Sunday, October 2, 2016

राम की शक्ति पूजा!-LEADERSHIP LESSONS


सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ आधुनिक हिन्दी काव्य के प्रमुख स्तम्भ हैं। राम की शक्ति पूजा उनकी प्रमुख काव्य कृति है। निराला ने राम की शक्ति पूजा में पौराणिक कथानक लिखा है, परन्तु उसके माध्यम से अपने समकालीन समाज की संघर्ष की कहानी कही है। राम की शक्ति पूजा में एक ऐसे प्रसंग को अंकित किया गया है, जिसमें राम को अवतार न मानकर एक वीर पुरुष के रूप में देखा गया है,

राम  विजय पाने में तब तक समर्थ नहीं होते जब तक वे शक्ति की आराधना नहीं करते हैं।
"धिक् जीवन को जो पाता ही आया है विरोध,
धिक् साधन जिसके लिए सदा ही किया शोध!"
तप के अंतिम चरण में विघ्न, असमर्थ कर देने वाले विघ्न. मन को उद्विग्न कर देने वाले विघ्न. षड़यंत्र , महा षड़यंत्र. परंतु राम को इसकी आदत थी, विरोध पाने की और उसके परे जाने की. शायद इसी कारण उन्हें "अवतार " कहते हैं. अवतार, अर्थात, वह, जिसने मानव जीवन के स्तर को cross कर लिया है. राम सोल्यूसन आर्किटेक्ट थे. पर सिर्फ सोल्यूसन आर्किटेक्ट साधन के बगैर कुछ भी नहीं कर सकता. साधन शक्ति के पास है. विजय उसकी है जिसके साथ शक्ति है. 


जानकी! हाय उद्धार प्रिया का हो न सका,
वह एक और मन रहा राम का जो न थका।
जो नहीं जानता दैन्य, नहीं जानता विनय,


राम एक कमिटेड लीडर भी थे, जो नहीं जानता दैन्य, नहीं जानता विनय! वह अपने सामर्थ्य से विजय पाना चाहता है. विजय उसका कर्मा है. वही नियति है, वही उद्देश्य है, ऐस अ लीडर. लीडर विथ अ पर्पस


कर गया भेद वह मायावरण प्राप्त कर जय।

राम समर्थ थे, दृढ प्रतिज्ञ थे, युक्तिपरक थे परंतु, युद्ध सिर्फ सामर्थ्य से नहीं विजय हो सकती. विजय के लिए चाहिए भेद , भेद को भेदने की युक्ति. काया वह तंत्र है? शिव की साधना तंत्र है. तंत्र अदृश्य, अकल्पित शक्तियों को भेदती है. उन्हें नत मस्तक कराती है. उनपर विजय पाती है. 

बुद्धि के दुर्ग पहुँचा विद्युतगति हतचेतन
राम में जगी स्मृति हुए सजग पा भाव प्रमन।
"यह है उपाय", 

उपाय , सबसे बड़ा यन्त्र, सबसे बड़ा तंत्र. द हाइएस्ट स्टेक ! यह वही बलि है, जिसकी वेदी वैदिक काल से निर्मित है. हर स्तिथि का उपाय है. देवी की शक्ति तंत्र है. 

"साधु, साधु, साधक धीर, धर्म-धन धन्य राम!"
कह, लिया भगवती ने राघव का हस्त थाम।
देखा राम ने, सामने श्री दुर्गा, भास्वर
वामपद असुर स्कन्ध पर, रहा दक्षिण हरि पर।
ज्योतिर्मय रूप, हस्त दश विविध अस्त्र सज्जित,
मन्द स्मित मुख, लख हुई विश्व की श्री लज्जित।
हैं दक्षिण में लक्ष्मी, सरस्वती वाम भाग,
दक्षिण गणेश, कार्तिक बायें रणरंग राग,
मस्तक पर शंकर! पदपद्मों पर श्रद्धाभर
श्री राघव हुए प्रणत मन्द स्वरवन्दन कर।

शक्ति का हस्तान्तरण! डी डिवाइन इंटरवेंशन! 

"होगी जय, होगी जय, हे पुरूषोत्तम नवीन।"
कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन।

शक्ति अंदर स्थापित होती है, विजय सुनिश्चित है. 

- सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'
की  कृति!

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