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लीडर को लकी होना चाहिए।


गुरुचरण दास ने कहा , लीडर को लकी होना चाहिए।  मैं  गुरुचरण दास से १००%  सहमत हूँ. साथ ही ,मेरा यह भी मानना है कि सिर्फ किंग ऑफ़ गुड टाइम्स भी अपनी बरसी कुछ ही वर्षगांठों के बाद मना लेता है. लकी हैं तो होश में रहें। हुकूमत आपके होश गुम होने का ही इंतज़ार करती है. 

सफल जीवन तीन आधारों पर टिका होता है; अवसर, सामर्थ और भाग्य।  ले दे कर सारी बात आ कर अटकती है भाग्य पर. आप भारत के प्रधान मंत्री बनें और तेल की कीमत विश्व बाजार में अपने न्यूनतम स्तर पर हो और बना रहे. अमरीकी राष्ट्रपति अपनी अंतिम कार्यकाल के अंतिम चरण में हों. मुख्य विरोधी पार्टी अपने जीवन के न्यूनतम स्तर पर हो. आपकी पार्टी में पुराने लीडर्स बिस्तर पकड़ चुके हों और नए वाले अभी तैयार नहीं हों.  आपकी चांदी है. किस्मत इसको कहते हैं. 

जीवन अवसरों और किस्मत से बनता और चलता है. आपकी लाटरी लगी तो लगी नहीं तो आप उसे रद्दी के टोकरे में डाल दें. फटेहाल स्टार्ट अप कंपनी कोम्मोन्फ़्लूर $२०० मिलियन में क्विकर नें अभी खरीदी है. सही वैल्यू क्या है यह किसको पता. जो कंपनी अपना दो रूपया फायदा नहीं बना सकी, उसको $२०० मिलियन में खरीदना कहाँ की अकल है? सब इन्वेस्टर्स का खेल है. सब मिलकर चार्टर्ड अकाउंटेंट की मदद /गोरखधंधे से सरकार को चूना लगाएंगे. सबसे बड़ी प्रसन्नता है कि इसमें सरकारी बैंक का NPA नहीं को रहा है. १० में से ८ स्टार्ट अप बंद हो सकते हैं. फ्री फ़ोकट डिस्काउंट लेने वाली जनता आपको भला कैसे प्रॉफिट बनाने देगी. जब तक डिस्काउंट चालू है, बुकिंग है, जब डिस्काउंट बंद, बुकिंग बंद. फ्लिपकार्ट और स्नैपडील सायद २०२० तक कोई प्रॉफिट बना सकें. इसकी उम्मीद भी कम ही है. मार्केटप्लेस में न क्वालिटी पर न कस्टमर डिलाइट पर कोई कंट्रोल है. फ्लिपकार्ट में ३०००० कर्मचारी हैं. मार्केटप्लेस कंपनी के लिए यह नंबर लगभग तीन गुना है. देखना है यह देसी डिज्नीलैंड कब तक चलता है. क्वालिटी ऑफ़ प्रोडक्ट्स काफी गिरे हैं. कस्टमर अट्रिशन काफी तेज़ है. सेलर्स ग्राहकों को जमकर चूतिया बना रहे हैं. ऐसा लोग कह रहे हैं. मैं सुनता हूँ , रिकॉर्ड नहीं रखता. 
भारत में जब मुहम्मद बिन तुगलक ने टोकन करेंसी चलायी थी तो वह असफल को गयी. इतिहासकारों ने लिखा, "भारत में तक़रीबन हर घर में अवैध सिक्के छप रहे थे. एव्री हाउसहोल्ड हैड टर्न्ड ईंटो अ मिंट . सबको पता है; सक्सेस लाइज इन एग्जेक्यूसन। वहीँ, अल्लाउद्दीन ख़िलजी का मार्किट रिफॉर्म्स सफल रहा. क्योंकि यहां अधिकारी वर्ग गंभीर और ससक्त था, एजेंसीज थी , नियामक संस्थाएं थी, सीक्रेट इंस्पेक्टर्स और सबसे ऊपर सुलतान का खौफ था. शासन खौफ से चलता है. डर अच्छी चीज़ है. डर से अनुशाशन बना रहता है. ये कंपनियां सरकार नहीं हैं. इनके पास पुलिस है न ही सीक्रेट एजेंसीज. इन्हे शासन नहीं आता. अंग्रेजी शासन नें भारत मैं व्यापार करने के लिए ही सिविल सर्विसेज और सेना की स्थापना की थी. अगर आपके पास ये सब या इनका सपोर्ट नहीं  हैं है तो आप लुट जाएंगे. चीन के पास ये  थे और  सफल रहा. 
ब्रिक एंड मोर्टार वाले बनिए आपकी कब्र खोदने में कसर नहीं छोड़ेंगे. किशोर बियानी ने कहा है, ये सारे ग्रोसरी वाले, बिग बास्केट, ग्रॉफर्स, दो  साल में बंद हो जाएंगे. इनका मॉडल काफी लॉस मेकिंग है. सिर्फ डिलीवरी से आप स्केल नहीं कर सकते, वह भी जब मॉडल हाइपर लोकल हो.. 

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