की उनकी फाउंडर्स मीटिंग में "fuck " शब्द का प्रयोग टीम पर अपनी बोस्सिसिम साबित करने के लिए या फिर अग्रेशन दिखाने के लिए या फिर टीम के अंदर सफलता के लिए एक बलात्कारी प्रवृत्ति भरने के लिए ऐसा करते हैं. ये तो भाई खतरनाक और बेहद शर्मनाक दशा है.

आज मैंने एक सीनियर मैनेजर को उनके टीम मेंबर्स को यह कहते सुना, "यह फाइल क्यों नहीं भेजा , क्या इसपर अंडे दे रहे थे? सबसे शर्मनाक और दुखद बात यह है कि , ऐसे अपशब्द, अश्लील वाक्य सबके सामने किसी को कह दिए जाते हैं. यह मानवता पर सबसे बड़ा आघात है. बेहद असंवेदनशील और बेशर्म , आततायी managers .
इसी कंपनी में महिला फाउंडर fuck पुराण दिन में १० बार से ज्यादा पढ़ती हैं. यह सब शायद उनके घर की परम्परा हो, हमें तो यह ही लगता है कि भारत में आज भी कर्मचारी ग़ुलाम है. बेड़ियां पड़ी हैं उसके पैरों में, ऐसी क्या मज़बूरी है की वह सब कुछ  सह लेता है?

क्या आपके आस-पास भी employee abuse हो रहा है? अगर हाँ तो ठीक से नीचे तक चेक कर लें कहीं आप अपनी असलियत तो नहीं खो बैठे हैं?

abuse को कहो, "इसकी माँ की!

Monday, May 30, 2016

एम्प्लोयी वेलफेयर का सुलतान, flipkart महान.

यह HR वाले करते क्या हैं?
सवाल जायज है. 

यह सवाल उतना ही पुराना ही जितनी की हमारी सभ्यता है. लेकिन आपके मैं यकीन दिलाना चाहता हूँ कि आईआईएम के बच्चों को शूली पर चढाने वाले HR वाले नहीं हैं. यह उनके आका IIT वाले व्यापारी हैं.
अभी flipkart का IIM ऑफर फ्लिप चर्चा में है. शायद १८ ऑफर्स पर  गाज गिर रही है. मुआवज़ा है डेढ़ लाख ६ महीने बाद जब जोइनिंग होगी. इसमें भी चालाकी. आप यह तो मानेंगे , HR वाले इतने चालाक नहीं हैं. यह भी बिज़नेस आका का ही फरमान है. HR सिर्फ अंग्रेजी बोलेगा और बाकी उन्हें IIT वाले बॉसेस बताते रहेंगे कि क्या और कितना बोलना है.
अब आपके पास मिलियन डॉलर वाले HR वाले हैं. HR में एक लम्बी फौज है. क्या आपको लगता है HR ने यहां कोई निर्णय लिया होगा? नहीं. उन्हें यह बता दिया गया होगा , "जोइनिंग डिले करना है, IIM को ईमेल लिख दो. बिज़नेस रीज़न बता दो. यह आदेश तो एडमिन असिस्टेंट को भी दिया जा सकता था. पर HR वाले होते किस लिए हैं. HR वालों को यह सब हैंडल करना बड़ा की सनसनी ख़ेज़ लगता है. ऐसे समय में, स्वनाम धन्य HR वाले अपने आप को बड़े काम की चीज़ समझने लगते हैं. पर जैसे की उन्हें मालूम पड़ता है, आका लोग डायरेक्ट आईआईएम, इत्यादि से बात करने लगे हैं तो HR फ़ौरन ही स्टैंडबाई मोड में आ जाता है..सस्ते टीवी प्रोग्राम के एंकर की तरह यह ऐसे समय में शाहंशाह की तरह महसूस करने लगते हैं पर क्षण भर में फिर भीगी बिल्ली! क्या आपको लगता है कि  डेढ़ लाख का मुआवज़ा वह भी डैफर्ड, HR ने तय किया है. यह सभी  ऑइ - 
वाश (eyewash) हैं. कुछ महीने पहले ही फ्लिपकार्ट के HR आका , जब आप मेटरनिटी, पैटरनिटी पालिसी की बड़ी-बड़ी डींग हांक गए. अभी तो यह फुल्ली पेड ६ महीने की मैटरनिटी लीव दे रहे थे, डेडिकेटेड पार्किंग, एडॉप्शन पालिसी, etc . फिर पता नहीं के-क्या. इतनी जल्दी हवा कैसे निकल जाती है? एम्प्लोयी वेलफेयर का सुलतान, flipkart महान. HR वाले भी अपनी महानता की रोटी सेक गए. आज सबसे इलीट समझे जाने वाले आईआईएम-अहमदाबाद को भी "टक्के-सेेर " ट्रीट कर दिया . यह कैसी मज़बूरी आ गयी सुलतान को ? 

अब इसमें HR कहाँ से आता है? उसको क्या पता कब बिज़नेस क्या करता है, क्या सोचता है? 

फिर मत पूछिएगा, HR करता क्या है? HR तो नेताजी की पत्नी की तरह है, बनारसी साडी पहन लेंगे जब आपकी चांदी रहेगी. पांचों ऊँगली घी में होंगे और आप सरकार होंगे. खद्दर भी चलेगा जब सरकार दिवालिया हो जायेगी. HR अगर कहीं आपको बिकिनी  में या निम्न वस्त्र में दीखता है तो यह भी सरकार की ही मनमानी है. 

भाई, HR कुछ नहीं करता ! मिल गया जवाब आपको? किसी कंपनी का हेल्थ चेक या कल्चर टेस्ट करना हो तो बेशक़ आपको सबसे अच्छी रिजल्ट HR को टेस्ट कर के मिल जायेगी. 
अब आप पूछेंगे, ऐसा कैसे है? क्या HR आर्गेनाईजेशन का आइना है? क्या HR आर्गेनाईजेशन को बनाता है या फिर HR आर्गेनाईजेशन की एक तश्वीर है जो उस परिवेश में उपजती है, पलती है, अपनी एक स्वरुप और प्रकृति को बना पाती है.? मैनिफेस्टेशन, DNA , पता नहीं क्या-क्या. बड़ा प्रश्न है. 
जो डोमिनेट कर गया, वह जीत गया. आप निर्णय कर लें.  शुभ रात्रि!

Wednesday, May 25, 2016

सावधान: आगे स्टार्ट अप है, कहीं आप फंस न जाएँ .

सावधान इंडिया !
फ्लिपकार्ट ने अब IIM  और IIT वालों के जोइनिंग डेट्स निरस्त कर दिए हैं. ६ महीने के लिए. अनिश्चितता का दौर स्टार्ट उप में चल रहा है. हम तो डूबेंगे सनम, तुमको भी ले डूबेंगे !
तश्वीर साफ़ हो जाएगी अगर आप निचे की ग्राफ देखेंगे.
आप पूछेंगे "कहाँ गए ये लोग?" यह तो कहानी है स्टार्ट अप की रंगीन और साहसी दुनिया की. व्यवसायी बनने  की. (Disrupt ) करने की. यूनिवर्स में डेंट लगाने की. इनके पास मौका है और इनमे काबिलियत भी है. IIM  और IIT और स्मार्ट लोग कर सकते हैं सब जो वो करना चाहते हैं पर जगह है सिलिकॉन वैली , गुरुग्राम, और बैंगलोर नहीं.
स्टार्ट अप डिसरप्टिव छोड़ कर अब वैल्यूएशन के गेम में फंस गया है. ये इंजीनियर स्टार्ट अप में भी नौकरी ही कर रहे हैं. बिज़नेस की कमान तो फाउंडर्स के हाथ में है और वे ग्रेट प्रोडक्ट की जिम्मेवारी टीम के ऊपर डाल कर CEO बन जाते हैं. सेलिब्रिटी स्टेटस मिल जाता है और बिज़नेस  पीछे छूट जाता है. एम्प्लोयी disillusioned हो जाता है. वह एम्प्लोयी की तरह फिर दूसरी नौकरी ढूंढ़ता है. पुराने स्ट्रक्चर्ड MNC की याद आ जाती है.  

Saturday, May 21, 2016

HR डिस्ट्रेस से गुज़र रहा है. अनन्त पीड़ा से गुज़र रहा है

HR को चाहिए आज़ादी.
वक़्त है आज़ादी का. मैं कन्हैया का फैन हूँ. उनके नारों का फैन हूँ. मैं भी JNU का छात्र रहा हूँ.
HR डिस्ट्रेस/यंत्रणा से गुज़र रहा है. अनन्त पीड़ा से गुज़र रहा है. कृष्ण की भूमिका से अब दास की , याचक की स्तिथि में आ गया है. पोस्टर बॉय /गर्ल अब पोस्टर के पीछे छुप गया  है. इसे चाहिए आज़ादी।  HR क्या अब सिर्फ "हारे को हरी नाम"! रह गया है? क्या सबसे ज्यादा insecure  एंड politicking  फंक्शन है यह? क्या यह यह इन्फेक्शन का श्रोत है? vulnerable भी और हेल्पलेस एंड उपेक्षित भी? इसे चाहिए आज़ादी! इसे चाहिए एक कृष्णा!

भूमिका-
HR का सो कॉल्ड लीडरशिप? अपनी पहचान नहीं बन सका.
LinkedIn और twitter पर अपनी पहचान ढूंढ रहा है. कुछ तो बस facebook तक ही अपनी इंटेलेक्चुअल काबिलियत सीमित कर लेते हैं. वेलफेयर स्टेट का सबसे बड़ा जीता -जागता उदहारण है HR . एक छद्म कोशिश, बिज़नेस enabler , catalyst , चेंज ऐजेंट , पता नहीं, कहाँ कहाँ से ये शब्द इन सेल्फ-proclaimed लोग ले कर आये.
Distress जीन्स के बाद अब समय चल रहा है डिस्ट्रेस हायरिंग का. यहां आपके रिज्यूमे का in-human, non nonsensical टार्चर किया जाता है. आपके एक्सपीरियंस एंड कैपेबिलिटी जो आप प्रूव कर चुके होते हो उसकी खिल्ली उड़ाई जाती है और, कोई नक्कारखाने की टूटी की तरह का फटा हुआ HR वाला आपकी बोली लगाता है.
अब ज़माना आ गया है, कौओं का. यह हंस को चलना सिखा रहे हैं.
२०० से ज्यादा लोग जाबलेस मिड एंड सीनियर मैनेजमेंट के बैंगलोर में जॉब ढूंढ रहे है क्योंकि ये अभी कुछ ६ से ८ महीनों पहले काम से निकाले गए हैं. ये ज्यादातर लोग प्रीमियर एजुकेशन बैकग्राउंड से हैं. HEADHUNTER  कंसल्टिंग के कृष् ने अभी एक आर्टिकल में उनके  १०० से ज्यादा बेरोज़गार और "लुकिंग फॉर नई ओप्पोर्तुनिटी" वाले  लोगों का डेटा बेस बता रहे थे. यह सिर्फ बैंगलोर का डेटा है और सायद सिर्फ HEADHUNTER का. सभी मेजर रिक्रूटिंग फर्म्स को जोड़ लें तो शायद दृश्य और भयावह लगे.

अगर यह सत्य है तो ऐसा क्यों हुआ और क्या इसमें कोई नेचुरल जस्टिस सम्मिलित है?

सिर्फ HR जिम्मेदार है अपनी स्तिथि के लिए. गुलाम बन गया. अड्डा बन गया नकारों का, फेल्ड लोगों का, वर्किंग हाउस वाइफ मं-सेट के लोगों का.. लोगों ने गवर्नर्स के जैसे अपने एजेंट बैठा दिए HR में. षड़यंत्र का ऐड बन गया यह जो कभी एम्प्लोयी वेलफेयर एंड वेल बीइंग का झंडाबरदार था. एक मर्यादा थी इसमें. एक मज़बूत इरादे और व्यक्तित्व के लोग आते थे. अब समय के साथ इसमें कम्फर्ट गर्ल्स के जैसे लोग भरते गए. घिन आती अब इससे.

वजह जो मुझे लगती है वह यह है कि समय के साथ, टेक्नोलॉजी एंड अवेयरनेस ने कई जॉब्स की अहमियत कम कर दी है. कई जॉब अब उतने महत्वपूर्ण नहीं लगते क्योंकि जनता उन जॉब स्किल्स और एक्सपीरियंस को अब जरूरी नहीं समझती. HR में यह काफी हुआ है, क्योंकि HR समय के साथ स्किल्स बेस्ड रिक्रूटिंग फंक्शन बन कर रह गया जहां बिसिनेस कोई २ पैसे का वैल्यू देखता है. coordination ही सही, HR के पास कोई काम तो है,
ट्रेनिंग भी कुछ बचा है वह भी सिर्फ कंप्लायंस की वजह से. पर्सोनेल मैनेजमेंट और वेलफेयर की अब कोई बात करता नहीं. सभी लो एन्ड ऑउट्सोर्सेड हो गए, पेरोल आउटसोर्स हो गया, ट्रेवल एडमिन/एकाउंट्स टेक अप्प्रोअवल और सब आसान है.
ज्ञान HR वालों से ज्यादा अब नए बच्चों के पास है।  वह HR वालों से ज्यादा अच्छी डिग्री और इंटेलिजेंस ले कर आते हैं. उनके मैनेजर्स उन्हें HR से हाइ  -हेलो तक ही सम्बद्ध रखने की सलाह देते हैं. लोगों को भी मालूम है, बाप तो मैनेजर है और मुझे HR सर्विस डिलीवर कर देगा जब मैं या मेरा मैनेजर उन्हें आदेश दे देगा. ऑफिस एडमिन भी वह सब कर सकता है, कहीं काम error  के साथ एंड timely भी. HR का संघर्ष अब बढ़ गया है. राम चरण  आगाह कर चुके हैं. टाइम टू split HR 

संता -बंता जोक्स के बाद कॉर्पोरेट में सबसे जियादा जोक्स HR पर ही बने हैं.
HR तो outdated  एंड useless साबित करने में राम चरण और कुछ अन्य ने कोई कमी नहीं छोड़ी है. HR रंगे सियार की तरह नया रंग लपेटकर आता है, कभी "Diversity एंड Inclusiveness " कभी टोटल रिवार्ड्स तो कभी टैलेंट मैनेजमेंट. ये सारे सीनियर और आउटडेटिड HR dinosaur  के नौकरी बचाउ जुगाड़ हैं! इनके नाम पर फ़ोकट के कांफ्रेंस में लंच डिनर और दारु मिलता है. ऑफिस से फ्री।
कंपनी में कोई नहीं सुनता है तो twitter पर इनके बचकाने स्टेटमेंट पढ़ लीजिए. कुछ तो है कि हमें भरोसा दिलाता है की हम बिलकुल कलियुग में हैं.

कल्पना कीजिये एक दिन के लिए "HR मुक्त विश्व का". इस मुक्त वाले स्टेटमेंट का अभी ट्रेंड चल रहा है. अगर कल से HR पर बैन  लग जाए तो क्या फर्क पड़ेगा? हायरिंग लोग अपने दोस्तों का ही करते हैं. कर लेंगे. कंपनसेशन मैनेजर डील कर लेते हैं, कर लेंगे. . HR की जगह ये लोग ऑफर लेटर प्रिंट कर लेंगे. पेरोल कंपनी को लेटर भेज देंगे, २ मिनट में आनबोर्डिंग . एडमिन वेंडर आईडी कार्ड बना देगा. डन ! प्रमोशन, ट्रेवल, सैलरी अप्रैज़ल मैनेजर ही तय करते हैं. जो पसंद नहीं आया फायर कर दिया. HR का काम एडमिन कर लगा. ESIC कवर्ड कुछ थर्ड पार्टी कांट्रेक्टर काफी कुछ मैनेज करते हैं. कर लेंगे.


मैंने कुछ समय पहले लिंकेडीन में एक आर्टिकल लिखा था कि अब हम स्किल्स के युग में हैं. आर्टिकल यहां पढ़े.
जब मैं अनुभवी लोगों से बात करता हूँ तो पाता हूँ कि "समय आ गया है जब सिर्फ "SKILLs बेस्ड हायरिंग होगी. यह चल रही है. एक्सपीरिंयस की हायरिंग अब महँगी लग रही है. अब २५ लाख की सैलरी वाले बेरोज़गार लोगों को ८ लाख के ऑफर्स मिलते हैं. वह भी कभी कभी शार्ट टर्म कांट्रैक्ट पर. स्थिति शर्मनाक है.
हम सभी एक अदृश्य बेरोज़गार दुनिया की तरफ बढ़ रहे हैं. HR की कोर्सेज में एडमिशन काफी गिर गए हैं.MBA  HR अब सबसे थके और कुछ इलीट के लिए एक फैंसी कोर्स रह गया है. बेहतर भी है. न रहेगी अपेक्षा न निराशा होगी. वर्किंग हाउसवाइफ जैसा एक टर्म शायद मैंने ही इज़ाद किया है. यह उस तरह की मानसिकता वाले मर्दों पर भी लागू होता है. यहाँ मेरा तात्पर्य जेंडर बायस करना नहीं है बल्कि एक मानसिकता की तरफ इशारा करना भर है.

यह कहानी चलती रहेगी... बाकी अगले अंक में. 

Friday, February 5, 2016

नाम बड़े और दर्शन छोटे

आईआईएम कथा- झोला छाप डाक्टर (होम्योपैथिक-आयुर्वेदिक, इत्यादि) अब ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट हेड है. जिसने कभी किसी भी जाने-माने कंपनी में न काम किया, न टीचिंग , न कॉर्पोरेट का कोई अनुभव है जिसमे, उसे हम बना देते हैं, आईआईएम का ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट हेड. नाम के आगे डॉक्टर लिख लेने से आप ऐसा सोच सकते हैं की शायद Ph.D हो. आईआईएम का बेडा अब ये झोला छाप डाक्टर पार लगाएंगे. सरकारी पने की भी हद्द होती है.
उनकी अंग्रेजी पढ़ लीजिये उनके लिंकेडीन पर प्लेसमेंट सम्बन्धी पोस्ट में, आप को पता लग जाएगा , क्या लेवल है. इस व्यक्ति को एक नए आईआईएम (पहला बैच) का ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट हेड कैसे बना सकते हैं. यह कोई थर्ड ग्रेड इंजीनियरिंग कॉलेज नहीं है जहां आईटी सर्विसेज कंपनी टेक सपोर्ट के लिए हायरिंग करने आती है. लोकल थिंकिंग की भी एक हद्द होती है. यहां तो यही दिख रहा है, मालिक पंजाबी, HR हेड पंजाबी, मालिक मराठी, HR हेड, मराठी, इत्यादि। नियुक्ति हो रही है या रिस्तेदारी। अब तो शादी भी बिरादरी में नहीं, बराबरी में होती होती है फिर यह प्रांतवाद क्यों, क्या इस आईआईएम में सभी प्लेसमेंट करने वाली कम्पनियाँ बंगाली या मराठी भाषा में सारे काम करती हैं? आईआईएम को तो बक्श दो भाई..

अफसोस की बात तो यह है कि ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट डिपार्टमेंट सिर्फ एडमिन रह गया है, खाना-पानी, कमरा, कुर्सी की व्यवस्था, ट्रेनिंग गायब, प्रोजेक्ट मैनेजमेंट नदारद, स्टूडेंट्स के प्रोजेक्ट में  वैल्यू ऐड शून्य. जो काम चपरासी कर सकते हैं, उसके लिए झोला छाप डाक्टर क्यों चाहिए फिर?

नाम बड़े और दर्शन छोटे

Sunday, January 31, 2016

आवश्यकता स्कॉलर्स की है, रिसर्च एसोसिएट्स की है

सुनील सर, आपके विचार अच्छे हैं पर इनको पूरा करने के लिए मानव संसाधन विभाग की आवशयकता नहीं हैं. आवश्यकता स्कॉलर्स की है, रिसर्च एसोसिएट्स की है. कोई मानव संसाधन का संस्थान ये दोनों नहीं बनाते. सिलेबस देख लीजिये, पचरंगा आचार लगेगा. एक ऐसा पेपर दिखला दीजिये XLRI या टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस से जो आपकी मानव संसाधन रिसर्च या स्कॉलर्स की श्रेणी में आता हो!

जैसा की राम चरण ने कहा : मानव संसाधन को दो भागों में बाँट देने की जरूरत है; मानव संसाधन एडमिन और मानव संसाधन -लीडरशिप आर्गेनाईजेशन. पहला चीफ फाइनेंसियल अफसर को रिपोर्ट करे और दूसरा चीफ एग्जीक्यूटिव अफसर को. जब तक ऐसा नहीं करेंगे, मानव संसाधन विभाग सामाजिक सरोकार ही निभाता रहेगा. पेरसोंनेल मैनेजमेंट वर्कर्स के लिए कमाल का काम करता था, हेल्थ एंड सेफ्टी, क्रेच, कैंटीन, ट्रांसपोर्ट, मैनेजमेंट-वर्कर नेगोसिऎसन बाई कलेक्टिव बार्गेनिंग, अप्रेंटिसशिप मैनेजमेंट, ट्रेनिंग , इत्यादि. ये सभी १००% ROI बेस्ड थे. किसी पर्सनेल मैनेजर को कभी २ और ४ करोड़ की सैलरी नहीं मिली. आज सेलिब्रिटी HR मैनेज करते हैं, जैसा आपने कहा डी (डेवलपमेंट) मिसिंग है. फिर हुआ क्या, सिर्फ धोखा, सिर्फ HR कंसल्टिंग आर्गेनाईजेशन के फंडों का कॉपी पेस्ट।  कंपनसेशन एंड बेनिफिट्स जो करता है, उसे देख कर आप सर पीट लेंगे, जॉब कोड मैचिंग, लेटर प्रिंटिंग, एक्सेल फाइल में बोनस कॉलम एडजस्टमेंट, रोउंडिंग ऑफ ऑफ़ डेसीमल फिगर्स. शर्मनाक. HCL का सैलरी स्लिप देखा अभी, HRA और बेसिक दोनों बराबर हैं. शर्मनाक। साल के दस दिन के काम के लिए कंपनसेशन एंड बेनिफिट्स वालों को पूरे साल की सैलरी मिलती है. वैल्यू ऐड-जीरो.

लर्निंग एंड डेवलपमेंट स्लाइड्स पढता है या फिर असेसमेंट फॉर्म्स भरवाते है. किसी भी महान लर्निंग एंड डेवलपमेंट वाले के बारे में ट्रैनीस की फीडबैक ले लीजिये, सच सामने आ जायेगा. आपने सच कहा, मिल्लेनिएल को आप डेलेवोप करना चाहते हैं, वो आपसे बेहतर डिग्री और एजुकेशन रखते हैं. मैंने पढ़े लिखे समार्ट एम्प्लाइज को HR के ऊपर बस जोक करते सुना है. ले देकर, ज्यादातर HR वाले, रिक्रूटमेंट कोऑर्डिनेशन करके नौकरी बचा रहे हैं. जंग लग चुका है, इस डिपार्टमेंट में, "स्पॉन्सर्ड कैंडिडेट" भर गए हैं, कोटरी (coterie ) बन चुके है. कोई प्रीमियर बी स्कूल नहीं, कोई रीसर्च नहीं, कोई Ph.D नहीं, कोई पेपर पब्लिश्ड नहीं, कोई केलेब्रटेड अचीवमेंट नहीं, पर बन गए ग्लोबल टैलेंट मैनेजमेंट एंड डेवलपमेंट हेड.

रेसेअर्चेर्स और स्कॉलर्स भरिये वरना बेडा तो ग़र्क़ हो ही चुका  है. CHRO , २ से १.५ साल में कंपनी बदल रहे हैं या फिर निकाल दिए जाते हैं. फिर वे अपने दोस्तों को नयी कंपनी में भर लेते हैं. शर्मनाक।

Reference- HR sitting on a time-bomb-HBR reviews.

यह भी पढ़ लें - https://www.linkedin.com/pulse/hr-dead-alive-mark-edgar
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Saturday, January 30, 2016

आंबेडकर के बाद कांशी राम और बाकी सब राम-राम.

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रोहित वेमुला की जाति ज्यादा महत्वपूर्ण है या सरकारी संस्थाओं की हिटलरी?
भारत में एक्सट्रीम नहीं चलता. न ही सॉफ्ट एक्सट्रीम न ही हार्ड! एक्सट्रीम सॉफ्ट एक्सटिंक्ट हो जाते हैं, और एक्सट्रीम हार्ड एक्सटिंक्ट कर दिए जाते हैं. मॉडरेट बेस्ट हैं..  भावनाएं,संवेदनाएं, उबाल, सभी हाइपरटेंशन का कारण हैं. अतिरेक बिमारी का नाम है. बैलेंस बना कर चलना होगा. आंबेडकर साहब ने नारा दिया "जाति तोड़ो, समाज जोड़ो" ६८ वर्षों के बाद भी अभी भी दलित एक्सिस्ट करते हैं, और कितने साल लगेंगे जाति तोड़ने में? जब तक रिजर्वेशन है, तब तक, जाति है, तब तक दलित जैसा शब्द है, तब तक दलित राजनितिक पार्टी है, तब तक, १५ % नंबर में आईआईटी की सीट है, तब तक, धनाढ्य दलित आईएएस के बच्चे टॉप इंस्टीटूटेस में आसानी से हैं, तब तक सरकारी नौकरी उनकी आसानी से है, तब तक प्रमोशन फटाफट है. दलित से दलित-इलीट हटाओ। सारा माल तो ये इलीट दलित मार जाते हैं.. रोहित तो मेरिट कोटा से फेलोशिप कर रहा था. क्या सिर्फ राजनीती वाले ही दलित की बात करेंगे, चाहे राजनीतिक कारण से हो? कहाँ गए वे लाखों दलित आईएएस और अन्य सरकारी बाबू? उनमें से कोई रोहित के लिए क्यों संवेदना दिखलाने के लिए हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के बाहर कैंडल मार्च ही निकालता? रिजर्वेशन ने स्वार्थी बनाये हैं, इलीट जो सिर्फ अपना हित साधना जानते हैं. जब आज भी १५%  नंबर पर आईआईटी की सीट मिलता है तो क्यों नहीं उन दलित आईएएस सेक्रेटरी से सरकार यह पूछती, कब देश का , कब अपने दलित  बंधुओ का सोचोगे, कुछ करोगे? आंबेडकर के बाद कांशी राम और बाकी सब राम-राम. 

मैं मिशेल हूँ !

मैं मिशेल हूँ !  आपने मेरी तैयारी तो देख ही ली है, राइडिंग बूट, हेलमेट,इत्यादि.  मैं इन्विंसिबल नहीं हूँ !  यह नील आर्मस्ट्रॉन्ग की मून लैंड...