ज्योतिष समाधान का विषय नहीं है. समाधान यदि कहीं है तो वह एक सिद्ध गुरु या सिद्ध आशीर्वाद से ही मिल सकता है. दूसरा तरीका है पीड़ित स्वंम सिद्ध हो जाए। .
अरुणा शानबाग की कहानी सब को मालूम है. इसको कहते हैं प्रारब्ध। .फाइनल वर्डिक्ट यही है.. कोई अपील नहीं हो सकती।
प्रारब्ध है ३ रॉबिंसन स्ट्रीट कोलकाता और मौतों का समुंदर एक २५ करोड़ की आलीशान कोठी में। अभिशप्त जीवन, दुर्भायपूर्ण , दर्दनाक मौत , जो उन्होंने स्वयं चुनी
जीवन का इस बवंडर में नेस्तनाबूत हो जाना
राम को भी रावण पर विजय शक्ति -दुर्गा -काली-चंडी ने ही दिया था। . बस यही एक रास्ता बचता है, अगर प्रारब्ध आपको पल पल लील रहा हो. बचे न बचे पर मरे तो चंडी के ध्यान में.
कई लोग आपको जीवन में मिलेंगे जिन्होंने आप पर अनंत कृपा की होगी, सभी के लिए आप कृतज्ञं होंगे , परन्तु जब आपकी बारी आएगी उस कृपा का क़र्ज़ चुकाने की तो प्रारब्ध आपको लज्जित करेगा। . सामर्थ्य सब कुछ नहीं है, कृपा सबसे ऊपर है.
कुछ लोग आपके बुरे कर्मों की सजा देने मात्र के लिए ही यहां भेजे गए हैं, वे आपको आपका पाप धोने में मदद करते हैं. मेरे अनुभव में वे सभी आपके शुभचिंतक हैं. आपको उनका आभारी होना चाहिए.
ईश्वर सिर्फ जीवन देता है , जो एक फ़ैसला है, शायद न्याय नहीं , और फिर आपको वापस समाप्त भी कर देता है.
बीच में बचा है वह अनमोल समय जिसे हम जीवन कहते हैं. बुद्ध ने इसे इसे दुक्ख कहा है.
दुःख से निकलने का मार्ग है दुःख को जीने की कला . सीख ही लेते हैं लोग.
बीच में ज्योतिष कुछ भ्रम में आपको रख सकता है. मैं भी इस भ्रम में जीता, जागता रहता हूँ.
अगर यह भटकाव है तो फिर बुरा ही क्या है ?
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