Monday, January 25, 2016

क्या कोई षड्यंत्र है? क्या जाति विशेष की कोई निश्चित प्रवृत्ति होती है?

क्या कोई षड्यंत्र है? क्या जाति विशेष की कोई निश्चित प्रवृत्ति होती है?
सामजिक-आर्थिक रूप से सफल लोगों को ही देख लेते हैं. क्या इनमें कोई विशेष गुण है जो इन्हे सफल बनाता है?
क्यों बंगाली और मलयाली नौकरियों में ज्यादा सफल हो जाते हैं? क्यों बनिये व्यापार में सफल होते से लगते हैं?
क्या उन्हें व्यापार करने के गूढ़ रहस्य मालूम हैं? या फिर सिर्फ व्यवहार-सरोकार के ये पुजारी हैं?
कैसे जानें इनमें ये गुण कैसे आते हैं? कैसे ये इन गुणों की बदौलत अपनी मंज़िल पाते हैं.
प्राइवेट नौकरियों को अगर देखें तो, इसकी शुरूआत टाटा और बिरला या बजाज ग्रुप से निकल कर आता है. इन कंपनियों में मजदूर वर्ग बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र से आया, तकनिकी काम के लिए, दक्षिण भारत और महाराष्ट्र का वर्ग जुड़ा. बंगाली ऑफिस के काम के लिए रखे गए. उन्हें कुछ अंग्रेजी आती थी और ये बड़े अफसरों के सामने बिलकुल मेमनों जैसा हाव-भाव रखते थे. ये उनके सहमति और असहमति दोनों से बराबर ही सहमति प्रकट करते थे. ये अपने विचार फुटबॉल, मुरी घोंटो , नक्सलबाड़ी, सिगरेट , कार्ल मार्क्स, इत्यादि तक सीमित रखते हैं.
इन्होंने सबसे पहले याद कर लिए था.. नौकरी मतलब, मुह पर ताला, विचार, विमर्श  घर पर. बॉस का पाद भी गीता का ज्ञान, ऑफिस में शांत, लगभग अदृश्य, अच्छी अंग्रेजी ड्राफ्टिंग, एकाउंट्स साफ़ और साधा. कानून के पुजारी। लेकिन जैसा की हर कुत्ते का दिन आता है, बंगाली बंधू भी पदोन्नति पा कर, एक दिन अफ़सर बनते हैं. सिगरेट का डब्बा अब इनकी आइडेंटिटी बनता है, फ़िएट कार आती है, नमस्कार दादा, दीदी, ऑफिसियल सम्बन्ध बोधक बन जाते हैं. धीरे -धीरे बंगाली भाषा लिंग्वा-फ़्रन्का बन जाती है. सारे क्लासिफाइड संवाद इसी भाषा में कुछ अन्य बंगाली अधिकारी, सहयोगियों के साथ होने लगते हैं. बंगाली बंधु कौम के बड़े पक्के होते हैं. द्रुत गति से आप इनके विभाग में बंगालियों की नियुक्ति होते देखेंगे. मधुमक्खी के छत्ते की तरह इनका विकास होता है. उदाहरण मैंने बंगालियों का लिया, इनके ही दक्षिण भारत के बंधू हैं..मलयाली. अद्भुत समानता है दोनों में; दोनों शौकीन कौम है. इनका कुत्ता, दारु, कार प्रेम एक सामान है. दोनों समाज उन्मुक्त है, साइड डिश दोनों को चाहिए, खाने और सोने में भी . दोनों कोस्टल एरियाज से हैं, दोनों मच्छी भक्त हैं.. दोनों समाज एडुकेटेड एंड क्वालिफाइड हैं, दोनों समाज में महिला मुक्त है, आर्थिक रूप से आत्म निर्भर है. संगीत -गायन और वादन दोनों के मीठे हैं. करैक्टर दोनों के ढीले हैं, परन्तु उनका समाज इसकी इजाजत देता है. यहां सब सहमति से होता है, कोई शोषण नहीं है. दोनों अपने लोगों को ही अपने साथ जोड़ते हैं, अगर यह क़ौम है तो यह फिर कम्युनल हैं.

जैसे लोमड़ी को चालाकी सीखनी नहीं पड़ती, वैसे ही इन्हे व्यावहारिक ज्ञान जन्मजात मिलता है. मलयाली बच्चे और बंगाली बच्चे एक साथ खेलते मिलेंगे. यही रिश्ता कॉलेज, फिर नौकरी तक चलता जाता है पर दोनों अपने कौम को ही सहयोग करेंगे. कॉलेज का प्लेसमेंट सेल का कम्पोजीशन किसी भी बिज़नेस स्कूल में देख लीजिये, आप वहाँ बंगाली और मलयाली बहुतायत में पायेंगे. इनका रिश्ता बंदरों और हिरणोँ जैसा है. बन्दर हिरणों के लिए पेड़ हिला कर फल गिराते हैं, दोनों एक दुसरे को शिकारी पशु या व्यक्ति से सतर्क करते हैं। परन्तु वंश वृद्धि तो यह अपनी ही करते हैं. जायज़ है.

आपके अगर कोई विचार हों तो अवश्य लिखे.
शुभ रात्रि!


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