Wednesday, March 15, 2017

क्या आप क्लोज़अप करते हैं? फिर क्यों दुनिया से डरते हैं?

फिल्म 'मैंने प्यार किया' का एक डायलाग है; एक लड़का और लड़की कभी दोस्त...
अपोजिट सेक्स का अट्रैक्शन नेचुरल है, किसी भी उम्र में. आकर्षक लोग चुम्बकीय प्रभाव डालते हैं, फिर पाओं को डगमगा देते हैं, धड़कन बढ़ती है, आप बह निकलते हैं.. कसूर किसका है? आप तय कर लीजिये.

यह सब तो ठीक है, पर जब आप इंसान को जिस्म, खुश्बू और भोग की वस्तु की तरह देखने लगते हैं तो फिर आप जानवर हो चले हैं, शायद हैवान जो बस भूख जानता है, जिस्म की भूख, जरूरत?
१३ मार्च का टाइम्स ऑफ़ इंडिया , हैदराबाद एडिशन पढ़ रहा था, १८ से ३० वर्ष की महिलाओं नें, कहा है कि उन्हें अपने पड़ोसियों और सहकर्मियों से बलात्कार का सबसे बड़ा खतरा लगता है. हैदराबाद में, एक वर्ष में, महिलाओं के प्रति अपराध में २५% की व्रिद्धि हुई है.
किस तरह के समाज की विकृति में हम बढ़ रहे हैं, शोषण, बलात्कार, और क्या-क्या? हमें इसे बदलना होगा.
समाज बदल रहा है, औरते, लडकियां, स्वतंत्र हैं, वेश-भूसा, सृंगार , बदला है. हम मर्द अब इसे नये तरह से देखने लगे हैं. हम अब इसे जिस्म की नुमाइश समझ रहे हैं, हम इसे अब चरित्र की विघटन की तरह देख रहे हैं. वक़्त लगेगा नज़रिया बदलने में. लोग स्वतंत्रता चाहते हैं, अपनी मर्जी की ज़िन्दगी अपने तरह से जीना चाहते हैं, उनका हक़ है, समाज कम बदला, लोग तेज़ी से बदल गए. फिल्मों का असर, विदेशी संस्कृति का असर कह लें, पर हम अब स्वयं की धुरी के इर्द-गिर्द अपने आदर्श, मॉरल्स चुनते हैं, दूसरे क्या सोचते हैं, उनकी बला से.
१५-१७ साल के बच्चे अपनी ज़िन्दगी अपनी तरह से जीना चाहते हैं, खाना, पहनना, दोस्त बनाना, फिर आगे बढ़ कर गर्लफ्रेंड , बॉयफ्रेंड चुनते हैं, फिर वर्कप्लेस में नए सिरे से नये लोगों से मिलते हैं. वर्कप्लेस में, वैसे लोग भी होते हैं, जो ज़िन्दगी को और भी स्वछन्द हो कर जीना चाहते हैं, कुछ खुले विचारों की वकालत में, कुछ तरक्की और नए रिश्तों की होड़ में. फिर शुरू होता है, समझौतों का दौर, ब्रेक अप , नए रिश्ते , फिर आदत हो जाती है. कुछ और भी ज्यादा , और भी जल्दी, सब कुछ एक साथ पाना चाहते हैं. फिर छल , कपट, दुराचार, व्यभिचार , और फिर आदत हो जाती है. कुछ इसे तरक्की का रास्ता बनाते हैं, कुछ पिस जाते है, टूट जाते हैं, कुछ भाग लेते हैं, दूर-बहुत दूर. कुछ बिखर जाते हैं,
कुछ बस रोज़ शिकार करते हैं/होते हैं. शायद यह भी आदत हो जाती है. भयावह है यह सब. अकल्पनीय पर सच से दूर भी नहीं.
फिल्म हंटर का यह विडियो देख लीजिये. पूरी फिल्म youtube अवेयरनेस के लिए ही देख लीजिये. एक छोटा अंश यहाँ.


वर्कप्लेस एब्यूज, हरासमेंट की सारी स्टोरीज आने लगती है, womaniser मेनेजर, बॉस, colleague . 

अपने आप को बचाइए ! 

अब तो कई जगह, हायरिंग भी बंद कम्ररों में, होती है, हर चीज़ की कीमत चुकानी पड़ती है. जिस तरह के लोग बहाल होते हैं, देख कर लगता है, इंच-टेप से टैलेंट मापी गयी है. 

आपकी एक गलती आपको अंधी गली में धकेल सकती है, और बिखरे समाज में आपको डिप्रेशन से बचाने वाला भी कोई नहीं मिलेगा. 

किसी भी प्रकार के अनवांटेड एप्रोच , एट्टीट्यूड और हिडन मैसेज को NO कहें, सख्ती से, बड़ी सख्ती से. शिकायत करें और नहीं सुने जाने पर ब्लॉग लिखें और शेयर करें ऑनलाइन मीडिया प्लेटफार्म पर. आप चाहें तो अपनी पहचान गुप्त रख सकती हैं. 

कुछ हाल में चल रहे ख़बरूं पर नज़र रखे. नीचे की लिंक देखें. 

https://medium.com/@Indian.fowler/the-indian-uber-that-is-tvf-37f9cb73df31#.hus2574lp

https://factordaily.com/tvf-arunabh-kumar-sexual-harassment/


टेक केयर! 


1 comment:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’फागुनी बहार होली में - ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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