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यह डाइवर्सिटी क्या बला है ? बहरूपिया

यह डाइवर्सिटी क्या बला है ? 

याद कीजिये आपने यह जुमला पहली बार कब सुना था!

मैंने पहली बार इसे सुना था जब एक इन्वेस्टमेंट कंसलटेंट इन्वेस्ट करने में कुछ गुर बता रहा था ; पोर्टफोलियो क्या है, कैसे फण्ड डाइवर्सिफाई करें, इत्यादि। . यहां डाइवर्सिटी का अर्थ है रिस्क कम करना. यह इन्वेस्टमेंट की दुनिया है. दूसरी बार डाइवर्सिटी सुना एथनिक डाइवर्सिटी के अर्थ में; जातीय समीकरण, मुस्लिम-यादव बिहार में, तुत्सी-हुतु रवांडा में, आइसिस -येज़दी सीरिया में , मीम-भीम उत्तर प्रदेश में, इत्यादि ! 

देश में २०२१ की जनगणना हो रही है! नितीश कुमार जो बिहार के मुख्यमंत्री हैं, ने इस बार जातीय आधार पर जनगणना की मांग की है. जायज़ है. किसी को नहीं पता पश्चिम बंगाल में कितने प्रतिशत मुस्लिम हैं, रोहिंग्या, बांग्लादेशी सभी जोड़कर देखे तो शायद ३५%... ऐसा कई अनाधिकारिक सूत्र बताते हैं. 

मामला जब सत्ता का हो तब डाइवर्सिटी का अर्थ होता है, समीकरण, ध्रुवीकरण (Polarization ), वोट बैंक इत्यादि. 

जब डाइवर्सिटी की बात कंपनी के अंदर हो तब बात होती है महिला संवर्धन -संरक्षण, ब्लैक लाइफ मैटर्स, लैंगिक और समलैंगिक राइट्स मैटर , एलजीबीटी राइट्स मैटर , सेक्सुअल प्रैफरेंसेज ; जैसे लेस्बियन, गे, बाई सेक्सुअल, मेट्रोसेक्सुअल , पैन सेक्सुअल इत्यादि ! इसमें कई लोग शुगर डैडी, शुगर मोम्मा , बीडीएसएम (BDSM ) ,मिल्फ  , दिलफ (MILF/DILF) इत्यादि को भी शामिल करने की मांग कर रहे हैं. 

गाँधी के ब्रह्मचर्य से बीडीएसएम तक का सफर , मानव समाज के उत्थान और लिबरेशन की दिशा में महत्वपूर्ण पड़ाव हैं. ऊबर के सीईओ दारा खुश्रावसहि की बेटी ने अपने कहा की वे समलैंगिक हैं , तब दारा ने कहा; "आज समलैंगिकता के लिए, हम सबसे अच्छे समय में जी रहे हैं! "

कंपनी डाइवर्सिटी बनाने के अपने मिशन पर चल पड़ी है; इसके लिए अभी पहले पायदान पर समानता के नए कीर्तिमान हासिल हुए हैं. कंपनी सभी जगह महिलाओं को आरक्षण देकर भरा रही है.. कई रिपोर्ट्स ने कहा है कि , उन सभी कंपनियों ने आर्थिक कीर्तिमान बनाये हैं जहां बोर्ड में और उच्च पदों पर महिलाओं की संख्या पुरुषों के सामान या लगभग बराबर है. 

आसानी से महिलाओं को स्थापित करने वाले कई पद हैं, जैसे एचआर , मार्केटिंग, मीडिया एंड कम्युनिकेशन, कई ऑपरेशन्स के रोल। ..सबसे ज्यादा एच आर ने आंदोलन को सफल बनाने में बलिदान दिया है.. लगभग तीन -चौथाई एच आर के पद महिलाओं को युद्ध स्तर पर दिए गए। ..पुरुष समाज, मुसलमानों की तरह भारत में डरा हुआ है. डर का माहौल है. 

पीपल मैटर मैगज़ीन , अपने आका एस्टर मार्टिनेज़ के सफल नेतृत्व में, इस सामाजिक न्याय के आंदोलन में तालिबान की भूमिका निभा रहा है. इसमें कुल पुरुषों की संख्या गिनिए ! २०१९ और २०२० में सिर्फ एक मर्द (या कुछ और?) 

अब आते हैं कि डाइवर्सिटी होता क्या है; डाइवर्सिटी होता है, अपने मित्रों, जात- भाइयों, ब्राह्मणों, बीफ चिली के शौकीनों इत्यादि को अपनी कंपनी में पीछे के रस्ते भरते जाना। .. क्षमा कीजियेगा... यह तो सामाजिक न्याय नहीं परिवारवाद, वंशवाद, नेपोटिस्म, क्लब कल्चर बनाने जैस हो गया। .पर यह होता रहा है, इसने सारे डेमोग्राफिक समीकरण को विषाक्त कर दिया है!  पिछले २० वर्षों में. कॉर्पोरटे एक गंदे नाले की तरह बदबू देता है.. हर एक दुसरे का रिस्तेदार है... रोहिंग्या की तरह यह बस गए कंपनियों में... 

अब डाइवर्सिटी बनाना मुश्किल है.. पर वसीम बरेलवी का शेर है; 

उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है
जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है

नई उम्रों की ख़ुदमुख़्तारियों को कौन समझाये
कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है

इसके सामने ें बड़ी समस्या है; "अच्छा इंसान" , यह एक स्लीपर सेल की तरह है, जो कंपनी में सोता रहता है.. स्वांग करता है अच्छे एम्प्लोयी होने का: बहरूपिया , जो कंपनियों में सदियों से बसा है; वह गाँधी के बंदरों की तरह अपनी आँख, मुँह, और कान ढक रखा है! दुनिया की अच्छाई -बुराई से उसने नज़र बचा रखा है. वह वही बोलता, देखता , सुनता है, जो उसका मदारी उसे कहता है... कॉर्पोरेट के एक गंदले (Muddied )और असमंजस से भरे दौर में हैं हम सब... तालाब अब एक जलजले से से ही साफ़ होगा. वाटर केनन क्या ही कुछ उखाड़ लेंगे इसका. 

उम्मीद की किरण अगर कही दिखती है तो वह ें आंदोलन जो इस विषाक्त डाइवर्सिटी की कड़ी मुखालफत करे. 

पीपल मैटर जैसे मागज़ीन को काउंटर करें और इस वोक के खिलाफ हम मुखर हों... 

कंपनियों में गवर्नेंस वोक के गिरफ्त में है.. पश्चिमी गोरखधंदा ! 

अगर इसे नेह रोका गया तो यह चरस बो-बो कर नस्लें समाप्त कर देंगे. 

मीटू (MeeToo ) से इसकी खतरनाक शुरुआत हुई थी. ..हमें ठंढे दिमाग से इसका मुकाबला करना है. 

बाल ठाकरे से एक पत्रकार ने इंटरव्यू में पुछा था; क्या बाबरी मस्जिद ढहाने में आप भी हाथ है तो उन्होंने कहा था; मेरा तो पैर भी है.! 

तो लगाइये ज़ोर ! इंशाअल्लाह हम होंगे क़ामयाब ! 




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